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Saturday, January 23, 2010

न जी होगा , और न ही कोई बदनाम होगा

जैसे ही उन्होंने हमारे नाम के बाद "जी" लागाया

हमें अपनी उम्मीदों पे पानी फिरता नजर आया,

हमने मन ही मन सोचा , यार ये कहा फंस गए

इससे अच्छा तो वही थे , जहा सब हमें नाम से बुलाते थे

और हम सबके नाम के बाद बड़ी शिद्दत से जी लगाते थे

फिर हमने सोचा , की यार तू यहाँ खामखा आया

जहाँ हमें अपनी बढती उम्र का अंदाजा हो आया

अब मरते क्या न करते, फिर सोचा अब क्या करेंगे

जब तक झेल सकते हो झेलो फिर कही और पनाह लेंगे

जहाँ सिर्फ उनका और हमारा नाम ही नाम होगा

न जी होगा , और न ही कोई बदनाम होगा

Wednesday, January 20, 2010

और माँ हार गयी

bechari Maa



मैंने कहा ना , मुझे हाथ न लगाना,

जब तक माँ यहाँ पर है,

लेकिन माँ के यहाँ होने से इस बात का क्या मतलब,

है मतलब, मुझे टेंशन होती है, और टेंशन मैं ए सब

नहीं होता,

अब ए तुमको सोचना है, की तुमको मैं चाहिए या माँ ,

अगले दिन मैं माँ को गाँव छोड़ आया,

उस बेबस , लाचार माँ को, जिसको इस समय मेरी जरूरत थी, लेकिन मेरी अपनी भी तो जरूरत हैं,

"काम" जीत गया, और "माँ" हार गयी,



अब माँ मुझको सपने मैं दिखती है,

लेकिन मैं वहां भी उससे नजरे चुरा लेता हूँ,

की कही माँ आवाज न दे दे,

और आज "माँ" सपने मैं भी हार गयी,

मैं तो पहले से ही हiरा हुआ था.

नईदिल्ली रेलवे स्टेशन , प्लेटफोर्म नो २

नईदिल्ली रेलवे स्टेशन , प्लेटफोर्म नो २

लोकल आने मैं अभी 20-२५ मिनट बाकि,

मुझे को भूख लगी,

मैंने आलू-पूरी वाले से एक पत्ता खरीद लिया,

थोडी दूरी पर कुछ बच्चे, उम्र कोई ७-८-१० साल,

कुछ अधनंगे, कुछ फटेहाल,

टुकुर टुकुर मुझको खाते हुए देखते रहे,

मैंने खाकर जैसे ही पत्ता, कूडेदान मैं फेंका ,

वो सब उसपर टूट पड़े , लड़ने लगे,

जिसके हाथ जो लगा, वो उसको चाटने लगा,

मैंने उनको डांटा , लेकिन वो चाटने मैं मस्त,

फिर भी मैंने उनको रोका, ऐसा मत करो,

कितने दिन से भूखे हो, कोई कुछ नहीं बोला,

तभी पूरी वाला बोला , अरे साहब रहने दीजिये,

ये इनकी रोज़ की आदत है,

मैंने कहा यार, ये छोटे छोटे बच्चे हैं, भूखे हैं,

मुझ से रहा नहीं गया, वो ६-७ थे,

मैंने सभी को एक -एक पत्ता दिलवा दिया,

सभी खुश, उनकी आँखों की चमक देखकर ,

मेरा सीना गर्व से फूल गया,

और मुंझे लगने लगा, की आज मैंने

भूखे हिन्दुस्तान का पेट भर दिया,

मैं इसी से संतुष्ट हो गया,

लोकल आई , मैं उसमे बैठ गया,

लिकं मेरी आँखों के सामने ,

बही भूखे-नंगे बच्चे आ रहे थे बार-बार

और मैं सोच रहा था की ,

कल से मैं आलू-पूरी नहीं खाऊँगा

Tuesday, January 19, 2010

गाँधी जी के तीनो बंदरों का परफेक्ट मिक्सचर

कान भी बंद, आँख भी बंद,

जब कुछ दिखेगा नही ,और सुनेगा नही

तो बोलेगा क्या ख़ाक,

इसलिए मुह भी बंद,

मस्त राम मस्ती में , आग लगे बस्ती में

चीनी के भाव आसमान छू रहे हैं

नेता जी , में क्या जादूगर हूँ

ऑस्ट्रेलिया में आयेदिन इंडियन पर हमले

मीडिया को अपनी भूमिका पर ध्यान देना होगा

वो दोनों देशों के सम्बन्ध बिगाड़ने पर तुला है

हाकी इंडिया प्लेयर को तनखा नही

खिलाडिओं में देश प्रेम नही रहा,

सब के सब पेट के लिए खेलते हैं

यहाँ अपने लिए ही पैसे पुरे नही पड़ रहे

इन प्लयेर्स की डिमांड जो की

मुश्किल से कुछ लाख ही होगी

बहुत ज्यादा है, कहा है पैसा

लेकिन कैटरीना कैफ का ठुमका

और शाहरुख़ खान का १० मिनट

स्टेज अपिरिएंस

उससे कही ज्यादा कीमती है

वह री मेरी गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया

गाँधी जी के तीनो बंदरों का परफेक्ट मिक्सचर

ये कुछ चुनिन्दा चुने हुए बन्दर

हिन्दुस्तान की ११५ करोड़ जनता को

बन्दर बना रहे हैं

जागो मेरे देशवासिओं अब जाग जाओ

कब तक सोते रहोगे,

इन बंदरों को अब पिंजरे में बंद

करने का समय आ गया है

और क्या कहूँ,

शुरुआत तो करो

रास्ते अपने आप बनते चले जायेंगे

Friday, January 1, 2010

गुजरा हुआ वक़्त

आज उम्र के इस पड़ाव पर

में अपना बचपन याद करता हूँ

याद आती हैं मुझे माँ की

कही हुई कुछ बातें

माँ मुझसे वो बातें तब

कहती थी, जब में सारा

समय, स्कूल से आने के बाद

गलिओं में कंचे और गुल्ली डंडा

खेला करता था,

तब माँ कहती थी,

बेटा कभी पढ़ भी लिया कर

सारा दिन खेलता ही रहता है

स्कूल से आने के बाद

किताब पर भी निगाह

डाल लिया कर,

तेरे ही काम आएगा

तेरा पढना,

कुछ पढ़ लिख जायेगा

तो तेरी जिन्दगी सफल

हो जाएगी, हमारी आत्मा

को भी संतुष्टि मिलेगी

गुजरा हुआ वक़्त

कभी बापिस नही आता

लेकिन मैं माँ का कहा

सुना अनसुना कर देता

लेकिन में माँ की बात

तब भी समझता था,

की माँ ठीक ही तो

कहती थी,

लेकिन उस वक़्त

मैंने वक़्त की कीमत

को नही जाना

मैंने वक़्त को बर्बाद किया

और उसी वक़्त से में आज भी

लड़ रहा हूँ,

जो मुझे बर्बाद करने में तुला है

क्यूंकि वो जानता है

की मैंने भी उसको बर्बाद किया था कभी.