**एक बिना छपे राइटर कि व्यथा...
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!
जिसे देखो यहाँ छप रहा हे
जिसे देखो वहां छप रहा हे
एक हम ही हैं जो नही छप रहे !
लेकिन भला हो इस इन्टरनेट का
कि जिसने हमें सेल्फ मोड में
छपने का अधिकार दिया है !
बरना हम बिना छपे ही रह जाते
फिर आप हमें कैसे पढ़/जान पाते!
कई बार सोचता हूँ कि हम साला
एक नीम-हकीम कि तरह ही तो है
कितना भी बढ़िया दवाई दे दो
लेकिन बिना डिग्री सब बेकार हे
क्यूंकि छपने के बाद मिलती है
डिग्री , तब न डॉ बन पाते!
इलाज तो हम भी बहुत करते हैं
कइओं को हम भी ठीक करते हैं
लेकिन फिर भी नीम-हकीम ही कहलाते हैं
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!
जिसे देखो यहाँ छप रहा हे
जिसे देखो वहां छप रहा हे
एक हम ही हैं जो नही छप रहे !
लेकिन भला हो इस इन्टरनेट का
कि जिसने हमें सेल्फ मोड में
छपने का अधिकार दिया है !
बरना हम बिना छपे ही रह जाते
फिर आप हमें कैसे पढ़/जान पाते!
कई बार सोचता हूँ कि हम साला
एक नीम-हकीम कि तरह ही तो है
कितना भी बढ़िया दवाई दे दो
लेकिन बिना डिग्री सब बेकार हे
क्यूंकि छपने के बाद मिलती है
डिग्री , तब न डॉ बन पाते!
इलाज तो हम भी बहुत करते हैं
कइओं को हम भी ठीक करते हैं
लेकिन फिर भी नीम-हकीम ही कहलाते हैं
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!