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Friday, June 3, 2011

आधुनिक धिरात्राष्ट्र

न जाने कितने दुर्योधनो  और दुशाशानो का है पिता
खुली आँखों से देखता फिर भी कुछ नही है  पता
लोग जब सवाल करते तो यही देता है वो बता
कभी कहता है कि मुझे अक्सर ही नींद नही आती
क्या करू न जाने किस घोटाले का है आज बम फटा
आतंकवाद का बम भी इसके सामने बौना लगने लगा है
लेकिन तुम्हारी मुस्कराहट पहले से भी ज्यादा चौड़ी हो गयी है
अरे शर्म करो जरा सी है आधुनिक धिरात्राष्ट्र
क्यूँ तुम अक्सर ही ऐसी बयानबाजी हो करते
क्यूँ तुम इस भोली भली जनता को हो ठगते
तुम एक राजा हो,लोग तो यही अब तक  हैं समझते 
अगर तुम इतने ही दीन-हीन हो, तो त्याग दो ये पद
ये पद तुम्हारा नही है, इस देश कि शान है
उन शूरवीरों कि आन है,
जिन्होंने अपने खून से इसको है पाया है
जिस पर तुमने  नाजायज कब्ज़ा है जमाया है
चले जाओ अब तो, अगर जरा सी भी शर्म है बाकि
इस भारत माता का आँचल तो तार-तार हो ही चूका है



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