मैंने तुम्हे कुछ इस तरहा से जाना है की तुम एक गुलाब के फूल की तरहा हो
जिसकी कुछ पंखुडिया खुली हुई , कुछ अध् खुली और कुछ एक दम से बंद,
हाँ तुम कुछ इस तरहा से ही हो, मेरे मन के अंतर्द्वंद मैं ,
लेकिन मैं उस शाख को नही पकड़ना चाहता जिस पर तुम ,
अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिए लहरा रही हो,
मैं तुमको उस टहनी से अलग नही करना चाहता,
तुम्हारा सौन्दर्य उसी के साथ है, और तुम मुझे वही से ही अच्छी लगती हो,
हाँ मैं इंतजार करूँगा , की तुम एक दिन उस शाख से झरो, और बिखर जाओ,
यही कही, फिर मैं तुमको सहेजूगा प्यार से, अपने से लगाऊंगा ,
ताकि तुमको एहसास हो की, तुम्हारे इस पतन के बाद भी,
तुम्हारा एक नया जीवन शुरू हुआ है, कोई है जो तुमको
अपने गले लगाना चाहता है, तुम्हारा अपना.....
Saturday, June 26, 2010
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