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Wednesday, March 17, 2010

सूरत-ए-बेवफाई

हमारी चाहत को इस कद्र बदनाम न करो

दिल कि आवाज है ये, इसे सरे-आम न करो,



करना नही था प्यार, फिर ये दिल क्यूँ लगाया

ठुकराकर हमारी मुहब्बत को, हमें बदनाम न करो,



क्या जरूरी था दोस्ती के लिए, इजहारे मुहबब्त

इस दोस्ती और मुहब्बत को शर्मशार न करो,



काश कि इतना आसान होता इजहारे मुहब्बत

फिर से तुम लैला-मजनू कि कहानी बयां न करो,



दिखा ही चुके हो तुम, अपनी सूरत-ए-बेवफाई

खुदा के वास्ते अब, इजहारे-ए-जुर्म न करो,

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