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Wednesday, September 16, 2009

स्वर्गीय शास्त्री जी से भी महान

न्यूज़ पेपर पढने की बीमारी ,
विरासत मैं मिली है,
खबर ए थी की हमारे,
विदेश व् विदेश राज्ये मंत्री,
शहर के आलिशान पॉँच-सितारा होटल,
मैं ठहरे हुए हैं,
क्यूँकी उनका सरकारी आवास,,
मरम्मत हो रहा है ,
हमारे ए मंत्री, और ए हमारी,
ताथाकतित सरकार, इतनी गरीब है ,
की इनको रहने के लिए, मकान नहीं हैं,
तभी ए मंत्री , 1 लाख से 40 हज़ार रूपये प्रतिदिन
के किराये के कमरे में रहकर,
इस देश का सञ्चालन कर रहे हैं,
अब आप य सोच रहे होंगे की,
इसमें महानता की क्या बात है,
है भइए , जरा ध्यान से सुनिए ,
जब किसी ने इन मंत्रियों से पूछा ,
की इस मंदी के दौर मैं ,
आपका इस मंहगे होटल मैं
रहने का क्या तत्पर्ये है,
जहाँ देश केपी अकाल ग्रस्त
घोषित किया जा चूका हैं
और आप सरकारी पैसा , जी की
असहाए जनता के ऊपर ठोके गए,
टैक्स से जुटाया जाता है,
का दुरूपयोग कर रहे हैं,
तो उन मंत्री जी ने कहा,
ए सुब हम अपने निजी करछे पर कर रहे हैं ,
ए हुई न महानता,
स्वर्गीय शास्त्री जी ने अपने व्यक्तिगत कम के समये
जो भी सरकारी खर्च आता, उसको अपनी तन्खाव से कटवाते ,
और हमारे ए मंत्री अपनी व्यक्तिगत कमाएई से,
सरकारी कम करवाते,
तो हुए न मंत्री जी स्शास्त्री जी से महान,
इसीलिए आज भी मेरा भारत महान.

मेरी अभिलाषा

मुझे रोटी, कपडा और मकान

मत दो सभी एक साथ

पहले मुझे रोटी तो दो ,

कपडा अगर फटे ना , मकान अगर बीके ना,

तो जिन्दगी कट जाती है ,

मगर रोटी के बिना,

सुबह से शाम नहीं कटती ,

रोटी तो सबसे पहले चाहिए,

जब पेट मैं कुछ होगा,

तब मैं भी दूसरों की तरहा, जिनके पेट भरे हुए हैं ,

कोई अभिलाषा कर पाउँगा ,

और अपने कुछ आधे-अधूरे , टूटे-फूटे,

और धुंधले पड़ चुके ,

सपनो को शायद संजो पाउँगा,

तो मेरी अभिलाषा तो,

दो वक़्त की रोटी पर ठहर रही है,

जिसकी आस मैं आज भी हिन्दुस्तान की ,

35 करोर जन्शंख्या , आज़ादी के 62 साल बाद भी ,

इसी अभिलाषा के साथ जी रही है





धन्येबाद

Kya Karu

मेरी जिन्दगी धुआं से हो गयी है,
मुझसे मेरी मंजिल खो गयी है,
ए रास्ता न जाने किधर को जाता है,
या यूँ ही भटकते रहना जिन्दगी का तकाजा है
जिस मोड़ को भी समझा यही मंजिल है मेरी
वहां पहुंचे तो पाया रास्ता और भी लम्बा है,
न जाने ए शाम कब सुहानी होगी,
या यूँ ही बेखयाली में तेरा ख़याल आता है,
सहारे तो हम उसके भी जी लेंगे,
मगर तेरा एहसास कुछ ज्यादा है.

Meri Jidngi

"मेरी जिन्दगी है, या समुंदरी तूफानों से घिरी कोई नाव,
जो डूब भी सकती है, और किनारे भी लग सकती है,
इन हालातों मैं जीना मौत से भी बदतर है,
मेरी सांसे मेरे सीने मैं चुभता हुआ नश्तर हैं,
हम तो जिन्दगी को बस खुअवो मैं ही देखा करते हैं,
इसीलिए हर रोज़ खुदा से मरने की दुआ करते हैं,
लेकिन मौत भी इतनी आसानी से कहाँ मिलती है,
न जाने हमें किस बात की सजा मिलती हैं ,
न जाने हमें किस बात की सजा मिलती है