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Saturday, September 4, 2010

दोस्ती कि खातिर.....(HASYE)

हाँ आप भी सोच रहे होंगे ऐसा भी कही होता हे

लेकिन ये सच हे, जो में आपके सामने

रख रहा हूँ!



आखिर हमने भी आशिकी

करने का जिम्मा उठा ही लिया

दोस्त के कहने पर उनसे

टांका भिड़ाने का मन बना ही लिया,

बात उस समय कि हे जब हम जवानी कि

प्री नर्सरी क्लास में थे

दोस्त हमसे इस मामले

में काफी एक्सपेरिएंस हो चूका था

क्यूंकि वो आशिकी में

हमसे ३ महीने सिनिअर था,

हमने दोस्त से पूछा

शुरुआत कैसे करनी है

बोला कुछ नही करना हे

बस जब भी वो दिखे

उसकी तरफ देख जबरदस्ती मुस्कराना हे

धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना हे

हम बोले बस इत्ती सी बात

अगले दिन हम उस रास्ते पर खड़े हो गए

जहा वो टिउसन पढने आती थी

अपनी दोस्त के साथ,

जैसे ही वो हमें आती नजर आयीं

हमने अपनी कमीज कि आस्तीन चढ़ाई ,

जैसे ही वो हमारी आँखों के रेंज में आई

हमें बहुत ही भावुक मुस्कराहट आई

हमें तो इतना पता था कि हँसना हे

अब वो देखे या कोई और ..

उन्होंने तो देखा नही उनकी दोस्त ने

हमें घूर कर देखा, हमने कहा यार

ये तो क्रोस कनेक्सन हो गया

बैठे बिठाये लफड़ा हो गया

हमें मुस्कराते देख उनकी दोस्त

बही पर रुक गयी,

और बोली कोई प्रोब्लम हे क्या

में कहा नही जी,

बोली फिर कोई बीमारी हे

या हँसना तुम्हारी लाचारी हे

हमने हिम्मत बटोरी, और कहा

ऐसी कोई बात नही हे,

हम आपको देख कर नही मुस्कराए थे

तो फिर क्या हमारी सहेली को देखकर

हमें सोचा अब क्या काहे यार

ये कहाँ फंस गए,

दोस्त दूर खड़ा सब देख हंस रहा था

वो सोच रहा था कि मामला पट रहा था

हमने उनकी दोस्त को कहा, गलती हो गयी

अब हम जिन्दगी में कभी भी लड़की को

देखकर नही मुस्करायेंगे,

हमें मुआफी मागता देख वो होले से

मुस्कराई, बोली ठीक हे

आगे से ध्यान रखना

इस तरह खुले-आम आशिकी मत करना

अपनी नही तो हमारी इज्जत का

ख़याल रखना

गर बात करनी ही है तो सड़क पर नही

किसी मंदिर या शिवाले पर मिलना

उनके इतना कहते ही हमारी जान में जान आई

हमने इश्वर को धन्येबाद कर, अपनी आशिकी कि

अगली क्लास उसी के दरबार में लगाई!