कहाँ जाते हो रुक जाओ
तुम्हे कम्युनिटी कि कसम देखो
बिना पोलिटिक्स न रह पाओगे
जाकर इक कदम देखो,
बनाये रिश्ते लाखों तो क्या
निभा इक भी न पाए तुम
दिखावा इतना किया जालिम
कि अब पछताते क्यूँ हो तुम,
मुंह में रखते हो तुम "रामा"
बगल मैं छुरी देखो पैनी
बहाया खून रिश्तों का
कि आत्मा भी हुई छलनी,
क्यूँकर ऐसा किया तुमने
ये तुमको भी शायद पता न हो
वक़्त रहते जो समझ जाते
फिर क्यूँ किस से खता ये हो,
अब जो हुआ सो हो चूका
सुधरकर तुम संभल जाओ
इल्तजा इतनी सी हे जानम
तुम बापिस लौटकर आओ!