स्वाभिमान
एक अमीर ने गरीब से पूछा
बोल तू स्वाभिमानी है,
गरीब बोला, बाबु जी कोशिश तो
बहुत करता हूँ, की कोई
काम मिल जाये तो
दो वक़्त की रोटी का सहारा हो जाये,
लेकिन हर वक़्त ऐसा नही होता पाता,
हर रोज़ अपने भूखे, नंगे बच्चो,
व चिथरों में लिपटी लिपटी वीबी
का चेहरा सामने आ जाता,
क्या करूं साब,
मेने तो मजबूरी में
अपने स्वाभिमान को कई बार बेचा है,
आप तो अच्छे खासे पैसे बाले हैं,
भगवन का दिया सभी कुछ तो है तुम्हारे पास,
फिर आपकी ऐसी क्या मजबूरी है,
जो आप लखपति से करोरपति बन्ने के लिए
हमारे जैसे गरीबों का स्वाभिमान खरीदकर
अपने आपको स्वाभिमानी समझते हो.
इश्क़ ना पुच्छे दीन धरम नू
4 days ago
No comments:
Post a Comment