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Saturday, October 1, 2011

कुछ कुंडलियाँ

Blog parivaar          कुछ कुंडलियाँ

देखो मेरे देश का अजब हे प्रजातंत्र
चोर कि पाकेट में चाबी रखे जनतंत्र
चाबी रखे जनतंत्र कि चोर हे सहमा सहमा
माने या ने माने उसे भी कुछ हे कहना!
चाबी तुम्हरे ताले कि रखूं तो मैं पछताऊँ
अछे खासे घर को, मैं क्यूँ आग लगाऊं
मैं क्यूँ आग लागौऊँ तू इतना जान ही लीजो
आदत मेरी बिगाड़ गयी, ये  तू मान ही लीजो!

संसद में बैठे हुए चोर रहे चिल्लाये
हो जाओ अब एक सब, जनतंत्र रहा गुर्राए
जनतंत्र रहा गुर्राए कि खटिया खड़ी हो जाये
मत खींचो अब टांग तुम, समस्या विकट है आये!

चाबी अपने ताले कि रखो जो अपने पास
ये  तुम्हरा बचपना है रखो जो हमसे आस
रखो जो हमसे आस, नही पड़ता अब कोई फर्क
हम सबने मिलकर कर दिया इस देश का बेडा गर्क!

संविधान जो लिख गए लिखने वाले कल
नही सोचा था बन जायेंगे, काले चोर ये  सब
काले चोर ये सब,  कि लूट मचाई ऐसी
इन सबने मिल कर दई, इस देश कि ऐसी तैसी!

प्रणव दा चिल्ला रहे चिदंबरम चोर हे भाए
मन्नू मेडम मिलकर उसको रहे बचाए
उसको रहे बचाए कि चुनाव नजदीक है आये
बुढ़ापे में तू सट गया, क्यूँ हमरी वाट लगाये!

तितर के दो आगे तितर..., कहावत रही मुस्काए
चोर के दो आगे चोर..., कांग्रेस धूम मचाये
कांग्रेस धूम मचाये कि विपक्ष रहा चिल्लाये
हमरा हिस्सा किधर है, अरे ओ मन्नू भाये!