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Saturday, September 8, 2012

सहमा हुआ इंसान और मजाक उड़ाती हुयी सब्जियां!

Blog parivaar

कल पत्नी जी लगभग चिल्लाते हुए, ए जी सुनो आज तो कम से कम मंडी जाकर
सब्जी ले आओ! पिछले एक हफ्ते से पानी में दाल खा खा कर बोर हो गए हैं! हमने
श! श! श! करते हुए पत्नी से कहा चुप करो भाग्यवान, पडोसी

सुनेंगे तो कहेंगे कि
इनके यहाँ आजकल दाल बहुत बन रही है! बहतु पैसा हे इनके पास, पत्नी जी तुनक कर
बोली बड़े आये अपनी इज्जत बनाने वाले, पिछले एक हफ़त से तो सब्जी मंडी गए नही,
पडोसिओं को सब पता है! आजकल अच्छों अच्छो कि औकात सब्जी मंडी में दिखाई पड़
रही है! हमने कहा ठीक है भाग्यवान ऐसा करते हैं कि आज गुरुवार है पहले साईं मंदिर
जाकर बाबा का आशीर्वाद ले लेते हैं, उसके बाद मंडी में घुसने कि हिम्मत करेंगे! तब तक
रात भी हो जाएगी और तुमको पता ही हे कि देर रात में सब्जी भी सस्ती मिल जाती है!
अपने प्लान के मुताबिक हम सब्जी मंडी पहुंचे!
जैसे ही हमारी नज़र लौकी(घिया) पर पड़ी, वो चिल्लाई; बेशर्म जब भी आता है मुझे ही घूर
घूर कर देखता रहता है, पहले तो लाखाता भी नही था, आजकल हद्द से ज्यादा नजदीकियां
बढ़ाने में लगा हुआ है! रोज मेरे चिकने बदन पर तेरी भेड़िये जैसी निगाहे गडी रहती हैं
हमने एक शरीफ इंसान कि तरह उसके  ताने सुने और आगे बढ़ लिए!
जैसे ही हमारी नजर आलू पर पड़ी, वो बड़ी ही धूर्तता से मुस्कराया,
मंडी में जगह जगह ऐसे पड़ा था जैसे कोई मोहल्ले का टटपूंजिया गुंडा
बीच सड़क पर अपनी बाइक लेकर खड़ा हो, और आने जाने वाले उसको
सलाम ठोंकते हुए आगे बढ़ते हैं! आलू के बगल में प्याज छिनाल मन ही मन
मुस्करा रही थी, जैसे कि उसको सारी सच्चाई मालूम हो! अगली दूकान पर
टिंडे बादशाह बड़ी शान से हुक्का गुड़ गुडा रहे थे, और हमें ऐसे नजरअंदाज कर रहे थे
कि जैसे पहचानते ही नही, हमने फिर भी हिम्मत करके उनके हालचाल लेने कि कोशिश
कि! पहले तो उन्होंने हमें इग्नोर किया, फिर धीरे से बोला बाबू जी अगर मेरे हाल-चाल
लेने कि कोशिश करोगे तो आपकी हाल और चाल दोनों बिगड़ जायेंगे, इसलिए अच्छा
हे कि चुपचाप आगे बढ़ लो!
अगली दूकान पर बैगन अपने शरीर पर तेल मालिश कर चिकना और ताज़ा दिखने कि
कोशिश कर रहा था! जैसे ही उसकी नजर हम पर पढ़ी बोला बाबू जी आज तो कई दिन बाद मंडी
में नज़र आये हो! क्या बात है आजकल आपके दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं! हमने उसको चुप रहने का
इशारा किया और हालचाल लिए, कहने लगा कि पहले तो लोगबाग मुझे मज़बूरी में ले लेते थे,
लेकिन आजकल मेने उनको मजबूर कर दिया है!
कुल मिलाकर हर सब्जी हमें चिढ़ा रही थी, या कहे कि हमें हमारी औकात दिखा रही थी!
एक चक्कर मारकर हम फिर से लौकी के पास आकर खड़े हो गए, और इसके पहले कि
वो हमें फिर से ताने मारने शुरू करती, हमने झट से उसे उठाकर अपने थैले में बंद कर लिया!

(..... इक ख़याल अपना सा... आलोक)

2 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

महंगाई मार गई,,,,,

बहुत बढ़िया बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,

प्रवीण पाण्डेय said...

मँहगाई में इतराई सब्जियाँ हम पर हँसती हैं।