स्वाभिमान
एक अमीर ने गरीब से पूछा
बोल तू स्वाभिमानी है,
गरीब बोला, बाबु जी कोशिश तो
बहुत करता हूँ, की कोई
काम मिल जाये तो
दो वक़्त की रोटी का सहारा हो जाये,
लेकिन हर वक़्त ऐसा नही होता पाता,
हर रोज़ अपने भूखे, नंगे बच्चो,
व चिथरों में लिपटी लिपटी वीबी
का चेहरा सामने आ जाता,
क्या करूं साब,
मेने तो मजबूरी में
अपने स्वाभिमान को कई बार बेचा है,
आप तो अच्छे खासे पैसे बाले हैं,
भगवन का दिया सभी कुछ तो है तुम्हारे पास,
फिर आपकी ऐसी क्या मजबूरी है,
जो आप लखपति से करोरपति बन्ने के लिए
हमारे जैसे गरीबों का स्वाभिमान खरीदकर
अपने आपको स्वाभिमानी समझते हो.
Saturday, November 21, 2009
Saturday, November 7, 2009
कोई है जो तुमको अपने गले लगाना चाहता है, तुम्हारा अपना.....
मैंने तुम्हे कुछ इस तरहा से जाना है की तुम एक गुलाब के फूल की तरहा हो
जिसकी कुछ पंखुडिया खुली हुई , कुछ अध् खुली और कुछ एक दम से बंद,
हाँ तुम कुछ इस तरहा से ही हो, मेरे मन के अंतर्द्वंद मैं ,
लेकिन मैं उस शाख को नही पकड़ना चाहता जिस पर तुम ,
अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिए लहरा रही हो,
मैं तुमको उस टहनी से अलग नही करना चाहता,
तुम्हारा सौन्दर्य उसी के साथ है, और तुम मुझे वही से ही अच्छी लगती हो,
हाँ मैं इंतजार करूँगा , की तुम एक दिन उस शाख से झरो, और बिखर जाओ,
यही कही, फिर मैं तुमको सहेजूगा प्यार से, अपने से लगाऊंगा ,
ताकि तुमको एहसास हो की, तुम्हारे इस पतन के बाद भी,
तुम्हारा एक नया जीवन शुरू हुआ है, कोई है जो तुमको
अपने गले लगाना चाहता है, तुम्हारा अपना.....
जिसकी कुछ पंखुडिया खुली हुई , कुछ अध् खुली और कुछ एक दम से बंद,
हाँ तुम कुछ इस तरहा से ही हो, मेरे मन के अंतर्द्वंद मैं ,
लेकिन मैं उस शाख को नही पकड़ना चाहता जिस पर तुम ,
अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिए लहरा रही हो,
मैं तुमको उस टहनी से अलग नही करना चाहता,
तुम्हारा सौन्दर्य उसी के साथ है, और तुम मुझे वही से ही अच्छी लगती हो,
हाँ मैं इंतजार करूँगा , की तुम एक दिन उस शाख से झरो, और बिखर जाओ,
यही कही, फिर मैं तुमको सहेजूगा प्यार से, अपने से लगाऊंगा ,
ताकि तुमको एहसास हो की, तुम्हारे इस पतन के बाद भी,
तुम्हारा एक नया जीवन शुरू हुआ है, कोई है जो तुमको
अपने गले लगाना चाहता है, तुम्हारा अपना.....
Monday, November 2, 2009
....................,तुम्हारी तुम जानो,
तुम एहसास हो, जज्बात हो, क्या हो तुम,
कुछ तो हो, यही कही दिल आस- पास हो तुम,
कौन हो तुम , क्या हो तुम, कुछ तो खास हो तुम
लेकिन जो भी हो बहुत ही अपने से हो तुम,
हाँ मेरा तो यही मानना है, तुम्हारी तुम जानो,
ऐसा क्यूँ, जब भी हम आस- पास होते हैं,
तो क्या तुम मुझको नही ढूँढती रहती हो,
लेकिन में तो सिर्फ तुमको ही ढूँढता रहता हूँ,
कई बार मुझे भी ऐसा ही लगता है की
तुम भी सिर्फ मुझे ही ढूँढ रहे होते हो,
क्यूंकि हमारी नजरे मिलने के बाद
तुम्हारे चेहरे पर आरी संतुष्ट सी मुस्कान,
तो कम से कम यही कहती है,
मेरा तो यही मानना है, तुम्हारी तुम जानो,
और फिर तुम्हारा बार बार ए कहना,
की में आज- कल अपना कम नही कर पाती,
सारा वक़्त तो यूँ ही बात करने में निकल जाता है
तुम्हारा "यूँ ही" कहना, और फिर मुस्कराना ,
आखिर तुमने ए एहसास करा ही दिया मुझको,
आखिर में भी कुछ तो खास हूँ तुम्हारे लिए,
मेरा तो यही मानना है , तुम्हारी तुम जानो,
अच्छा चलो ठीक है, मान ले ते है, जैसा तुमने कहा,
में अपनी बात इन तो पंक्तियों के साथ ख़त्म करता हूँ,
"जरूरी नही हर बात का जुबान पे आना,
वो नजर ही क्या जो इशारा न समझे
कुछ तो हो, यही कही दिल आस- पास हो तुम,
कौन हो तुम , क्या हो तुम, कुछ तो खास हो तुम
लेकिन जो भी हो बहुत ही अपने से हो तुम,
हाँ मेरा तो यही मानना है, तुम्हारी तुम जानो,
ऐसा क्यूँ, जब भी हम आस- पास होते हैं,
तो क्या तुम मुझको नही ढूँढती रहती हो,
लेकिन में तो सिर्फ तुमको ही ढूँढता रहता हूँ,
कई बार मुझे भी ऐसा ही लगता है की
तुम भी सिर्फ मुझे ही ढूँढ रहे होते हो,
क्यूंकि हमारी नजरे मिलने के बाद
तुम्हारे चेहरे पर आरी संतुष्ट सी मुस्कान,
तो कम से कम यही कहती है,
मेरा तो यही मानना है, तुम्हारी तुम जानो,
और फिर तुम्हारा बार बार ए कहना,
की में आज- कल अपना कम नही कर पाती,
सारा वक़्त तो यूँ ही बात करने में निकल जाता है
तुम्हारा "यूँ ही" कहना, और फिर मुस्कराना ,
आखिर तुमने ए एहसास करा ही दिया मुझको,
आखिर में भी कुछ तो खास हूँ तुम्हारे लिए,
मेरा तो यही मानना है , तुम्हारी तुम जानो,
अच्छा चलो ठीक है, मान ले ते है, जैसा तुमने कहा,
में अपनी बात इन तो पंक्तियों के साथ ख़त्म करता हूँ,
"जरूरी नही हर बात का जुबान पे आना,
वो नजर ही क्या जो इशारा न समझे
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