http://www.clocklink.com/world_clock.php
skip to main |
skip to sidebar
! श्री हरी क्षीर सागर में शेषनाग रूपी अपनी चिरपरिचित शैया पर आराममय मुद्रा में लेटे हुए थे और श्री प्रिया उनके चरणों में बैठी उनको देख मंद मंद मुस्करा रही थी! अकस्मात श्री हरी जोरो का मुस्कराये तो लक्षिमी जी ने अचंभित होकर पूछा क्या हुआ प्रभु सब ठीक तो है न, यूँ आप इस तरह अचानक क्यूँ जोरो से मुस्कराये! श्री हरी की मुस्कान और चौड़ी गई और बोले प्रिये बात ही कुछ ऐसी है, शनि देव बदहवास से इधर ही दौड़े चले आ रहे हैं, लगता है एक और लीला करने का समय आ गया है! लक्ष्मी जी श्री हरी के ये वचन सुन दुविधा के सागर में गोते लगाने लगी और कहने लगी प्रभु अभी तो कलयुग अपने प्रथम चरण में है और ये अचानक से लीला करने का प्रयोजन किसलिए ये तो विधि विधान के विरूद्ध है! श्री हरी बोले प्रिये कुछ समस्याएं ऐसी होती है जिनकी भविष्यवाणी करना असंभव होता है! वार्तालाप चल ही रहा था की द्वारपाल ने श्री हरी को शनिदेव के आने की सूचना दी! श्री हरी ने द्वारपाल को कहा की उन्हें अंदर आने दिया जाये! शनिदेव पसीने से तर वतर, सांस उखड़ी हुई उनकी हालत पतली देख लक्ष्मी जी घबरा गई और बोली है शनिदेव जिसके स्मरणं मात्र से पापिओं की हालत खराब हो जाती हो वैसी ही हालत आपकी खुद की आखिर ऐसा क्या अनर्थ कर डाला आपने, उन्होंने शनि देव से उनकी इस अवस्था का कारण बतलाने को कहा! शनि देव ने अपनी उखड़ी सांसो पर कंट्रोल किया और बोले मैया मैं तो जन्म से ब्रह्मचारी हूँ मैंने युगों युगों से आपके चरणो के आलावा आज तक किसी स्त्री पर नज़र नही डाली, लेकिन मृत्यलोक में अब स्त्रिओं ने मेरा ब्रह्मचर्य तोड़ने की ठान ली है, अब मेरा वहां पर रहना असंभव है इसीलिए मुझे अपने चरणो में स्थान दीजिये माते ! श्री हरी ये वार्तालाप सुन मुस्कराते रहे, शनि देव उनको देख गिड़गिड़ाए बोले प्रभु अब आप ही कुछ उपाए बतलाइये और मुझे इस भीषण संकट से मुक्ति दिलबाइये! श्री हरी बोले शनिदेव ये कलयुग है और इस कलयुग में हमारा प्रभाव अधिक न पड़ता लोग बाग़ हमें बस काम चलाऊ व्यवस्था की माफ़िक़ इस्तेमाल करते हैं और जो ये आपके असली भक्त है वो भी तो आपको इसीलिए तेल चढ़ाते हैं की उनके साथ जीवनभर जो संकट चस्पा हुआ है उससे आप उनको बचा कर रखे, लेकिन पुरुषो के लिए संकट रूपी पत्निओं को पता चल गया है की आप ही उनके पतिओं को उनकी प्रतारणओ से बचाते आ रहे हैं. इसिलिय अब उनका गुस्सा आप पर फूट रहा है, और वैसे भी हे शनि देव इस नारी रूपी बीमारी का इलाज तो युगो युगो से किसी के पास नही है! त्रेता युग में रावण जैसे प्रकांड पंडित को भी स्त्री का प्रकोप झेलना पड़ा , द्वापर युग में पांडव और कौरव दोनों ही स्त्री के कारण अपार परेशानियाँ उठानी पड़ी! अब ये अचानक से आई समस्या के समाधान के लिए हमें ब्रह्मा जी और महादेव से मशविरा करना पड़ेगा तब तक आप वापिस मृत्यलोक जाइए और जैसे तैसे इस समस्या से जूझिये! इतना कहकर श्री हरी वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए और बेचारे शनि देव बेहोश! जैसे ही ब्रह्मा जी और महादेव को श्री हरी के आने का भान हुआ तो ब्रह्मा जी वेदो के अध्यन में इस आपात्कालीन समस्या का उपाए खोजने लगे और महादेव वापस अपनी योग मुद्रा में लीन हो गए
~
विष्णु प्रभाकर जी ने कहा की दर्द सहने की यातना से गुज़रे बिना कोई लेखक
नही बन सकता! मेरा ये मानना है की इसका मतलब ये नही की आपने वो दर्द
झेलना है या वो यातना सहनी है! किसी का दर्द महसूस करके उस दर्द को अपने
शब्दों में उतारकर जनमानस के दिलो-दिमाग पर छा जाना भी साहित्ये ही है!
एक और बात उन्होंने कही की साहित्ये चाहे
वो कविता हो, गध काव्य हो या कहानी इन सबके मूल आधार में कोई न कोई कथानक
होता है, यानि के हम कह सकते हैं की किसी भी प्रकार का साहित्ये हो उसके
मूल में कहानी ही होती है! वो आगे कहते हैं की नाटक मंच से कही गयी कहानी
ही है और उपन्यास कथात्मक घटनाओ का एक विस्तार! चाहे आप किसी भी विधा में
लिखे कहानीकार सर्वत्र सक्रिय है!
विष्णु प्रभाकर जी ने आगे कहा
की उनकी कहानिओं का आधार "ज्ञान" नही "अनुभूति" रहा है! जो उन्होंने अपनी
यात्राओं में, सामाजिक जीवन में जो महसूस किया उन्ही सब चरित्र को उन्होंने
अपनी कहानिओं में उतारा है! लेकिन मैं यहाँ एक बात जोड़ना चाहूंगा की कथ्य
में तथ्य का होना भी जरुरी है कहानी वो जिसमे पाठक खुद को महसूस करे! और
जो सबसे बड़ी बात उन्होंने कही की उनके कहानीकार बनने की प्रेरणा या कारण
उनका पढ़ना, उन्होंने रविन्द्र, शरत, प्रेमचंद, प्रसाद इत्यादि महान
रचनाकारों की रचनाये पढ़ी थी! ये अपने आप में एक प्रेरणात्मक बात है जिसे हर
रचनाकार को ईमानदारी से अपनी साहित्यिक साधना में उतारना चाहिए! लेकिन
अफ़सोस आजकल के रचनाकार मैं सभी की बात नही कर रहा पर अधिकतर खुद को
साहित्यकार समझने या बनाने की कवायद में लगे हैं वो वास्तव में कितना पढ़
रहे हैं उन महान साहित्यकारों को! और यही एक विडंबना है हिंदी साहित्ये
के पतन की आज साहित्य रचा तो थोक के भाव में जा रहा है लेकिन पढ़ने वाले
नगण्य हैं, जो की हिंदी साहित्य के पतन के मूल कारणों में से एक है!
उपरोक्त बात में इस आधार पर कह रहा हूँ की आज साहित्य कितना बिकता है
बाजार में साहित्यकार और प्रकाशक मिलजुलकर जैसे तैसे काम चला रहे हैं!
डिमांड है ही नही बाजार में अधिकांशतः कुछ एक अपवाद जरूर हो सकते हैं!
आज विष्णु प्रभाकर महान साहित्यकार कहलाते हैं क्यूंकि उन्होंने अपने से
पहले उन महान साहित्यकारों को अपने में आत्मसात किया उनको पढ़ा फिर लिखा!
अब आप सोच रहे होंगे की मैं ये सब क्यों शेयर कर रहा हूँ, इसके पीछे एक
ही कारण है "हिंदी सहित्य को उचित सम्मान" मिले जो की पिछले काफी समय से
नही मिल पा रहा है! प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन मंजिल अभी बहुत दूर है!
अगर हमें हिंदी साहित्य को उसका समृद्धिशाली गौरव लौटना है तो हम सभी को
सबसे पहले पढ़ने की आदत डालनी होगी उन महान और समकालिक साहित्यकारों को पढ़ना
होगा उनको समझना होगा! आखिर हम आज भी उन साहित्यकारों का नाम क्यों लेते
हैं कुछ तो बात होगी उन सभी में, यूँ ही तो वो महान नही बन गए!
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा की पहले पढ़ने की आदत डालो फिर लिखने की कल
शायद आपके किसी के नाम के पहले महान शब्द जुड़ जाये, और हाँ महान वही होता
है जिसको जनमानस स्वीकारे, किसी एक या दो गुटबंदिओं से कोई महान नही बनता
वो सिर्फ आत्मुग्धता की स्थिति होती है!
उपरोक्त चेतनात्मक आलेख
है जो बाते बीच बीच में मैंने कही हैं वो मेरे निजी विचार हैं उनसे किसी का
सहमत होना या न होना जरुरी नही है!
"आलोक"