http://www.clocklink.com/world_clock.php

Wednesday, September 16, 2009

Kya Karu

मेरी जिन्दगी धुआं से हो गयी है,
मुझसे मेरी मंजिल खो गयी है,
ए रास्ता न जाने किधर को जाता है,
या यूँ ही भटकते रहना जिन्दगी का तकाजा है
जिस मोड़ को भी समझा यही मंजिल है मेरी
वहां पहुंचे तो पाया रास्ता और भी लम्बा है,
न जाने ए शाम कब सुहानी होगी,
या यूँ ही बेखयाली में तेरा ख़याल आता है,
सहारे तो हम उसके भी जी लेंगे,
मगर तेरा एहसास कुछ ज्यादा है.

No comments: