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Monday, September 13, 2010

चकल्लस....................

आज कल सब कुछ फिक्स हे

बैसे ये फिक्सिंग शब्द क्रिकेट से शुरू हुआ

कॉमनवेअल्थ गेम से होता हुआ

इस साहित्य में भी आ पहुंचा

जहाँ तक प्रोफ़ेसिओनलिस्म कि बात हे

वहा तक तो ठीक हे,

लेकिन जहा सिर्फ लोग शौक पूरा

करते हैं, वह भी इसने पैर पासार लिए हैं

अब आप सोच रहे होंगे कि

ये यानि कि मैं, क्या ऊल-जलूल

बाते लिखता रहता हूँ

लेकिन करे क्या भैये,

रह ही नही पते

जब भी मामला इधर से

उधर होते हुए देखते हैं,

नही कहेंगे तो पेट दर्दियायेगा

और जब पेट में हलचल हो

तो शांत कैसे बैठ सकते हैं

लिखना तो पड़ेगा

तब न जाकर शांति मिलेगी

तो महानुभावों, मेरे कद्रदानो

अब हम सीधी मुद्दे कि बात पर आते हैं

और आपको वाकये से रूबरू करबाते हैं

हुआ यूँ कि एक महोदय

यूँ ही , खामखा नाराज हो गए

हो गए तो हो गए,बिना बात के

कौन पूछता हे, हो जाओ!

किसी ने ध्यान ही नही दिया

अब मिया फंस गए चक्कर में

क्या करे क्या न करे

कोई पूछता ही नही

फिर अपने किसी अजीज से कहा

यार तुम ही कुछ करो

किसी तरह से हमारा नाम उछालो

ऐसा कैसे चलेगा, कुछ करो

अब एक ढूढो हज़ार मिलते हैं

तो जनाब का काम चल गया

कई दिनों से सुप्त पड़ा नाम उछल गया

होने लगे तर्क-वितर्क

और वो मिया, उन्हें यही चाहिए था

दूर से तमाशा देख मुस्कराते रहे

हमें तो इसमें भी फिक्सिंग कि बू आ रही हे

मामला स्कोटलैंड- यार्ड पुलिस को सौंपना पड़ेगा

और फिक्सिंग के सारे आरोपिओं को

जनता के सामने लाना होगा