tag:blogger.com,1999:blog-73712786904601615232024-02-20T05:47:13.184+05:30mere-ehsaasलिखने का शौक काफी पुराना हे, अपने स्कूलिंग के वक़्त से लिखने का चस्का पड़ गया था, फिर छूट गया, ४ साल पहले ऑरकुट से जुड़ना हुआ, इसके माध्यम से विभिन्न कम्युनिटी से जुड़ना हुआ, फिर से एक बार कीड़ा कुलबुलाया, सो लिखना फिर शुरू कर दिया, वाह-वाही मिलने लगी, तो हौसला बढ़ने लगा, लोगो की देखा देखि, ब्लॉग भी बना लिया, आप लोगो से अपनी सोच बाँट सकूँ, बस इसी उद्देश्य सा यहाँ हूँ , आपका प्यार ही मेरे लेखन की लाइफ लाइन हे. ...शुक्रियाKhare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.comBlogger137125tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-19379791940751157152016-02-02T11:18:00.006+05:302016-02-02T11:18:52.877+05:30#शनि पर भारी भारतीय नारी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" />! श्री हरी क्षीर सागर में शेषनाग रूपी अपनी चिरपरिचित शैया पर आराममय मुद्रा में लेटे हुए थे और श्री प्रिया उनके चरणों में बैठी उनको देख मंद मंद मुस्करा रही थी! अकस्मात श्री हरी जोरो का मुस्कराये तो लक्षिमी जी ने अचंभित होकर पूछा क्या हुआ प्रभु सब ठीक तो है न, यूँ आप इस तरह अचानक क्यूँ जोरो से मुस्कराये! श्री हरी की मुस्कान और चौड़ी गई और बोले प्रिये बात ही कुछ ऐसी है, शनि देव बदहवास से इधर ही दौड़े चले आ रहे हैं, लगता है एक और लीला करने का समय आ गया है! लक्ष्मी जी श्री हरी के ये वचन सुन दुविधा के सागर में गोते लगाने लगी और कहने लगी प्रभु अभी तो कलयुग अपने प्रथम चरण में है और ये अचानक से लीला करने का प्रयोजन किसलिए ये तो विधि विधान के विरूद्ध है! श्री हरी बोले प्रिये कुछ समस्याएं ऐसी होती है जिनकी भविष्यवाणी करना असंभव होता है! वार्तालाप चल ही रहा था की द्वारपाल ने श्री हरी को शनिदेव के आने की सूचना दी! श्री हरी ने द्वारपाल को कहा की उन्हें अंदर आने दिया जाये! शनिदेव पसीने से तर वतर, सांस उखड़ी हुई उनकी हालत पतली देख लक्ष्मी जी घबरा गई और बोली है शनिदेव जिसके स्मरणं मात्र से पापिओं की हालत खराब हो जाती हो वैसी ही हालत आपकी खुद की आखिर ऐसा क्या अनर्थ कर डाला आपने, उन्होंने शनि देव से उनकी इस अवस्था का कारण बतलाने को कहा! शनि देव ने अपनी उखड़ी सांसो पर कंट्रोल किया और बोले मैया मैं तो जन्म से ब्रह्मचारी हूँ मैंने युगों युगों से आपके चरणो के आलावा आज तक किसी स्त्री पर नज़र नही डाली, लेकिन मृत्यलोक में अब स्त्रिओं ने मेरा ब्रह्मचर्य तोड़ने की ठान ली है, अब मेरा वहां पर रहना असंभव है इसीलिए मुझे अपने चरणो में स्थान दीजिये माते ! श्री हरी ये वार्तालाप सुन मुस्कराते रहे, शनि देव उनको देख गिड़गिड़ाए बोले प्रभु अब आप ही कुछ उपाए बतलाइये और मुझे इस भीषण संकट से मुक्ति दिलबाइये! श्री हरी बोले शनिदेव ये कलयुग है और इस कलयुग में हमारा प्रभाव अधिक न पड़ता लोग बाग़ हमें बस काम चलाऊ व्यवस्था की माफ़िक़ इस्तेमाल करते हैं और जो ये आपके असली भक्त है वो भी तो आपको इसीलिए तेल चढ़ाते हैं की उनके साथ जीवनभर जो संकट चस्पा हुआ है उससे आप उनको बचा कर रखे, लेकिन पुरुषो के लिए संकट रूपी पत्निओं को पता चल गया है की आप ही उनके पतिओं को उनकी प्रतारणओ से बचाते आ रहे हैं. इसिलिय अब उनका गुस्सा आप पर फूट रहा है, और वैसे भी हे शनि देव इस नारी रूपी बीमारी का इलाज तो युगो युगो से किसी के पास नही है! त्रेता युग में रावण जैसे प्रकांड पंडित को भी स्त्री का प्रकोप झेलना पड़ा , द्वापर युग में पांडव और कौरव दोनों ही स्त्री के कारण अपार परेशानियाँ उठानी पड़ी! अब ये अचानक से आई समस्या के समाधान के लिए हमें ब्रह्मा जी और महादेव से मशविरा करना पड़ेगा तब तक आप वापिस मृत्यलोक जाइए और जैसे तैसे इस समस्या से जूझिये! इतना कहकर श्री हरी वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए और बेचारे शनि देव बेहोश! जैसे ही ब्रह्मा जी और महादेव को श्री हरी के आने का भान हुआ तो ब्रह्मा जी वेदो के अध्यन में इस आपात्कालीन समस्या का उपाए खोजने लगे और महादेव वापस अपनी योग मुद्रा में लीन हो गए</a></div>
Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-39132251192215773452014-06-23T16:41:00.002+05:302014-06-23T16:41:21.603+05:30~ साहित्ये ~~ " पहले पढ़ो पढ़ो और पढ़ो फिर लिखो "<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /><span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">~<br /> <br />
विष्णु प्रभाकर जी ने कहा की दर्द सहने की यातना से गुज़रे बिना कोई लेखक
नही बन सकता! मेरा ये मानना है की इसका मतलब ये नही की आपने वो दर्द
झेलना है या वो यातना सहनी है! किसी का दर्द महसूस करके उस दर्द को अपने
शब्दों में उतारकर जनमानस के दिलो-दिमाग पर छा जाना भी साहित्ये ही है!<br /> <br /> एक और बात उन्होंने कही की साहित्ये च<span class="text_exposed_show">ाहे
वो कविता हो, गध काव्य हो या कहानी इन सबके मूल आधार में कोई न कोई कथानक
होता है, यानि के हम कह सकते हैं की किसी भी प्रकार का साहित्ये हो उसके
मूल में कहानी ही होती है! वो आगे कहते हैं की नाटक मंच से कही गयी कहानी
ही है और उपन्यास कथात्मक घटनाओ का एक विस्तार! चाहे आप किसी भी विधा में
लिखे कहानीकार सर्वत्र सक्रिय है!<br /> <br /> विष्णु प्रभाकर जी ने आगे कहा
की उनकी कहानिओं का आधार "ज्ञान" नही "अनुभूति" रहा है! जो उन्होंने अपनी
यात्राओं में, सामाजिक जीवन में जो महसूस किया उन्ही सब चरित्र को उन्होंने
अपनी कहानिओं में उतारा है! लेकिन मैं यहाँ एक बात जोड़ना चाहूंगा की कथ्य
में तथ्य का होना भी जरुरी है कहानी वो जिसमे पाठक खुद को महसूस करे! और
जो सबसे बड़ी बात उन्होंने कही की उनके कहानीकार बनने की प्रेरणा या कारण
उनका पढ़ना, उन्होंने रविन्द्र, शरत, प्रेमचंद, प्रसाद इत्यादि महान
रचनाकारों की रचनाये पढ़ी थी! ये अपने आप में एक प्रेरणात्मक बात है जिसे हर
रचनाकार को ईमानदारी से अपनी साहित्यिक साधना में उतारना चाहिए! लेकिन
अफ़सोस आजकल के रचनाकार मैं सभी की बात नही कर रहा पर अधिकतर खुद को
साहित्यकार समझने या बनाने की कवायद में लगे हैं वो वास्तव में कितना पढ़
रहे हैं उन महान साहित्यकारों को! और यही एक विडंबना है हिंदी साहित्ये
के पतन की आज साहित्य रचा तो थोक के भाव में जा रहा है लेकिन पढ़ने वाले
नगण्य हैं, जो की हिंदी साहित्य के पतन के मूल कारणों में से एक है!<br /> <br />
उपरोक्त बात में इस आधार पर कह रहा हूँ की आज साहित्य कितना बिकता है
बाजार में साहित्यकार और प्रकाशक मिलजुलकर जैसे तैसे काम चला रहे हैं!
डिमांड है ही नही बाजार में अधिकांशतः कुछ एक अपवाद जरूर हो सकते हैं!<br /> <br />
आज विष्णु प्रभाकर महान साहित्यकार कहलाते हैं क्यूंकि उन्होंने अपने से
पहले उन महान साहित्यकारों को अपने में आत्मसात किया उनको पढ़ा फिर लिखा!<br /> <br />
अब आप सोच रहे होंगे की मैं ये सब क्यों शेयर कर रहा हूँ, इसके पीछे एक
ही कारण है "हिंदी सहित्य को उचित सम्मान" मिले जो की पिछले काफी समय से
नही मिल पा रहा है! प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन मंजिल अभी बहुत दूर है!
अगर हमें हिंदी साहित्य को उसका समृद्धिशाली गौरव लौटना है तो हम सभी को
सबसे पहले पढ़ने की आदत डालनी होगी उन महान और समकालिक साहित्यकारों को पढ़ना
होगा उनको समझना होगा! आखिर हम आज भी उन साहित्यकारों का नाम क्यों लेते
हैं कुछ तो बात होगी उन सभी में, यूँ ही तो वो महान नही बन गए!<br /> <br />
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा की पहले पढ़ने की आदत डालो फिर लिखने की कल
शायद आपके किसी के नाम के पहले महान शब्द जुड़ जाये, और हाँ महान वही होता
है जिसको जनमानस स्वीकारे, किसी एक या दो गुटबंदिओं से कोई महान नही बनता
वो सिर्फ आत्मुग्धता की स्थिति होती है!<br /> <br /> उपरोक्त चेतनात्मक आलेख
है जो बाते बीच बीच में मैंने कही हैं वो मेरे निजी विचार हैं उनसे किसी का
सहमत होना या न होना जरुरी नही है!<br /> <br /> "आलोक"</span></span></a></div>
Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-50522594871932277992014-06-06T14:07:00.004+05:302014-06-06T14:08:42.694+05:30वो भी क्या दिन थे बीड़ू ! (२० साल पहले )<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
<div>
<br />
<br />
बात शादी के
पहले की है, जहाँ में रहता था रूम लेकर, मेरे रूम के आगे बालकनी थी और सड़क
के उस पार सामने वाले मकान में एक कमसिन लड़की भी रहती थी! समय बीतता
गया न जाने उस लड़की को कब हमसे इश्क़ हो गया ये हमें भी पता नही चला! काफी
दिनों के बाद रविवार का दिन था, हम सो रहे थे तभी डोर पर नोक हुई, हमें
उठकर दरबाजा खोला तो सामने एक लड़की खड़ी जो उसी सामने वाली लड़की की मित्र
थी और उसी लेन में आगे रहती थी! मुस्कराते हुए उसने नमस्ते की, हम उसको
अचानक अपने रूम पर देखकर घबरा गए, वो बोली अंदर आने के लिए नही कहेंगे?
हमने घबराते हुए उनको अंदर आने के लिए कहा, हमारा दिल शताब्दी की स्पीड से
भी तेज धक धक करने लगा! हम अपने भावों को कंट्रोल करने नाकाम कोशिश कर
रहे थे! वो लड़की काफी तेज़ तर्रार दिख रही थी! शायद उसने हमारे चेहरे का
उड़ा हुआ रंग देख लिया था, कहने लगी आलोक घबराओ नही, हमने हलके से
मुस्कराते हुए कहा नही ऐसी कोई बात नही है! कहिये कैसे आना हुआ, बोली राधा
तुमसे प्यार करती है, हमने थूक सटकते हुए पूछा कौन राधा? वो हंसने लगी और
बोली बहुत होशियार हैं आप पिछले २ साल से मेरी फ्रेंड को फ़्लर्ट कर रहे
हैं और आपको नाम भी नही पता! हमारा चेहरा पीला पड़ चूका था, पहला
एक्सपीरियंस था जो इस तरह की सिचुएशन फेस कर रहा था! मैंने कहा यकीं मानिये
मैं </div>
<div>
किसी राधा को नही जानता! वो हंसने लगी, फिर बोली वो जो सामने वाले घर में रहती हैं मैं उसी की बात कर रही हूँ! </div>
<div>
मुझे पहली बार उसका नाम मालूम पड़ा था! फिर हमने सोचा अब बोल्ड होना पड़ेगा वार्ना ये दोनों लडकिया मिलकर जलूस निकाल देंगी! मैंने साहस बटोर कर उसको कहा "नीता जी" यही उस </div>
<div>
लड़की
का नाम था जो उसने आने के बाद बतलाया था! ऐसी कोई बात नही है, एक हाथ से
ताली नही बजती, मेरा उस लड़की में कोई इंटरेस्ट नही है ये बात आप उसको बोल
देना ! बो बोली ऐसा कैसे हो सकता है वो तुम्हे बहुत चाहती है , मैंने कहा
ये सब एक तरफ़ा है मैं उसको नही चाहता प्लीज आप समझने की कोशिश करो! नीता
बोली कैसे लड़के हो तुम एक लड़की ऑफर दे रही है और तुम मना कर रहे हो! मैंने कहा जो भी समझो तुम लेकिन ये सच्चाई है! </div>
<div>
इतनी देर बात करने के बाद मुझमे बहतु कॉन्फिडेंस आ चुका था, दिल की धड़कन अब समान्य हो चुकी थी! और मन में कई सवाल आ जा रहे थे की यार इस सिचुएशन से कैसे छुटकारा पाया जाये! इसी बीच नीता ने मुझसे सवाल किया क्या तुम्हारी लाइफ में कोई और लड़की है?
बस इतना सुनते ही जैसे मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया हो , मैंने
तुरंत कहा हाँ है, बोली कौन? पता नही मुझे क्या सुझा मैंने तुरंत कहा,
तुम्हारा क्या ख़याल है मेरे बारे में, नीता को शायद मेरे इस बाउंसर की उम्मीद नही थी, अब सकपकाने की बारी उसकी थी, बोली ऐसा कैसे सकता है लेकिन मै तो आपको चाहती ही नही, मैंने कहा उससे क्या मैं तो आपको चाहता हूँ जैसे आपकी मित्र मुझे चाहती है लेकिन मैं उसको नही चाहता! उसको मेरी बात समझ आ गयी और वो मुस्कराते हुए वह वहां से चली गयी! फिर हमने उसी दौरान ये शेर लिखा ! </div>
<div>
<br />
या तो बेअसर हैं तीरे नज़र उसके </div>
या ये दिल दिल नही कोई पथ्थर है!</div>
<br />
"आलोक"<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"></a></div>
Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-48619356266590184482013-06-13T12:10:00.001+05:302013-06-13T12:10:43.787+05:30बिखरते रिश्ते ......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /></a><br />
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent">बिखरते रिश्ते ......<br /> <br /> माँ अब नही कहती की<br /> बेटा कब आ रहे हो,<br /> कितनी बार कहेगी, पूछेगी<br /> थक चुकी है माँ,<br /> और बेटा जिसका शायद<br /> अपना कोई बजूद ही नही<br /> रह गया है!<br /> डरते डरते फ़ोन करता है<br /> की कही माँ आने के लिए<br /> न कह दे!<br /> लेकिन माँ समझ गयी है<br /> की बेटा अब "अपने" में<br /> मस्त है "अपनों" को भुलाकर,<br /> बीबी , बच्चे बस यही हैं<br /> उसके "अपने" उसका "अपना"<br /> संसार!<br /> अब माँ बस इतना ही पूछती है<br /> की बेटा तू ठीक तो है न,<br /> बहु और बच्चे सब ठीक है न,<br /> मैं धीरे से हाँ कहता हूँ,<br /> और फिर और भी धीरे<br /> पूछता हूँ "माँ" तुम ठीक हो,<br /> माँ कहती है बेटा मेरी क्या<br /> आज हूँ कल नही,<br /> तुम सब खुश रहो अपनी<br /> दुनिया में!<br /> समय मिले तो कन्धा देने<br /> आ जाना!<br /> मेरे हाथ से मोबाइल छुट ही<br /> गया! गिर गया जमीन पर,<br /> उसका कवर और बेट्री निकल<br /> कर इधर उधर बिखर गए,<br /> जैसे की वो कह रहे हो<br /> क्या सोच रहे हो<br /> ये रिश्ते भी धीरे धीरे ऐसे<br /> ही बिखरते जा रहे हैं!<br /> <br /> ("आलोक"...... )</span></span></h5>
</div>
Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-37354696760456225012012-11-24T13:56:00.005+05:302012-11-24T13:56:41.580+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkcqabJi6NnQp45Yw71apF9qKUPGmjSYZfkn1-oBDGgQyXZT4DgVJ_BaVscvCUDAB_kWY8JP9p8oFpUnvyy0sUPw3_dE80WIbLvqt5VsZpA6FFoW7TvUHJy0Pa6-eoQxEC4HkuArxmxfAH/s1600/kejriwal.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="fbPhotosPhotoCaption" id="fbPhotoSnowliftCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption"><....गंदगी साफ़ करने के लिए गंदगी में उतरना पड़ता है ..><br /> <br />
जनाब केजरीवाल जी की कार्य प्रणाली पर कई तथाकथित बुद्धिजीवी अपना अपना
तर्क गाहे बगाहे रखते रहते हैं! और यही उनके कर्म की इतिश्री भी होती है!
तालाब की गहराई और उसमे बसी गाद-गंदगी तालाब के किनारे हाथ बंधकर खड़े रहकर
खालिस कयास लगाने से नही मालूम की जा सकती! कैसे मालूम होगा, उस तालाब में
घुसना होगा! और केजरीवाल जी ने भी यही किया है! पिछले कई साल</span></span></a></div>
<div class="text_exposed_show">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkcqabJi6NnQp45Yw71apF9qKUPGmjSYZfkn1-oBDGgQyXZT4DgVJ_BaVscvCUDAB_kWY8JP9p8oFpUnvyy0sUPw3_dE80WIbLvqt5VsZpA6FFoW7TvUHJy0Pa6-eoQxEC4HkuArxmxfAH/s1600/kejriwal.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">ों
से वो भी यही प्रकिर्या अपना रहे थे, की शायद बाहर से ही बात बन जाये!
लेकिन अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने एक सही निर्णय लिया की राजीनीति को
समझने जानने की लिए राजनीती करना जरुरी है और राजनीति करने के लिए उस दलदल
में उतरना जरुरी है! कई लोगो को लगा की केजरीवाल जी का असली मकसद यही था!<br /> <br />
एक क्लास वन रैंक का अफसर लाखों रूपये तनखा, वाइफ भी शायद उसी रैंक की
अफसर अच्छी तनखा, किस चीज की कमी इन लोगो को! फिर भी लगे हुए हैं गरीबों
के लिए आम आदमी के लिए! इस तरह के आदमी का क्या स्वार्थ हो सकता है, जो
अपनी भरी पूरी जिन्दगी को दाव पर लगा कर आम लोगो की समस्या को ढूंढने और
हल करने निकल पड़ा! लेकिन इस इंसान ने जब जिद्द ठान ही ली की ऐसा ही करना
है! तो लोगो को पता नही इसमें क्या स्वार्थ नजर आ रहा है! अगला भला मानस
एक कोशिश तो कर ही रहा है की कीचड़ में सुगन्धित कमल खिल जाये! बुराई क्या
है इसमें! बजाये इसके की हम उस शख्श की तारीफ करे, साथ दे और उसके आम
आदमी के हित के लिए किये जा रहे इस अश्वंमेघ यज्ञ में अपनी भी एक आहुति दे,
हम उल्टा उसको ही शक की नजरों से देख रहे हैं! अगर आप इतना भी नही कर सकते
तो कम से कम उसके द्वारा किये जा रहे प्रयासों का मखौल तो न बनाये! अगला
इंसान एक कोशिश कर रहा है, कितना कामयाब होता हे ये वक़्त की बात है! लेकिन
एक सार्थक कोशिश तो जारी है न! वो भी हम सब के लिए!<br /> <br /> केजरीवाल और
उनकी टीम ने कई खुलासे किये! लोगो को सच्चाई पता लगी! की किस तरह ये
व्यवस्था नेता और नौकरशाही इस देश को लूट रहे हैं! वो भी मय सबूत के! बरना
हम सब कयास ही लगाते रहते थे की भ्रष्टाचार हो रहा हे ये है वो है! लोगबाग
कहते हैं की इनके द्वारा किये गए खुलासों पर आज तक कुछ नही हुआ! सब ज्यूँ
का त्यूं ही है! मैं ये कहना चाहता हूँ की जिस हवेली के दरवाजे सदिओं से
खुले ही न हो उसकी सफाई-गंदगी मिटने के लिए बहुत वक़्त लगता है और गंदगी साफ़
करने के लिए गंदगी में उतरना पड़ता है! ये बात तो टीम केजरीवाल भी कह रही
है! की सारा सिस्टम और ताकत सरकार के कब्जे में है! कोई कुछ कैसे कर सकता
है! उसी के लिए इस राजनीति में उतरना एक मात्र उपाए है!</a></div>
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkcqabJi6NnQp45Yw71apF9qKUPGmjSYZfkn1-oBDGgQyXZT4DgVJ_BaVscvCUDAB_kWY8JP9p8oFpUnvyy0sUPw3_dE80WIbLvqt5VsZpA6FFoW7TvUHJy0Pa6-eoQxEC4HkuArxmxfAH/s1600/kejriwal.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkcqabJi6NnQp45Yw71apF9qKUPGmjSYZfkn1-oBDGgQyXZT4DgVJ_BaVscvCUDAB_kWY8JP9p8oFpUnvyy0sUPw3_dE80WIbLvqt5VsZpA6FFoW7TvUHJy0Pa6-eoQxEC4HkuArxmxfAH/s1600/kejriwal.jpg" /></a><br />
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /></a></div>
Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-87316690611840410032012-09-15T16:12:00.002+05:302012-09-15T16:12:44.122+05:30जब सभी लोग राजी तो क्या करेगा काजी!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /><br /><br />मैंने पहले भी कहा था जब अन्ना
हजारे और बाबा रामदेव अनशन कर रहे थे भिराश्ताचार के खिलाफ, जैसा कि
एक्सपर्ट लोग कहते हैं कि भिराश्ताचार मिटना या मिटाना नेक्स्ट तो
इम्पोसिबिल टास्क है! शरद यादव जैसे नेता भी पार्लियामेंट में
चिल्ला-चिल्ला कर यही बोलते रहे कि अगर जनलोक पल बिल पास हुआ तो फिर सिस्टम
काम कैसे करेगा, फिर सिर्फ शिकायत ही शिकायत और मुक़दमे दर्ज होंगे! और भी
कई लोग इस बीमारी को एक्सेप्ट करते रहे हैं,करते हैं! कि इसका मिटना
मुश्किल है! <br /><br />तब मैंने अपनी मंद बुध्ही से यही कहा कि भिराश्ताचार
को कानूनी दर्ज़ा दे दिया जाना चाहिए! हर काम के ओफ्फिसिअल रेट फिक्स्ड
किये जाने चाहिए! बैसे तो रेट अभी भी फिक्स्ड हैं! लेकिन अनोफिसिअल हैं!
तभी लोग शोर मचाते हैं कि भिराश्ताचार हो रहा है! अगर हम ये कानून पारित
कर दे तो काफी हद्द तक या काहे कि पूरी तरह इस समस्या से निजात मिल जाएगी!
और इस तरीके से इकठ्ठा किया गया पैसा कुछ सरकारी खजाने में और बाकि
सम्बंधित विभाग के अधिकारिओं और करमचरिओं में उनकी पोसिशन कि हिसाब से बाँट
दिया जाना चाहिए! <br />इसी प्रकार जो आये दिन घोटाले होते रहते हैं, उनको
भी इसी फार्मूले से क्रियांबित किया जा सकता है! को घोटाले का एक हिस्सा
सरकारी खजाने में! बाकि सम्बंधित मंत्रालय के मंत्री से लेकर संत्री के
पास! <br /><br />अब इसका फ़ायदा, सारे काम धड़ल्ले से होंगे, फटाफट होंगे!
कोई काम में देरी नही होगी! जनता खुश, अधिकारी खुश, मंत्री खुश और संत्री
भी खुश! और जो सबसे बड़ा फ़ायदा होगा कि सरकारी खज़ाना जो आये दिन ख़ाली
होता रहता है, कभी नही होगा! क्यूंकि इन सब मामलों से जो रकम जुटेगी उसका
अफिसिअल रिकॉर्ड होगा! फिर सरकार को न तो कोई टैक्स लगाने या बढ़ाने कि
जरुरत होगी, पेट्रोल/एलपीजी /डीजल आदि के रेट बढ़ाने कि भी अब्श्यकता नही
होगी! इन केस कभी जरुरत पड़ भी गयी तो, मिचुअल अंडरस्टेंडिंग से एक बड़ा
घोटाले को अंजाम दो और खजाने कि भरपाई करो! जब सब कुछ ट्रांसपेरेंट हो
जायेगा तो किसी को भी कोई प्रोब्लम नही होगी! न आन्दोलन/ न कोई
पक्ष/बिपक्ष सब राजी तो क्या करेगा काजी! तंग आ चूका हूँ मैं और ये देश!
सालों से सोच रहे हैं कि कैसे निपटेंगे! देखा जहाँ चाह बहां राह!<br /><br /> (...इक ख्याल अपना सा ... "आलोक" )</a></div>
Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-71170779983745199942012-09-11T10:24:00.001+05:302012-09-11T10:24:49.149+05:30ये .शरीफों कि बस्तियां हैं................<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><span class="userContent">ये .शरीफों कि बस्तियां हैं<br /> जरा झगडे निपटा दीजिये!<br /> <br /> जो ..शराफत के भ्रम में हैं<br /> उनको आइना दिखा दीजिये!<br /> <br /> बेटियां हो रही हैं जवान<br /> जरा नजरे झुका लीजिये !<br /> <br /> लोग गमो के मारे हुए हैं</span></a><br />
<div class="text_exposed_show">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"> जरा साकी पिला दीजिये!<br /> <br /> ये बेईमानो कि सरकार है<br /> इसको रास्ता दिखा दीजिये!<br /> <br /> (...इक ख़याल अपना सा " आलोक" )</a></div>
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /></a></div>
Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-28813768593550275742012-09-08T16:27:00.003+05:302012-09-08T16:27:55.706+05:30सहमा हुआ इंसान और मजाक उड़ाती हुयी सब्जियां!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /><span class="userContent"><br /> <br /> कल पत्नी जी लगभग चिल्लाते हुए, ए जी सुनो आज तो कम से कम मंडी जाकर<br /> सब्जी ले आओ! पिछले एक हफ्ते से पानी में दाल खा खा कर बोर हो गए हैं! हमने<br /> श! श! श! करते हुए पत्नी से कहा चुप करो भाग्यवान, पडोसी</span></a><br />
<div class="text_exposed_show">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"> सुनेंगे तो कहेंगे कि<br /> इनके यहाँ आजकल दाल बहुत बन रही है! बहतु पैसा हे इनके पास, पत्नी जी तुनक कर<br /> बोली बड़े आये अपनी इज्जत बनाने वाले, पिछले एक हफ़त से तो सब्जी मंडी गए नही,<br /> पडोसिओं को सब पता है! आजकल अच्छों अच्छो कि औकात सब्जी मंडी में दिखाई पड़<br /> रही है! हमने कहा ठीक है भाग्यवान ऐसा करते हैं कि आज गुरुवार है पहले साईं मंदिर<br /> जाकर बाबा का आशीर्वाद ले लेते हैं, उसके बाद मंडी में घुसने कि हिम्मत करेंगे! तब तक<br /> रात भी हो जाएगी और तुमको पता ही हे कि देर रात में सब्जी भी सस्ती मिल जाती है! <br /> अपने प्लान के मुताबिक हम सब्जी मंडी पहुंचे!<br /> जैसे ही हमारी नज़र लौकी(घिया) पर पड़ी, वो चिल्लाई; बेशर्म जब भी आता है मुझे ही घूर<br /> घूर कर देखता रहता है, पहले तो लाखाता भी नही था, आजकल हद्द से ज्यादा नजदीकियां<br /> बढ़ाने में लगा हुआ है! रोज मेरे चिकने बदन पर तेरी भेड़िये जैसी निगाहे गडी रहती हैं<br /> हमने एक शरीफ इंसान कि तरह उसके ताने सुने और आगे बढ़ लिए!<br /> जैसे ही हमारी नजर आलू पर पड़ी, वो बड़ी ही धूर्तता से मुस्कराया,<br /> मंडी में जगह जगह ऐसे पड़ा था जैसे कोई मोहल्ले का टटपूंजिया गुंडा<br /> बीच सड़क पर अपनी बाइक लेकर खड़ा हो, और आने जाने वाले उसको<br /> सलाम ठोंकते हुए आगे बढ़ते हैं! आलू के बगल में प्याज छिनाल मन ही मन<br /> मुस्करा रही थी, जैसे कि उसको सारी सच्चाई मालूम हो! अगली दूकान पर<br /> टिंडे बादशाह बड़ी शान से हुक्का गुड़ गुडा रहे थे, और हमें ऐसे नजरअंदाज कर रहे थे<br /> कि जैसे पहचानते ही नही, हमने फिर भी हिम्मत करके उनके हालचाल लेने कि कोशिश<br /> कि! पहले तो उन्होंने हमें इग्नोर किया, फिर धीरे से बोला बाबू जी अगर मेरे हाल-चाल<br /> लेने कि कोशिश करोगे तो आपकी हाल और चाल दोनों बिगड़ जायेंगे, इसलिए अच्छा<br /> हे कि चुपचाप आगे बढ़ लो! <br /> अगली दूकान पर बैगन अपने शरीर पर तेल मालिश कर चिकना और ताज़ा दिखने कि<br /> कोशिश कर रहा था! जैसे ही उसकी नजर हम पर पढ़ी बोला बाबू जी आज तो कई दिन बाद मंडी<br /> में नज़र आये हो! क्या बात है आजकल आपके दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं! हमने उसको चुप रहने का<br /> इशारा किया और हालचाल लिए, कहने लगा कि पहले तो लोगबाग मुझे मज़बूरी में ले लेते थे,<br /> लेकिन आजकल मेने उनको मजबूर कर दिया है!<br /> कुल मिलाकर हर सब्जी हमें चिढ़ा रही थी, या कहे कि हमें हमारी औकात दिखा रही थी!<br /> एक चक्कर मारकर हम फिर से लौकी के पास आकर खड़े हो गए, और इसके पहले कि<br /> वो हमें फिर से ताने मारने शुरू करती, हमने झट से उसे उठाकर अपने थैले में बंद कर लिया!<br /> <br /> (..... इक ख़याल अपना सा... आलोक)</a></div>
</div>
Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-54797896025880114892012-08-28T15:25:00.001+05:302012-08-28T15:25:43.358+05:30देश का भविष्य! <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;" target="_blank"></a><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilcbk5meMDK6cycgq64Gvn5UqBWCQV0Z8zYRaVKC0Aur47WkzeZ8qr9LqEFwIDlkRBNVrhvlF5ADb6HZIo8_jeDj9fVzRdUYhvNRsoe4UZ0tMjtm13gtByERnYlLaxKdOCWGFG4j3zNVBi/s1600/hungry.gif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilcbk5meMDK6cycgq64Gvn5UqBWCQV0Z8zYRaVKC0Aur47WkzeZ8qr9LqEFwIDlkRBNVrhvlF5ADb6HZIo8_jeDj9fVzRdUYhvNRsoe4UZ0tMjtm13gtByERnYlLaxKdOCWGFG4j3zNVBi/s1600/hungry.gif" /></a></div>
चूहला, कुछ गीली लकड़ियाँ , भीगे हुए उपले,<br /> माँ हाथ में फूंकनी लिए जोरो से खांसते हुए<br /> बेदम होती हुई सी, एक नाकाम कोशिश को<br /> कामयाबी कि और मोड़ती हुई, आग जल उठती है!<br /> <br /> ये आग तो जल ...उठी, इसके जलने से पेट कि आग<br />
<div class="text_exposed_show">
और जोरो से ...भड़क उठती है एक उम्मीद के साथ,<br /> सवाल मुहं बाये खड़ा है ख़ाली बर्तन चूहले पर चढ़ा है<br /> उधर.. ख़ाली ...पड़े डब्बों में यूँ ही कुछ टटोलती माँ!<br /> <br /> इसी निरर्थक प्रयास में, चूहला ..अथक ...कोशिशों के बाद<br /> फिर से बुझ जाता है, ख़ाली बर्तन धीरे से मुस्करा उठता है<br /> देश का ..भविष्य थाली और कटोरी लिए बैठा है इंतजार में<br /> माँ को भविष्य कि चिंता सता रही है, ये उसकी जिम्मेदारी है!<br /> <br /> उधर संसद में बहुत ही जिम्मेदार लोग,इस पर बहस कर रहे हैं<br /> गरीबों के लिए बजट में संशोधन कर रहे हैं दो वक़्त का खाना<br /> जरुरी है सभी के लिए, सरकार इसके लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है <br /> बजट राशी पिछले साल से दोगुनी कर दी जाती है, उनका काम पूरा!<br /> <br /> क्यूंकि भविष्य कि चिंता तो उस माँ कि जिम्मेदरी है!<br /> (इक ख्याल अपना सा... "आलोक")</div>
</div>
Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-62194037718614841042012-08-13T17:38:00.000+05:302012-08-13T17:38:04.824+05:30हाई ये महगाई<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><br />
<br />
जब छोटा था, छोटा मतलब छोटा, यानि के ५वि ६वि कक्षा में पढता था , तब हमारे यहाँ कोयले कि <br />
प्रेस होती थी! प्रेस में अंगारे जलाने का काम मेरा ही होता था! बाबू जी ये काम मुझको ही सौंपते थे, <br />
ऐसा इसलिए नही कि मैं इस काम में निपुड था, बल्कि इसमें मेरा व्यक्तिगत
फ़ायदा था, अब आप लोग सोच रहे होंगे कि इत्ती छोटी उम्र में कोई फ़ायदा
कैसे सोच सकता है, वो भी उस ज़माने में, लेकिन भैये फ़ायदा था तभी हम सबसे
आगे रहते थे कि प्रेस हम गरम करेंगे! मुझको इत्ती छोटी उम्र से ही चाय कि
लत कुछ हद्द से जायदा हि लग गयी थी! जब देखो कैसे चाय बना कि पी जाये !
इसी जुगाड़ में रहता था! लेकिन प्रेस जलाने का काम तो सिर्फ इतवार को ही
होता था! बस घर के एक कौने में हम प्रेस गरम करते थे, और चुपके से एक
बड़ी सी कटोरी में , पानी, चाय कि पत्ती/ चीनी और ढूध डालकर प्रेस के कोयले
पर चढ़ा दिया करते थे, <br />
और हाथ में पंखा या गत्ता लेकर प्रेस गरम करने के साथ साथ अपनी चाय भी बना
लिया करते थे! हालाँकि चाय धुआंयी हुई बनती थी, लेकिन जिस स्मार्टनेस हम
चाय बनाते थे तो उसका वो स्वाद भी गज़ब का होता था! कई बार चाय बन्ने में
देरी हो जाती थी, बाबू आवाज लगाते प्रेस अभी तक गरम नही हुई, हम धीरे से कहते कि बस होने वाली है कोयले जरा गीले हैं बाबू जी! अब बाबू जी को क्या पता कि हम चाय पका रहे हैं! <br />
कहते जल्दी से लेकर आ! <br />
लेकिन अब हमने चाय पीनी काफी काम कर दी है! इतनी महगाई में चाय, चीनी
इतनी कडवी होती जा रही है कि पूछो मत! जब भी कोई आता है दोस्त बैगेरा हम
महगाई का रोना शुरू कर देते हैं! लेकिन पत्नी जी अपनी फोरमेलिटी निभाने से
बाज नही आती! तब हम कहते भाई देख ले मैंने तो अब चाय पीनी छोड़ दी है!
दोस्त कि और इशारा कस्र्के पूछते कि तेरे को पीनी हो तो बनाबा दूँ! अब
बेचारा वो शर्म के मरे मना कर देता! हाँ ये बात और है कि ऑफिस में हम २
चाय एक्स्ट्रा ही पीकर घर को जाते हैं! क्या करे इस मुई नेह्गायी से कैसे
तो पार पाना पड़ेगा! पता नही ये महगाई और कौन कौन से हमारे शौक छुडवाएगी ! <img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /></a></div>
Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-19136468758457505462012-08-06T13:46:00.004+05:302012-08-06T13:46:57.407+05:30<----भाव खाना (नखरे मारना) --><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /><br /> <br /> अरे ओ कलुआ, हाँ माँ मुझे इसी नाम से बुलाती थी! शायद घर में सबसे ज्यादा सम्बला रंग<br /> मेरा ही था! मैं थोडा अनमना सा माँ के पास जाता हाँ माँ बोलो, माँ बुरादे कि अंगीठी के पास<br /> बैठी शाम कि चाय बना रही होती है! कहती जा जाकर अपने बाबूजी को चाय दे आ! स्कूल से<br /> आने के बाद टूशन पढ़ा रहे हैं, थकान हो रही होगी! मैं चाय का कप लेकर बाबू जी के कमरे में<br /> जाता, और कहता बाबू जी चाय.. </a><br />
<div class="text_exposed_show">
बाबू जी शायद थकान के मारे या अत्येधिक परिश्रम के कारन<br /> गुस्से में चिल्लाते ले जाओ चाय मुझे नही पीनी! मैं एक बार अनमने मन से कोशिश करता कि पी<br /> लो, बाबू जी पहले से भी जोरो से चिल्लाते कहा न बापिस ले जा! मैं डर के मरे चाय का कप बापिस ले<br /> जाकर माँ के पास आ जाता! माँ कहती क्या हुआ, मैं कहता नही पी रहे , चिल्ला रहे हैं, माँ के<br /> चेहरे पर तनाव साफ़ झलकता था! लेकिन कोई उपाए नही! फिर कहती ठीक है रख दे, छोटे को भेज<br /> उसी के हाथ भेजती हूँ! बाबू जी और छोटे भाई का तालमेल अनूठा था, दोनों एक दूसरे को अच्छे से<br /> समझते थे, लेकिन उस वक़्त मेरा बाल मन इसको कुछ और ही समझता था, कि बाबू जी मेरे हाथ<br /> से चाय नही लेते, जबकि छोटे के हाथ से ले लेते थे! या हो सकता हे कि वो जाकर बाबू जी कि मनुहार<br />
करता हो कि पी लीजिये! और मेरे से ये सब होता नही था! मैं उस वक़्त 8th
क्लास में था! तब मैं सोचता था कि बाबू जी के पैसे कि चाय बाबू जी फिर भी
नखरे क्यूँ मारते हैं! पीनी हे तो पियो नहीं पीनी तो<br /> मत पीओ! खैर जो भी हो, कई बार ऐसा होता था कि घर में सिर्फ मैं ही होता था, तब माँ के पास<br /> कोई चारा नही होता था मुझको ही चाय लेकर भेजती थी, और कहती थी कि बेटा जबरदस्ती रख<br /> के आ जाना! मैं कुछ नही कहता और चाय लेकर चला जाता, बाबू जी उसी तरह का बर्ताव नही पीनी<br /> ले जाओ बापिस, मैं रखने कि कोशिश करता बाबू जी जोरो से चिल्लाते बहरा हे क्या सुना नही! मैं डर के<br /> मरे बापिस ले आता! माँ के चेहरे पर फिर तनाव, और वो जानती थी कि आज तो कोई और हे भी नही,<br /> चाय कैसे पियेंगे तेरे बाबू जी, मैं कहता माँ छोटा टूशन से आ जायेगा तो उसके हाथ भेज देना! ये सिलसिला<br /> चलता ही रहता था! और बाबू जी अपने इस बर्ताव के करना कई बार बिना चाय कि ही रह जाते थे!<br /> माँ अपनी ड्यूटी पूरी शिद्दत से करती थी, रोजमर्रा का यही काम था, ऐसा अक्सर ही होता था कि मैं ही<br /> घर पर होता था, मैं माँ कि मज़बूरी समझता था, साथ ही बाबू जी के वर्ताब से भी आहत था, लेकिन<br /> जब माँ चाय बनाती तो मुझे आवाज नही देती, लेकिन मैं जाकर माँ से कहता कि ला माँ मैं बाबू जी<br /> को चाय दे आऊ, माँ मना कर देती थी, रहने दे तेरे हाथ से नही लेंगे, लेकिन मैं जिद्द करता के दे तो<br /> सही, देखता हूँ कब तक नही लेंगे मेरे हाथ से, अब मैं चाय लेकर बाबू जी के कमरे में जाता, बाबू जी तिरछी<br /> नजरों से मुझे देखते और पढ़ाने में मशगूल हो जाते, मैं धीरे चाय टेबल पर रख कर कमरे के बाहर आ जाता<br />
और कन्खिओं से देखता कि बाबू जी चाय पी रहे हैं या नही, उधर माँ का तनाव
अपनी जगह, फिर मैं देखता कि बाबू जी चाय पी रहे हैं, मैं आकर माँ को
खुशखबरी देता कि आज तो बाबू जी न चाय पी ली! माँ के<br /> चेहरे पर आये संतुष्टि के भाव से मैं आत्मविभोर हो जाता! फिर मैं सोचता कि अब बाबू जी क्यूँ नही चिल्लाते<br />
मैं जब भी चाय लेकर जाता! शायद इसलिए कि उनको पता हे कि ये मन-मनुहार नही
करने वाला, इसलिए खामखा नखरे दिखाने में अपना ही नुक्सान है! मेरा बाल
मन उस वक़्त इतना ही सोच पाता था! इसको<br /> मैं अपनी जीत भी मानने लगा था, कि कोई भी इंसान भाव(नखरे) क्यूँ खाता है! और ये मेरी तभी से आदत<br /> भी पड़ गयी कि खामखा के नखरे किसी के भी नही सहने.. जब मैंने अपने ही बाबू जी के नखरे नही सहे,<br /> तो किसी और कि तो बात ही क्या है! .....<br /> <br /> (इक ख़याल अपना सा! .......... कथानक सच्ची घटना पर आधारित है! आप सभी के कमेंट्स का आपकी<br /> बहुमूल्य राय के साथ स्वागत है!</div>
</div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-51081589833507112002012-06-13T11:03:00.002+05:302012-06-13T11:03:29.079+05:30कुछ छानिकाएं....................<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /> </a><br />
कुछ छानिकाएं<br /> <br /> १-<br /> तस्वीर उनकी<br /> बैचेनी इनकी<br /> कयामत का ये मंजर<br /> दिल में उतरता हुआ खंजर<br /> इश्क में लहुलुहान होता हुआ<br /> अंजानी राहों में भटकता हुआ<br /> बढ़ता चला जा रहा हे दीवाना<br /><span class="text_exposed_show"> मंजिल का कोई पता नही<br /> दीवनगी देखते ही बनती है!<br /> <br /> २-<br /> कभी दिल उनका<br /> कभी इनका भटकता है<br /> हर कोई कही ना कही अटकता है<br /> सिलसिला अनवरत जरी है<br /> खुदा जाने किसकी लाचारी है<br /> यही फेस-बुक , ट्विट्टर और<br /> ना जान कितनी सोसिअल साइट्स<br /> कि ये अत्याधुनिक लाइलाज बीमारी है!</span></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-67017364432583984262012-06-13T11:01:00.002+05:302012-06-13T11:01:37.702+05:30पांचवा खम्बा......................<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" />लोकतंत्र का स्वेनिर्मित पांचवा खम्बा<br /> दंभ भरता हुआ, लडखडाता हुआ<br /> खड़ा हो रहा है,<br /> हाल इसका भी बाकि के खम्बो<br /> कि तरह हो रहा है,<br /> क्यूंकि लाठी और भैंस का<br /> खेल यहाँ भी जारी है,<br /> गुटबाजी और बाजाने का<br /> प्रचालन यहाँ जोरो पर है,<br /> पीट रहे हैं या पिट रहे हैं<br /><span class="text_exposed_show"> मगर नाम तो हो रहा है<br /> देश के हालातों को<br /> सुधारने का दंभ भरने वालों<br /> पहले खुद तो सुधर जाओ<br /> अभी तो घुटने के बल हो<br /> खड़ा होना तो सीख जाओ<br /> फिर चाहे जितनी मर्जी<br /> दौड़ लगाओ....</span></a></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-59648456449768517132012-06-13T11:00:00.003+05:302012-06-13T11:00:44.043+05:30झांकी हिन्दुस्तान कि...................<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" />आओ बच्चों तुम्हे दिखाए झांकी हिन्दुस्तान कि<br /> सारे चोर संसद में बैठे मर्जी है भगवान कि... ...<br /> खुदा खैर करे.. खुदा खैर करे.......<br /> <br /> इन चोरो ने लूटा है मेरे देश का कोना कोना है<br /> गरीब/बेचारी जनता इनके हाथ का खिलौना है<br /> खुदा रहम करो ...... खुदा रहम करो...<br /> <br /> पीएम् ने भी लुटवा दी है इज्जत इसकी शान कि<br /> भगवान भरोसे तुम न बैठो ये वक़्त है बलिदान कि<br /><span class="text_exposed_show"> खुदा रहम करो ... खुदा रहम करो....<br /> <br /> आओ मिलकर लड़ाई करे हम इस तिरंगे कि आन कि<br /> इस धरती से तिलक करो ये धरती है बलिदान कि<br /> वन्दे मातरम...... वन्दे मातरम........</span></a></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-16244715207214287002012-05-19T15:38:00.002+05:302012-05-19T15:38:59.929+05:30सिम्पली रिलेशन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" />जैसे ही हमने पहली मुलाकात में <br />
उनको संबोधित किया दीदी-><br />
वो झट से बोली मैं ममता बनर्जी नही हूँ<br />
मुझे दीदी मत बोलो प्लीज! <br />
मेरा कार्टून चाहे जितना बना लो!<br />
<br />
हमने थोड़ी देर सोचा फिर बोले<br />
बहिन जी कहू तो चलेगा...<br />
वो बहुत जोरो का चिल्लाई <br />
खबरदार जो मेरी तुलना मायावती <br />
से कि ..गाली देनी हे तो ऐसे ही दे लो,<br />
लेकिन बहिन जी कभी न बोलियो!<br />
<br />
हम असमंजस में पड़ गए<br />
अब क्या बोले फिर दिमाग <br />
में कुछ आया, हमने डरते हुए <br />
झट से तुक्का बिठाया<br />
अम्मा कहू तो कैसा रहेगा..<br />
वो झट से बोली <br />
में जयललिता जितनी भी <br />
बुड्ढी नही हूँ! <br />
फिर वो गुस्से में बोली.. <br />
क्या आपको इन राजनितिक <br />
नामों के अलावा कोई और नाम नही आता<br />
अब हमारे चौंकने कि थी बारी <br />
कि हम तो सिम्पली रिलेशन <br />
बैठा रहे थे! <br />
ये राजनितिक नाम तो अपने आप<br />
जुड़ते जा रहे थे!</a></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-47414561399164071032012-05-15T18:40:00.002+05:302012-05-15T18:40:49.923+05:30तेरा क्या होगा रे राजा........................<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /> </a><br />
आरे ओ चिंपू, कित्ते घोटालेबाज़ अंदर किए थे अपुन<br /> सरदार, 4 बड़े और अनगिनत छोटे<br /> हूँ , कितने बाहर आए छूटकर अभि तक<br /> सरदार, सारे छूट गए बस एक ही बाकी है<br /> हूँ, कौन हे रे वो,<br /> सरदार , राजा!<br /> क्या कहा , राजा,. मजाक करते हो हम से<br /> राजा तो हम हैं!<br /> सरदार , उसका नाम राजा है!<br /> हूँ , तो ऐसा बोलो ना<br /><span class="text_exposed_show"> ... तेरा क्या होगा रे राजा<br /> सरकार, मेने ये घोटाला अकेले नही किया<br /> हम सबने मिलकर किया ! <br /> हूँ,. वो हमे मालूम हैं राजा<br /> लेकिन हमे सिर्फ़ चबन्नि में निपटा रहे थे<br /> और बरन्नि अकेले अकेले खा रहा थे<br /> अभी क्या पोजिसन है... सब माल बारोबरा बाँट गया नि!<br /> जी सरकार! <br /> ठीक है कल तू भि बाहर आ जायेगा!<br /> लेकिन ध्यान रहे, मुँह नि खोलना<br /> वरना फिर से अन्दर कर दूँगा!<br /> और आगे से ध्यान रहे, हिसाब <br /> बरोबर करने का !</span></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-5358844757376910632012-05-12T14:04:00.001+05:302012-05-12T14:04:33.356+05:30"माँ" तुझे सलाम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /><br /> <br /> जग में सबसे सुंदर है ये नाम<br /> चाहे माँ कहो या राम<br /> बोलो माँ माँ माँ <br /> "माँ" एक पूरा पैकेज <br /> हर समस्या का,<br /> जिसके चेहरे पर ना दिखती <br /> कभी कोई शिकन <br /> उसे माँ कहते हैं<br /><span class="text_exposed_show"> माँ आज भी मेरा <br /> हाल-चाल पूछ ही लेती है,<br /> बेटा ठीक से खाया कर<br /> कित्ता कमजोर हो गया हे<br /> पत्नि से कहती है <br /> क्यूँ रि तू इसका खयाल <br /> नहीं रखती....<br /> देख् कित्ता कमजोर हो गया <br /> गया है.. जबकि हक़ीक़त में मेरा<br /> वजन पिछ्ले 10 सालों में 20 किलो<br /> बढ़ गया है! <br /> लेकिन माँ का क्या <br /> वो माँ है , <br /> उसका प्यार <br /> अंत हीन प्यार<br /> कभी ना भुलाने वाला!<br /> माँ तुझे सलाम!</span></a></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-48203620065593653982012-05-01T13:56:00.002+05:302012-05-01T13:57:13.494+05:30रिश्ते<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /></a><br />
<h6 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1}">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3}">रिश्ते कितनी जल्दी बन जाते हैं<br /> क्य चाहिए आज इन रिश्तों को <br /> सिर्फ़ एक अदना सा नाम!<br /> तभी ये रिश्ते वक्त से पहले ही <br /> रिसने से लगते हैं<br /><span class="text_exposed_show"> क्योंकि ये वक्त कि कसौटी पर<br /> कसे नहीं होते! <br /> आज कल रिश्ते रेडीमेड से<br /> होने लगे हैं!<br /> "Use & थ्रू" कि फिलोसिफि पर<br /> आधारित ये रिश्ते!<br /> जब तक पसंद आए, निभाये<br /> नहीं तो आगे चल भाये!</span></span></h6>
</div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-21972536090231097742012-04-30T10:53:00.001+05:302012-04-30T10:53:31.182+05:30हाँ मैंने अब उसकी गली जाना छोड़ दिया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" />हाँ मैंने अब उसकी गली जाना छोड़ दिया<br /> हाँ उसके अब लिए गुनगुनाना छोड़ दिया<br /> शिकवा करके भी वो शिकायत नहीं करते<br /> उनकी बेचैनी को मैंने आजमाना छोड़ दिया|</a></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-33931094002466563242012-04-23T10:49:00.001+05:302012-04-23T10:49:19.311+05:30वो मोहब्बत के मारे हुये हैं...........(ik khayaal apna sa)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /></a><br />
<h6 class="uiStreamMessage" data-ft="{"type":1}">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3}">वो मोहब्बत के मारे हुये हैं<br /> उनको चेहरा दिखा दीजिये |<br /> <br /> मंजिले खो गई हैं मगर<br /> उनको अपना पता दीजिये| <br /><span class="text_exposed_show"> <br /> सांस अतकी हुई हे अभी तक<br /> बस इक बार मुस्करा दीजिये | <br /> <br /> इंतजार दिदार-ए-यार का<br /> जरा पर्दा गिरा दीजिये|<br /> <br /> आज मजनू ने आवाज दी है<br /> मुझको लैला से मिला दीजिये|<br /> <br /> वो मोहब्बत के मारे हुये हैं|<br /><span> ..............................</span><wbr></wbr><span class="word_break"></span>........</span></span></h6>
</div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-1029147912612680382012-03-23T12:06:00.002+05:302012-03-23T12:06:40.545+05:30वक़्त ने इस कद्र बीजी कर दिया है आलोक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /><br />
पत्नी जी बोली ए जी आप तो <br />
हमारी तरफ देखते ही नही<br />
हमने कहा क्यूँ कोई खास बात<br />
वो मुस्करायी अपना फेस<br />
हमारे और करीब लायी,<br />
बोली आप भी न<br />
एक दम बुध्धू हो,<br />
हमने मन ही मन सोचा<br />
ये बात तो एक दम सच बोली,<br />
फिर वो बोली, जरा गौर फरमाए<br />
और हमारा चेहरा देखकर <br />
अंतर बतलाये,<br />
हमने उचटती से नज़र <br />
उनपर डाली, फिर कहा<br />
क्या यार क्यूँ टाइम <br />
खोटा करती हो,<br />
एक दम जैसे कल थी<br />
बैसी ही लगती हो,<br />
वो गुस्से से तमतमाई <br />
और जाकर ब्यूटी-पर्लोर <br />
वाली से लड़ आई,<br />
बोली मेरे पैसे बापिस कर<br />
मेरे हबी को तो मैं<br />
कल जैसे ही नज़र आई!<br />
तब जाकर हमें <br />
पूरी बात समझ आई,<br />
फिर हम मन ही मन <br />
अपनी बेवकूफी पे मुस्कराए,<br />
और पत्नी कि और<br />
इशारा किया और कहा<br />
यार लूकिंग ग्रेट,<br />
डू नोट लूस फेथ!<br />
तुम बिना मकेउप के <br />
हसीं लगती हो, <br />
क्यूँ ब्यूटी-पर्लोर पर<br />
इतना पैसा खर्च करती हो!</a><br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank">वक़्त ने इस कद्र बीजी कर दिया है आलोक <br />
कि खुद से मिले हुए इक जमाना बीत गया!</a><br />
</div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-50361675716858148332012-03-17T16:53:00.000+05:302012-03-17T16:53:08.552+05:30इक प्यार का नगमा है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" />इक प्यार का नगमा है.. मौजों कि रवानी है..<br />
जिन्दगी और कुछ भी नही, तेरी मेरी कहानी है<br />
.....<br />
कल तक जो हीरो थे, बन गए सब जीरो हैं,<br />
सरकार निकम्मी है, हम सब कि मज़बूरी है<br />
<br />
बदलाब हमें लाना है, कुछ ऐसा कर जाना है<br />
हम तो लुट चुके हैं, सरकार के पास बहाना है <br />
<br />
रोने से है क्या फ़ायदा, अब हथियार उठाना है<br />
बहुत हो चूका है अब, इन गुंडों को भगाना है,<br />
<br />
जाग सको तो जाग जाओ, प्रण कुछ ऐसा कर जाओ<br />
जीवन खुद का संवर न सका, अगली पीढ़ी का संवार जाओ,<br />
<br />
अब आस यही बाकि, यही जिद्द हमने ठानी है<br />
जिदंगी और कुछ भी नही, तेरी मेरी कहाँ है,<br />
<br />
इक प्यार का नगमा है...<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
..</a></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-80220044616752752802012-03-03T17:16:00.002+05:302012-03-03T17:16:51.059+05:30काश कि मैं, मैं होती!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" />काश कि मैं, मैं होती!<br />
<br />
हे न अजीब सा ख़याल,<br />
लेकिन करे क्या?<br />
खैर...<br />
अगर मैं , मैं होती<br />
फिर मैं अपना STATUS UPDATE करती<br />
<br />
"हा हा हा हा अह अह हा हा ...."<br />
<br />
<span class="text_exposed_show"> फिर ढेरों कमेंट्स ...<br />
<br />
१. वाह मेडम आप क्या हंसती हैं "लिखावट में"<br />
जब लिखावट में ये हाल हे तो<br />
सामने कैसे हंसती होंगी..<br />
बहुत खूब, मजा आ गया,यूँ ही हँसते रहिये..<br />
<br />
२. कितनी हसीं "लिखवाती हंसी" है<br />
मेडम आपका जवाब नही...<br />
<br />
३. मेडम सब ठीक तो हे न,<br />
यूँ इस प्रकार आपको हँसते देख<br />
सोच में पड़ गया..<br />
...<br />
..<br />
.<br />
.<br />
.<br />
६८. मेडम पलीज एक बार और "लिखावट " में<br />
हंसिये न .. कित्ता अच्छा लगता है..<br />
<br />
and still going on...<br />
..<br />
और अभी मैं, मैं हूँ..<br />
<br />
जैसे ही मेने status update किया<br />
<br />
pls support to this..<br />
by spreading this as much as you can..<br />
<br />
इक भाई अपनी बहिन के लिए इन्साफ<br />
मांग रहा है....<br />
१,२,३, ४ दिन गुजर गए<br />
घोर सन्नाटा.....<br />
फिर अचानक ५ वे दिन ..<br />
२ like..without comments..<br />
मैंने सोचा ये तो मैंने किसी<br />
दूसरे कि लिए social support<br />
माँगा था , तब ये हाल है.<br />
आखिर क्यूँ होता है ऐसा.<br />
क्या gender बाकी मायेने<br />
रखता है..<br />
मेरे ख़याल में हद्द से ज्यादा..<br />
और अंत में इतना ही..<br />
<br />
"आप हँसते हैं तो हलचल सी मच जाती है,<br />
मैं आंसू भी बहाता हूँ तो कोई पूछता नही "<br />
<br />
"इक ख़याल अपना सा......<br />
<br />
"Bura na mano holi hai..........."</span></a></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-6069476035242322872012-02-25T11:41:00.000+05:302012-02-25T11:41:04.957+05:30लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank">लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ,<br />
बाकी के तीन स्तम्भ कौन<br />
ये जानने कि मैने कभी भी<br />
नही कि झूठी कोशिश भी<br />
पता है क्यूँ. क्यूंकि जब से<br />
होश संभाला है, इस चौथे खम्बे<br />
के माध्यम से बाकी के तीनो<br />
खम्बो का हाल सच्चा-झूठा<br />
जब जब बयां किया जाता<br />
इस चौथे खम्बे कि लडखडाती<br />
आवाज, मुझे स्तब्ध कर जाती,<br />
और मैं सोचने लगता कि ये<br />
खम्बा भी दीमक लगा हुआ है<br />
बाकी के तीनो खम्बे के तरहा,<br />
लेकिन गिरने का नाम ये नही लेता<br />
जड़े जमाये हुए खड़ा है उस खोखले<br />
दीमक लगे हुए पेड़ कि भांति<br />
जिसका कि कोई अस्तित्व <br />
नही होता, सिवाए इसके कि<br />
वो एक खोखला पेड़ है. <br />
पता नही कव गिर जाये <br />
या काट दिया जाये <br />
हमेशा कि तरहा, <br />
फिर बही कहानी <br />
जिसका कोई अंत नही !<br />
लेकिन सुनाई बार बार <br />
जाती है.. !<br />
<br />
<br />
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<br />
<br />
<img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /></a></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7371278690460161523.post-45156613919910528912012-01-12T12:33:00.002+05:302012-01-12T12:33:56.917+05:30मजबूत लोकपाल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank"><img alt="Blog parivaar" src="http://img291.imageshack.us/img291/5009/42652443.jpg" /><span class="commentBody" data-jsid="text"></span></a><br />
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_4f0e84d1641b09d62099423"><a href="http://blogparivaar.blogspot.com/" target="_blank">हिन्दुस्तान कि संसद का खेल देखिये<br />
गधे मचा रहे हैं रेलमपेल देखिये<br />
मजबूत लोकपाल बने कुछ चिल्ला रहे हैं<br />
उनका अन्दर से है जो तालमेल वो देखिये<br />
घोटालों कि शुरुआत के जो नायक थे कभी<br />
<span class="text_exposed_show"> स्टेंडिंग कमिटी में भी उनका रोल देखिये<br />
संसद सर्वोच्च है वो कहते नही थकते<br />
आवाज दबाने का डवल रोल देखिये<br />
अन्ना डटे हुए हैं इस उम्र मैं अभी तक <br />
उनका और उनकी टीम का हौसला देखिये<br />
तलवारे खिंच चुकी हैं दोनों और से "आलोक"<br />
आये दिन हार-जीत का ये मंजर देखिये!</span></a></div></div>Khare Ahttp://www.blogger.com/profile/08834832296834095341noreply@blogger.com4