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Wednesday, September 16, 2009

मेरी अभिलाषा

मुझे रोटी, कपडा और मकान

मत दो सभी एक साथ

पहले मुझे रोटी तो दो ,

कपडा अगर फटे ना , मकान अगर बीके ना,

तो जिन्दगी कट जाती है ,

मगर रोटी के बिना,

सुबह से शाम नहीं कटती ,

रोटी तो सबसे पहले चाहिए,

जब पेट मैं कुछ होगा,

तब मैं भी दूसरों की तरहा, जिनके पेट भरे हुए हैं ,

कोई अभिलाषा कर पाउँगा ,

और अपने कुछ आधे-अधूरे , टूटे-फूटे,

और धुंधले पड़ चुके ,

सपनो को शायद संजो पाउँगा,

तो मेरी अभिलाषा तो,

दो वक़्त की रोटी पर ठहर रही है,

जिसकी आस मैं आज भी हिन्दुस्तान की ,

35 करोर जन्शंख्या , आज़ादी के 62 साल बाद भी ,

इसी अभिलाषा के साथ जी रही है





धन्येबाद

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण और प्यारी रचना लिखा है आपने!ahut Barhia...aapka swagat hai...


http://sanjaybhaskar.blogspot.com