मुझे याद हैं वो दिन
जब मैं तुमको और तुम
मुझको लिखा करती थी,
हमारा हर गीत, हर ग़ज़ल,
एक दुसरे में ढला करती थी,
हम नदी के वो दो किनारे थे
जिसमे बहता पानी हमारे मिलन का
शाक्क्षी हुआ करता था,
फिर अचानक एक दिन तूफ़ान आया
नदी ने अपना रुख बदल दिया,
तुम मेरा साथ छोड़ कर
किसी दुसरे किनारे से जा मिली,
और फिर से बही गीत-ग़ज़ल
गुनगुनाने लगी
मैं आज भी विराना सा
तुमको दूर से निहारता रहता हूँ,
इसी झूठी उम्मीद में शायद
फिर से ऐसा कोई तूफ़ान आये
एक बार फिर से तुमको
मुझसे मिला जाये,
हम फिर से अपनी मुहब्बत के तराने
एक दुसरे को सुनाये
हम फिर से बही गीत-ग़ज़ल गुनगुनाये
मुझे याद हैं वो दिन
जब मैं तुमको और तुम मुझको लिखा करती थी,
130. हैंडसम ही-मैन हीरो धर्मेंद्र
2 weeks ago
3 comments:
aisa tufaan.... sur badale ehsa ke liye?
parivartit geet gazal ke koi arth nahin hote
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
thnx all of you
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