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Tuesday, August 31, 2010

ये स्टाइल हे काफी पुराना

न गीत हे, न मीत हे

हम अपने मनमीत हैं

प्यार होता हे क्या

ये गजलों से जाना

फिर भी न आया

हमसे बनना दीवाना

जब भी ख्यालों में

डूबे किसी के हम

निकली मन कि बात

बनके एक नज्म

उन्होंने पढ़ा उसको

इक दिन फुर्सत से

और बोले वाह वाह

आप शायर बहुत अच्छे

अब दिल कि बात

उन तक पहुचाएँ कैसे

जुबान से कह नही सकते

लिखते हैं तो शायर कहते

अब तुम ही बताओ

हम आशिक कैसे बनते

रास न आया हमको

दिल का लगाना

पढ़ के मेरी नज्म

वो बोले रहने भी दीजिये

ये स्टाइल हे काफी पुराना

Monday, August 23, 2010

ये बंधन तो प्यार का बंधन हे........

१- मेरी दीदी



हाँ अब बो नानी भी बन चुकी हे

लेकिन राखी बांधना नही भूली

राखी पर उनका फोन आ ही जाता हे

क्या प्रोग्राम हे , कब आ रहे हो

या हर बार कि तरह इस बार भी.....

राखी पोस्ट कर दूँ....

शादी के बाद ये बंधन इतना कमजोर

क्यूँ हो जाता हे.....

में दुविधा में सोचता ही रह जाता हूँ...



२. पत्नी



ए जी सुनो .......

मोनू इस बार भी नही आ पायेगा

मुझे ही उसको राखी बांधने जाना होगा

मेने दबी सी आवाज में कहा

दीदी का फोन आया था ....

उसने इग्नोर किया , और बोली..

शाम को ऑफिस से जल्दी आ जाना

मोनू के लिए राखी खरीदनी है

मेरी दुविधा काफी हद्द तक

ख़तम हो चुकी हे....



३..अंतर



भाई (मोनू) कि शादी हो चुकी हे...

इस बार मोनू का फोन आया

दीदी आप इस बार राखी पर मत आना

मैं शिवाली को उसके भाई के यहाँ लेकर जाऊंगा

पत्नी बड़बड़ाती है....

ये आज कल कि लडकिया तो

आते ही संबंधों में दरार डाल देती हैं

और मोनू को भी देखो

कितनी जल्दी उसका गुलाम बन बैठा

मेरी दुविधा का कोई अंत नही.....

Thursday, August 19, 2010

सेटिंग या जुगाड़

सेटिंग या जुगाड़

ये शब्द जितना छोटा हे

उतन ही प्रभावशाली हे

बिना जुगाड़ के आप सफल हो

बहुत ही कम होता हे,

एक दिन वाइफ ने कहा

आप सेट्टिंग क्यूँ नही करते

हमने गुस्सा दिखाया

वाइफ को धमकाया

ख़बरदार आगे कभी ऐसा कहा

हमसे ये सब नही होता,

बटरिंग बाज़ी,

हम रुखा-सुखा खाई के ही खुश हे

वाइफ गुस्से में बोली,

ठीक हे फिर ऐसी ही काटो जिन्दगी

फिर हमने वाइफ कि बात पर

गंभीर चिंतन किया

और सोचा यार आधी तो

ऐसी ही कट चुकी हे

अब नही कटने देंगे

आप लोग मलाई मारो

और हम रूखे में

नही, अब ऐसा नही होगा

मैं कितने दिन ठूंठ बना रहूँगा

जिसका तना सूखा हुआ हे,

जिस पर न टहनियां हैं

जिस न हरी पत्तियां हैं

न ही परिंदे आकर बैठते हैं

न ही राहगीर के लिए छाँव है

तो अब मेने भी सेट्टिंग शुरू कर दी

अब में भी हरा होने लगा हूँ

परिंदे भी आकर करलव करने लगे हैं

राहगीर भी छाँव पाने लगे हैं

में सोचता हूँ अगर में सेट्टिंग नहीं करता

तो मेरा अस्तित्व ख़त्म हो जाता

भले ही मेने इस अस्तित्व को बचाने में

अपनी आत्मा को बेच डाला हो,

ऐसा नही करता तो में मारा जाता

आज अस्तित्व कि लड़ाई हे

आत्मा या परमात्मा कि नही

जिसको हम रोज़ ही मारते हैं

आज मेरी एक शान हे, भले ही झूठी

मेरा एक स्वाभिमान हे, भले ही झूठा

लेकिन में जिन्दा हूँ, हूँ भी कि नही

मुझे इन पचड़ों में नही पड़ना

जान हे तो जहान हे

भले ही बाकि हिन्दुस्तान

शमशान हे

पता नही में क्या क्या लिख जाता हूँ

क्यूंकि लिखना मेरी मज़बूरी हे

क्यूंकि सेटिंग के बिना जिन्दगी अधूरी हे



अलोक जब भी लिखता हे ...कुछ यूँ ही लिखता हे

Wednesday, August 18, 2010

गुलामी और आज़ादी .......

.

एक दिन हमारी श्रीमती जी का
परा सातवे आसमान के पार पहुच गया
बोली मेरी किस्मत फूट गयी
जो तुमसे मेरी शादी हुई
इससे तो होती ही नही, तो ही अच्छी थी
मेने कहा प्रिये, सिर्फ १३ साल में ही
हमसे ऊब गयी,
लगता हे तुम सच्ची हिन्दुस्तानी नही हो
कही से इम्पोर्ट किया हुआ आइटम हो
बोली क्या फालतू बकवास करते हो
मेरे हिन्दुस्तानी होने पर शक करते हो
मेने कहा अभी आपने जो कहा
उसी से अंदाज़ा लगाया हे हमने
अरे अगर तुम सच्ची हिन्दुस्तानी होती
तो उनके सब्र कि तरह अपना भी सब्र रखती
उनको देखो वो पिछले ६३ साल से नही ऊबे
उन्होंने तो कभी नही कहा
कि आज़ादी क्यूँ मिली
इससे तो गुलाम ही अच्छे थे
देखो वो आज भी कितनी शिद्दत से
अपनी आज़ादी का जश्न मनाते हैं
जिन्हें न सोने को छत
ना खाने को रोटी, न पीने का पानी
फिर भी उनके जज्बे को देखो
सीखो उनसे से कुछ,
जिन्हें कुछ भी मयस्सर नही हे
वो भी कहते हे कि हम आज़ाद हे
तुम्हे तो ये सब हासिल हे
फिर भी कहती हो कि
गुलामी कि जिन्दगी नही जीनी
श्रीमती जी कि समझ में
कुछ आया , कुछ नही आया
बोली, आप भी कितने अजीब हैं
हम कौन से रोज़ रोज़ नाराज होते हैं
जब भी होते हैं, आप ऐसे ही हमें
समझा देते हैं, लोग तो
आज़ादी का जश्न मनाते हैं
लेकिन आप तो हमें नही मनाते हैं
मेने मन ही मन सोचा
यार श्रीमती जी सच कह रही हे
ये तो बैसे भी घर का मामला हे
यहाँ कौन देख रहा हे, मना ही लेता हूँ
ये कौन सी गुलामी हे
आज़ादी का जश्न भी तो हम मनाते हैं
क्या हम हकीकत में आजाद हैं
मेरी सोच इस गुलामी और आज़ादी
कि चक्कर को समझने में भटक गयी
मेरी कलम भी अब यही पे अटक गई

Tuesday, August 17, 2010

एक बार और जग जाओ..........

में थक गया,

कितना लिखू, क्या लिखू

मुझे नही था संज्ञान कि ये

जिन्दा-मुर्दों कि बस्ती हे

मुर्दों कि भी कही आत्माए जागती हे

शैतानो को भी, कभी शर्म आती हे

कब तक यूँ ही देख देख कर, खून खौलाता रहूँगा

अब बस, अब कलम तोडनी पड़ेगी

हाँ अब कलम छोडनी पड़ेगी

उठानी हो होगी बन्दूक,

और बनानी होगी निशाना

उस शैतान कि खोपड़ी

जिसने हमें इतने सालो से छला हे

जो हमारी मात्र भूमि पर वला हे

अपनी मात्र-भूमि को आजाद कराना होगा

वो कितने सालों से सो नही पाई हे

इन शैतानो ने उसका बलात्कार किया हे

जागो मेरे भारत के सच्चे सपूतों

एक बार और जग जाओ

अगर तुम आज जाग जाओगे

तो आने वाली पीढ़ी का भाग्य बनाओगे

और उन शहीदों कि आत्माओं को

जिन्होंने इस मात्रभूमि को

हमारे लिए आजाद कराया था

को सच्ची श्रधाअंजली दे पाओगे

......अलोक खरे







.....

Sunday, August 15, 2010

आज़ादी का गीत ......

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिता हमारा

आम आदमी हे यहाँ कितना मगर बेचारा,

सारे जहाँ से अच्छा........



चारों तरफ हे जिसके, भुखमरी, गरीबी कि दुनिया

बेईमान हैं , हम भ्रष्ट हैं, यही है हमारा नारा,

सारे जहाँ से अच्छा..........



निकम्मी हे ये सरकार, बेईमान हे इसके मंत्री

योजनाओं के नाम पर तो, सारा पैसा हे हमारा,

सारे जहाँ से अच्छा ....



घोषणाओं पे घोषणा करते, नहीं थकते हमारे नेता

आम आदमी तो बस, इंतजार करता रहता बेचारा,

सारे जहाँ से अच्छा .......



पूछती हे ये जनता, ओ तुमसे निकम्मों नेता

लालची हो तुम कितने,और पेट कितना बड़ा तुम्हारा,

सारे जहाँ से अच्छा ..........



अब तो करो तुम ओ नेता, कुछ तो शर्म जरा सी

अब तो निकल चूका हे, इज्जत का जनाजा तुम्हारा,



सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिता हमारा

आम आदमी हे यहाँ कितना मगर बेचारा,

Saturday, August 14, 2010

ये कैसी आज़ादी....................

आज़ादी मोडर्न इंडिया

का सबसे भद्दा मजाक

जो हम करते चले आ रहे है

पिछले ६२ साल से

मेने अंग्रेजो का शासन नही देखा,

लोग कहते हे कि हम उस वक़्त

गुलाम थे "अंग्रेजों के"

अब किसके गुलाम हे

गुलामी कहना तो ठीक नही है

हाँ, अपनों से ही ठगे जा रहे हैं हम!

मेने सुना था अंग्रेजों के शासन में

किसी को कुछ भी बोलने कि आज़ादी नही थी

लेकिन अब हे, हम कुछ भी बोल सकते हैं

लेकिन क्या उसका किसी को कोई फर्क पड़ता हे

नही , नही पड़ता, आप चिल्लाइये , रोईये ,

गिड़गिड़ाइए कुछ भी करिए,

यहाँ तक कि आत्महत्या करिए

किसी को कोई भी फर्क नही पड़ता

मेरे हिसाब से हमको आज़ादी बस इसी

बात कि मिली हे, कि आप प्रदर्शन

धरना या आत्महत्या कुछ भी कर सकते हैं

किसी भी राजनेता/अफसर को गाली दे सकते हैं

जो शायद उस वक़्त नही था

ये आज़ादी हमको मिली हे

जी हाँ बस यही आज़ादी मिली हे

आप कहते हे कि हम आज़ाद हैं

खुशिया मनाओ, कि पहले

हमें अंग्रेज लूट रहे थे

अब हमें अपने ही चुनिन्दा लोग

लूट रहे हे!,

हमें बस लुटना हे,

लूटने वाले कौन हे

अगर वो अंग्रेज हे

तो हम गुलाम कहलायेंगे

अगर वो हिन्दुस्तानी हे

तो हम आज़ाद गुलाम कहलायेंगे

अगर इसीका नाम आज़ादी हे

तो आप खुश होइए,

में आपकी ख़ुशी में शामिल नही

जिस दिन हमें इन अपने घर वाले

लुटेरों से आज़ादी मिल जाएगी

तब जाकर हम आज़ाद होंगे

किस खुशफ़हमी में आप जी रहे हैं

अगर आज़ादी का मतलब तिरंगा हे

कम से कम उसका तो अपमान न करो

यूँ लालकिले पर फेह्राकर लुटेरों के हाथों

उसे सरेआम न करो

ये कैसी आज़ादी हे

बताइए ना!

aap beeti.........................kuch yun hi

एक दिन में दफ्तर आने में लेट हो गया

ये ही कोई घंटा दो घंटा

बॉस उस दिन इत्तेफाक से

टाइम पर आ गए,

जैसे ही में दफ्तर में घुसा

चपरासी मेरी टेबल पर आया

और बॉस का फरमान हमें सुनाया

में गुस्से में था, लेट होना कुछ परेशानी

कि बजहा थी

में मुआमले को भांपते हुए

जोरो से चिल्लाया,

तू पहले पानी क्यूँ नहीं लाया

चल जा पहले पानी पिला,

मेने अपने स्टाइल में बॉस

को सूचित कर दिया

कि अगर उल्टा पुल्टा कुछ कहा

तो समझ लेना, पारा मेरा भी हाई हे

पानी पीकर जैसे ही अपना

तमतमाया हुआ चेहरा लेकर

बॉस के केबिन में पहुंचे,

बॉस मुस्कराया, और बोला

अलोक यार वो जो कल बात हुई थी

वो कम हो गया क्या,

हमने कहा आज हो जायेगा

बॉस बोला यार थोडा जल्दी कर देना,

बैंक में रिपोर्ट सबमिट करनी हे

फिर धीरे से बोला , क्या हो गया आज

कोई प्रोब्लम हे क्या

मेने कहा नही तो,

हम दोनों ही उस बात को

टालने कि फिराक में थे

जिससे दोनों कि इज्जत बनी रहे

बॉस बोला फिर ठीक हे

रिपोर्ट जरा जल्दी बना देना

में ओके बॉस करके चला आया

और मन ही मन मुस्कराया

फिर मुझे बॉस कि समझ पर

यकीन हो आया

कि यार ये बॉस बनने लायक ही हे

तभी ये बॉस हे