http://www.clocklink.com/world_clock.php

Tuesday, March 15, 2011

बाकि कि किधर...................


"अहम्" किस बात का
ये शब्द कुछ तथा-कथित
बुधि-जीवी लोगो द्वारा अकसर ही
कहते या बखानते सुना
जाता हे!
लेकिन खुद के "मैं"
में डूबी हुई उनकी "अहम्"
कि परिभाषा,
सब कुछ साफ़ कर देती हे
और दिखा देती हे हकीकत
का आइना!
उठी हुई वो इक ऊँगली
दूसरों कि तरफ,
बाकि कि किधर!

Thursday, March 10, 2011

मुल्ला जी का भ्रम...............


यूँ तो मुल्ला जी को भ्रम में जीने कि आदत पड़ चुकी थी, और ये भी एक प्रकार का गंभीर रोग होता हे| लेकिन आदत से मजबूर मुल्ला जी हर वक्त किसी न किसी कि चुस्की लेने के चक्कर में रहते थे! अब जैसे उस दिन उस तथा कथित महिला कि औकात बता दी! बस यही पंगा पा लिया मुल्ला जी ने, यूँ समझो कि अपनी कब्र खोद ली! जबसे मुल्ला जी ने उस महिला कि औकात ५ रूपये बताई, तभी से वो मुल्ला जी कि फिराक में रहने लगी, कि इस मुल्ला के बच्चे को बिना मुहर्रम के रोजे न रखवा दिए तो मेरा भी नाम नही!

और इत्तेफाक से वो दिन आ ही पहुंचा, एक दिन पैठ के बाजार में दोनों का आमना सामना हो गया, उस दिन वो महिला बुर्के में थी,. और उस दिन मुल्ला जी का अंदाज़ निराला था, झक सफ़ेद कुरता -पैजामा, जालीदार टोपी, आँखों में बरेली के मियां जी का सुरमा, मुह में खुशबूदार तम्बाकू वाला पान, हाथ में गिफ्टेड घडी और इत्र बगैरा लगा कर मुल्ला जी मस्त अंदाज में बाज़ार में घूम रहे थे! अब महिला ने मुल्ला जी को देखा, उनके पास ही एक फड बाले के पास जाकर अपनी हील कि सेंडिल से मुल्ला जी का पांव जोर से कुचल दिया! मुल्ला जी जोरों का चिल्लाये, गोया उनको तपती दोपहरी में ही ईद का चाँद नज़र आ गया! उई उई करते हुए मुल्ला उस बुर्के वाली पर सीधे हो लिए, और कहने लगे,. मोह्तिर्मा ये क्या मजाक हे, आपको दीखता नही क्या? कितनी बेरहमी से आपने हमारा पांव कुचला हे!, महिला बुर्के के अंदर जोरो का मुस्कराई, और बोली मियां दीखते तो जवान हो, और इतना भी झटका नही झेल सके! अब मुल्ला थोडा भरमाये, उम्र पचपन कि और दिल बचपन का! महिला के जवान कहते ही मुल्ला कि तीसरी आँख फाड़फाड़ाइ, सोचने लगे बात में दम हे, कहने लगे अब कहाँ वो बात मोह्तिर्मा, (मुल्ला जी का दर्द महिला के चाशनी में डूबे शब्दों में कही खो गया!) जो पहले थी! महिला ने मुल्ला जी को उकसाया, क्यूँ अब चूक गए क्या आप? मुल्ला बोले, नही ऐसी बात तो नही है| तो फिर क्या बात हे, बात तो कुछ भी नही, मुल्ला ने इंटरेस्ट लेते हुए कहा! .
तो फिर चले, महिला के इतना कहते ही, मुल्ला जी को चककर आने लगे, लेकिन मुल्ला जी ने तुरंत ही अपने आप को संभाला, और बोले कहाँ चलना है, महिला बोली आपको आम खाने से मतलब..., मुल्ला जी ने उसको बीच में ही टोका, ठीक है मोह्तिर्मा जी, जहाँ आप कहे हम चलने को तईयार हैं, दोनों ने एक रिक्शा किया और महिला ने रिक्शा वाले के कान में से धीरे से कुछ कहा, थोड़ी ही देर बाद रिक्शा एक थाने के सामने रुका!
जब तक मुल्ला को कुछ समझ आता महिला ने जोरो से चिल्लाना शुरू कर दिया, कि ये आदमी मुझे छेड़ रहा हे, तब थाने में बैठा दीवान बाहर आया, और दोनो को पकड़ कर अंदर ले गया, फिर महिला से पूछा कि क्या बात हुई, महिला ने सीधे सीधे मुल्ला जी पर छेड़छाड़ का आरोप लगा दिया, अब मुल्ला जी कि हालत ऐसी कि पूछोमत, मियां जी नमाज़ छुड़ाने चले थे कि रोजे गले पड़ गए! दीवान जी ने मुल्ला जी को आड़े हाथों लिया, और बोला,क्यूँ मियां जी शक्ल से तो शरीफ लगते हो, लेकिन हरकते बहुत ही नीच हैं तुम्हारी, अब मुल्ला जी हकबकाए करे तो करे क्या, मुल्ला जी कि हालत ईद के बकरे कि माफिक, मिमयाने लगे मुल्ला जी, कहने लगे दीवान जी बात वो नही जो आप समझ रहे हैं, हमने इनको नही छेड़ा है, बल्कि इन्होने खुद ही हमें अपने साथ चलने को कहा! दीवान बोला अच्छा एक तो गन्दी हरकत करते हो ऊपर से सीनाजोरी भी, अभी अंदर कर दूँगा तो बात समझ में आएगी, अब मुल्ला जी कि हालत पतली, अंदर होने के नाम से! ....

बोले नही दीवान जी ऐसा मत करना, कसम मुल्लियाइन और उसके पोन् दर्ज़न बच्चों कि, आगे से ऐसी हरकत नही होगी, दीवान जी बोले एक ही शर्त पर छूट सकते हो, कुछ माल-ताल है जेब में, या यूँ ही मजनू बने घूम रहे हो!, मुल्ला ने हड़बड़ी में कुर्ते कि जेब में हाथ डाला, तो हाथ आर-पार हो गया, मुल्ला ने सोचा आज मुसीबत के वक्त ये जेब भी धोखा दे गई! अब मुल्ला जी से न रोते बने न हँसते! दीवान ने पूछा क्या हुआ, मुल्ला जी ये शक्ल पर १२ क्यूँ बज रहे हैं!, पैसे नही है न जेब में, इसका मतलब तुम यहाँ बाजार करने नही, लड़किओं को ही छेड़ने आये थे! मुल्ला जी बोले हुजूर माय बाप, कुछ कीजिये, तभी दीवान जी कि नज़र मुल्ला जी कि गिफ्टेड इम्पोर्टेड घडी पर पढ़ी, बोला कोई बात नही, पैसे नही है, तो ये घडी ही सही! मरता क्या न करता, मुल्ला जी को वो घडी देकर ही अपनी जान छुडानी पढ़ी! और मुल्ला यही रटते हुए घर को आये कि जान बची तो लाखों पाए, लौट के मुल्ला घर को आये!....

Monday, March 7, 2011

गलत फेह्मी का भी कोई इलाज होता है.?.

.एक दिन शर्मा जी कही जा रहे थे, दूसरी तरफ से आते हुए उनके एक परिचित मिल गए, उन्होंने स्वभिक्तावश पूछ लिया, शर्मा जी कहाँ जा रहे हो, शर्मा जी थोडा अकड़े, की चलो भाई किसी ने तो पूछा और उस अकड को दर्शाते हुए बोले, क्यूँ तुम्हे नही पता कि मैं कहाँ जा रहा हूँ! ये रास्ता कहा जाता है, बाज़ार को जाता है न, फिर भी बेवकूफों की तरह पूछते हो की कहाँ जा रहे हो! अब परिचित थोडा अचंभित हुआ, ये शर्मा जी को क्या हुआ, मेने तो यूँ ही पूछ लिया और ये पता नही क्यूँ सीधे हो रहे हैं मुझ पर! लगता है की शर्मा जी का किसे से झगडा हुआ है, तभी इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं! उसने फिर हिम्मत बटोरी और बोला, शर्मा जी आप कह तो ठीक रहे हैं, लेकि ये रास्ता बाज़ार में होकर तो बंद नही हो जाता, बाज़ार पार करने के बाद आपके परम मित्र चौबे जी के भी तो मकान पड़ता है न, हो सकता हे आप बही जा रहे हो!अब शर्मा जी बोले तो क्या बोले, लेकिन कहते हैं न की आदत जाती नही, बोले तुम्हे कुछ पता नही, मुझे देखों मैं इंसान की चाल  से उसका गंतव्य बता सकता हूँ, और एक तुम हो की कुछ पता ही नही, यूँ ही उलटे-सीधे सवाल करते हो, की अफ़सोस होता है की तुम मेरे मित्र हो! मेरी तरह सोचा करो, और अगर सही नही सोच सकते तो, टोका मत करो! इतना कहकर शर्मा जी आगे बढ़ गए!

लेकिन शर्मा जी ने एक बात मन में सोची, की यार वो कह तो ठीक ही रहा था, की बाज़ार से आगे चौवे जी का माकन है, चलो इसी बहाने उनसे भी मुलाकात करता चलूँगाi सो शर्मा जी ने चौबे जी का दरवाजा खटखटाया, चौबे जी ने शर्मा जी की देखते ही, एक जबरदस्ती की मुस्कराहट अपने चेहरे पर सजाई, और मन ही मन सोच की आज एक चाय का कूणडा हो गया, मरते क्या न करते, अथिति देवो-भवो की तर्ज पर शर्मा जी का बेमन से स्वागत किया! उन्हें बिठाया, फिर हाल- चाल लिए, और बोले क्या लोगे! शर्मा जीने कुछ न लेने का नाटक करते हुए कहा कि यार बस तेरी यद् आ रही थी तो सोचा कि मिलता चलूँ, और बैठते हुए अपने कुर्ते कि जेब में हाथ डालने लगे, चौबे जी ने उत्सुक्ताबश पूछ लिया, शर्मा जी आज क्या निकल रहे हो जेब से, और बस शर्मा जी को तो जैसे उनके मन माफिक सवाल मिल गया, बोले चौबे तू बता क्या हो सकता है मेरी जेब में, चौबे जी बोले यार क्या होगा तेरी जेब में, ५०२ पताका बीडी का बण्डल, और माचिस तो तू रखता ही नही, 
अभी मेरे से मांगेगा! शर्मा जी बोले चौबे तू रहेगा बही का बही, थोडा दिमाग लड़ा, चौबे जी बोले रहने दे पंडत (चौबे जी प्यार से शर्मा जी को इसी नाम से बुलाते थे), मुझे पता हे तेरी जेब में इसके अलावा और कुछ हो ही नही सकता! फिर शर्मा जी ने हँसते हुए अपनी जेब से "छिपकली छाप "तम्बाकू कि पुडिया निकली, और बोले चौबे देख तू गलत हे न, ५०२ पताका बीडी नही है न, लेकिन चौबे जी भी कम नही थे, बोले पंडत रहने दे, ज्यादा होशियारी न झाडा कर, अबे पंडत बीडी का बण्डल हो या तम्बाकू कि पुडिया, बात तो एक ही है न, दोनों ही में तम्बाकू होता जो सेहत के लिए हानिकारक होता ! अब शर्मा जी चुप, कोई जवाब हो तो कुछ कहे, फिर बड़ी बेशर्मी से अपनी खींसे निपोर दिए, इतने चाय आ गयी, शर्मा जी ने जल्दी से चाय गुटकी, और पतली गली से निकलते बने! पता नही शर्मा जी को किस बात का मुगालता था, वो अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नही थे, उनका हाल कुछ ऐसा ही था, जैसे कि कुऐं का मेढक, जब भी वो टरर टरर करता तो उसकी आवाज बापिस ही उसके कानो में बहुत जोरो कि गूंजती, और वो यही समझता कि एक वो ही है इस दुनिया में, मजाल है किसी कि कोई उसे चुनौती दे!

गलत फेह्मी का भी कोई इलाज होता है!...

Wednesday, March 2, 2011

बजट का खेल


अजीब हे ये बजट का झमेला
मदारी कि तरह हे इसका थैला
जो अन्दर डालकर डंडा हिलाता है
ख़ाली हाथ में पैसा आ जाता है!

जब भी ये बजट का एपिसोड आता है
मुझे हमेशा ही वो मदारी याद आता है
वो तमाशा दिखाकर लोगो कि जेबे ख़ाली करता
और ये घोषणाओं के नाम पर सरकारी खज़ाना!

योजनाओं-परियोजनाओ कि घोषणाएँ खूब होती हैं
उनके हिस्से का पैसा आवंटित कर दिया जाता है
बाद में ये नेताओं/ अफसरों में बाँट लिया जाता है
इस तरह से योजनाओ का किर्यांवन कियाजाता है!

शिक्षा का बजट इस बार ४०% बढ़ा दिया गया
महकमे से सम्बंधित लोगो को रुला दिया गया
शायद इधर भीड़ कुछ ज्यादा हे लूटने वालों कि
कह रहे हैं ,इसे बढ़ाकर हमारा क्या भला किया गया!

सरकारी स्कूल आज भी पेड़ों के नीचे चलरहे हैं
जो ईमारत बनी भी हैं, उसमे जानवर चर रहे हैं
कही दिवार नही है, तो कही छत चु/गिर रही है
सरकार आज भी सर्व-शिक्षा अभियान को लेकर चलरही है!

लूट-तंत्र का ये खेल काफी पुराना है
इसमें पक्ष-विपक्ष दोनों का ही नजराना है
मिलाकर कोई ५५० अभिनेता(नेता), औए अशंख्ये अफसर
१२० करोर का भाग्य बनाते हैं
जनता को बिना लेन्स के चश्मे से
उनका भविष्य दिखलाते हैं!

जनता तो बेचारी हे, ये उसकी लाचारी है
ये नेता और अफसर इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं
इस भोली जनता-जनार्दन कि नब्ज अच्छी से पहचानते हैं
उन्हें पता हे ये रोयेंगे और चिल्लायेंगे
इनके पास दूसरा कोई उपाए नही है
लौटकर हमारे ही तो पास आयेंगे
और हम फिर से इनका बैंड बजायेंगे!