http://www.clocklink.com/world_clock.php

Saturday, December 26, 2009

शांति का नोबेल पुरूस्कार

शांति का नोबेल पुरूस्कार


वो भाई जी की भूमिका में पूरी दुनिया को पेल रहे हैं

और शांति के सारे नोबेल पुरूस्कार अपनी और ठेल रहे हैं,

एक हम हैं जो बड़े भाई की भूमिका निभा रहे हैं

और आज़ादी के इतने बरस बाद भी छोटे भाई से मार खा रहे हैं,

वो मात्र छ महीने में ही डंडे के बल पर

शांति के अग्रदूत बन कर पुरूस्कार उड़ा ले गए

और हम ६२ बरस से शांति के साथ बैठ

हाथ मलते रह गए,

नोबेल पुरूस्कार विश्व का सबसे प्रतिष्ठित पुरूस्कार माना जाता है

तभी कुछ चुने हुए व्यक्तिओं को उनके अद्भुत कार्यों के लिए

उनको इस पुरूस्कार से नवाजा जाता है

हमें तो लगता है की ओबामा ने पुरूस्कार लेकर

नोबेल कमेटी पर एहसान किया है

तभी तो उन्होंने नोबेल समाहरोह के सभी कर्येक्रमो का

बड़ी शिद्दत से बहिष्कार किया है

अरे नोबेल कमेटी वालों, आपने ओबामा को

नोबेल पुरूस्कार के लिए चुनकर

ओबामा की इज्जत है बढाई

और पूरी दुनिया के सामने

नोबेल पुरूस्कार की इज्जत है घटाई,

अरे पुरूस्कार से सिर्फ इसके लायक

व्यक्तिओं को ही नवाजो

और किसी दवाब में न आकर ये

प्रितिष्ठित पुरूस्कार हर किसी में न बाटों.

नया साल

२ क्लास में पड़ने वाले मुन्ना ने

अपने बापू से पूछा,

बापू ये नया साल क्या होता है

बापू ने उसको गौर से देखा

फिर बोले , बेटा ये सब

पैसो वाले के लिए होता है

बापू हमरे पास पैसे कब होंगे,

जब तुम पढ़ लिख कर

नौकरी पर जाने लगोगे

फिर तो में खूब पढूंगा बापू

लेकिन एक बात है बापू

माँ कहती है की तेरे बापू

बहुत पड़े लिखे हैं

फिर बापू आप नौकरी

क्यूँ नही करते,

आप तो सब्जी की दूकान लगाते हो

बापू ने मुन्ना को डांट दिया,

और कहा, चुप रह,

बहुत बोलने लगा है...

पढाई पे ध्यान दे

जा जाके तू अभी पढ़,

इधर उधर दिमाग न लगा

शायद तेरी किस्मत

मेरी किस्मत से अच्छी हो

फिर हम भी नया साल मनाएंगे

Monday, December 7, 2009

अनजानी राह

जाना बूझकर हम उस रह पर चल पड़े थे

जिस पर कांटे ही कांटे बिखरे पड़े थे,

हमें यकीन था की कभी तो बहार आएगी,

यही सोचकर हम उनके साथ हो लिए थे,

लेकिन यही धोखा था हमारे दिल का

की जिन्हें हम कांटे समझे, वो खंजर निकले,

वो चुभते रहे, जख्म बनते रहे,

हाल ये हुआ कि दर्द जिस्म से नही

दिल से उठा,

यहाँ तक कि आत्मा भी चीत्कार कर उठी

और कहने लगी, किस रह पर ले आया दीवाने

बापिस चल, अभी भी वक़्त हे तेरे पास,

हम पलट चले, ढेर सारे जख्म लिए

लेकिन इस बार दर्द कही से भी नही उठा

क्यूंकि वो पहले इस कद्र उठ चूका था

शायद वो खुद ही ख़त्म हो चूका था

Saturday, November 21, 2009

स्वाभिमान

स्वाभिमान


एक अमीर ने गरीब से पूछा
बोल तू स्वाभिमानी है,
गरीब बोला, बाबु जी कोशिश तो
बहुत करता हूँ, की कोई
काम मिल जाये तो
दो वक़्त की रोटी का सहारा हो जाये,
लेकिन हर वक़्त ऐसा नही होता पाता,
हर रोज़ अपने भूखे, नंगे बच्चो,
व चिथरों में लिपटी लिपटी वीबी
का चेहरा सामने आ जाता,
क्या करूं साब,
मेने तो मजबूरी में
अपने स्वाभिमान को कई बार बेचा है,
आप तो अच्छे खासे पैसे बाले हैं,
भगवन का दिया सभी कुछ तो है तुम्हारे पास,
फिर आपकी ऐसी क्या मजबूरी है,
जो आप लखपति से करोरपति बन्ने के लिए
हमारे जैसे गरीबों का स्वाभिमान खरीदकर
अपने आपको स्वाभिमानी समझते हो.

Saturday, November 7, 2009

कोई है जो तुमको अपने गले लगाना चाहता है, तुम्हारा अपना.....

मैंने तुम्हे कुछ इस तरहा से जाना है की तुम एक गुलाब के फूल की तरहा हो


जिसकी कुछ पंखुडिया खुली हुई , कुछ अध् खुली और कुछ एक दम से बंद,

हाँ तुम कुछ इस तरहा से ही हो, मेरे मन के अंतर्द्वंद मैं ,

लेकिन मैं उस शाख को नही पकड़ना चाहता जिस पर तुम ,

अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिए लहरा रही हो,

मैं तुमको उस टहनी से अलग नही करना चाहता,

तुम्हारा सौन्दर्य उसी के साथ है, और तुम मुझे वही से ही अच्छी लगती हो,

हाँ मैं इंतजार करूँगा , की तुम एक दिन उस शाख से झरो, और बिखर जाओ,

यही कही, फिर मैं तुमको सहेजूगा प्यार से, अपने से लगाऊंगा ,

ताकि तुमको एहसास हो की, तुम्हारे इस पतन के बाद भी,

तुम्हारा एक नया जीवन शुरू हुआ है, कोई है जो तुमको

अपने गले लगाना चाहता है, तुम्हारा अपना.....

Monday, November 2, 2009

....................,तुम्हारी तुम जानो,

तुम एहसास हो, जज्बात हो, क्या हो तुम,

कुछ तो हो, यही कही दिल आस- पास हो तुम,

कौन हो तुम , क्या हो तुम, कुछ तो खास हो तुम

लेकिन जो भी हो बहुत ही अपने से हो तुम,

हाँ मेरा तो यही मानना है, तुम्हारी तुम जानो,



ऐसा क्यूँ, जब भी हम आस- पास होते हैं,

तो क्या तुम मुझको नही ढूँढती रहती हो,

लेकिन में तो सिर्फ तुमको ही ढूँढता रहता हूँ,

कई बार मुझे भी ऐसा ही लगता है की

तुम भी सिर्फ मुझे ही ढूँढ रहे होते हो,

क्यूंकि हमारी नजरे मिलने के बाद

तुम्हारे चेहरे पर आरी संतुष्ट सी मुस्कान,

तो कम से कम यही कहती है,

मेरा तो यही मानना है, तुम्हारी तुम जानो,



और फिर तुम्हारा बार बार ए कहना,

की में आज- कल अपना कम नही कर पाती,

सारा वक़्त तो यूँ ही बात करने में निकल जाता है

तुम्हारा "यूँ ही" कहना, और फिर मुस्कराना ,

आखिर तुमने ए एहसास करा ही दिया मुझको,

आखिर में भी कुछ तो खास हूँ तुम्हारे लिए,

मेरा तो यही मानना है , तुम्हारी तुम जानो,



अच्छा चलो ठीक है, मान ले ते है, जैसा तुमने कहा,

में अपनी बात इन तो पंक्तियों के साथ ख़त्म करता हूँ,



"जरूरी नही हर बात का जुबान पे आना,

वो नजर ही क्या जो इशारा न समझे

Sunday, October 11, 2009

ए हसीना तेरे आशिक हम

ए हसीना तेरे आशिक हम

ऐसे भटके हमारे कदम,

तेरे आगे चले, तेरे पीछे चले

तेरे क़दमों मैं निकलेगा दम,

ए हसीना तेरे आशिक हम....

जब जुल्फों का हो सामना

तब अपनी यही कामना

वो पिटाई करे, हम माफ़ी मांगे

न हो ऐसी कभी दुर्दशा,

है तेरी आशिकी मैं वो दम,

अच्छे अच्छे को कर दे ख़तम,

तेरे आगे चले, तेरे पीछे चले,

तेरे क़दमों मैं निकलेगा दम,

ए हसीना तेरे आशिक हम....

आशिकी अब बहुत हो चुकी,

साडी दुनिया को शो हो चुकी,

या तो हाँ ही करो, या न ही करो

अब तो ले लो डिसीजन कोई ,

है तेरी आशिकी मैं वो दम,

अच्छे अच्छे को कर दे ख़तम,

तेरे आगे चले, तेरे पीछे चले,

तेरे क़दमों मैं निकलेगा दम,

ए हसीना तेरे आशिक हम....

Wednesday, October 7, 2009

कागज का रावन

कागज का रावन


हमने एक बार फिर से कागज के रावन को जला दिया

और अपने मन को यूँ ही संतोष दिला दिया,

ए दुनिया भी कितनी बिचित्र है

अरे भाई रावन तो एक चरित्र है,

जो इस बात को आज तक न समझ पाई,

की कही कागज के रावन के पुतले जलने मात्र से

किसी चरित्र को दी जा सकती है विदाई,

जलाना अगर तो अपने अन्दर के रावन को जलाओ

एक बार फिर से मेरे देश को अमन-चैन की रह दिखाओ

और भाई-चारे का सन्देश फैलाओ,

हम ईद मनाये , और तुम दिवाली मनाओ.



गरीबी का रावन



अगर रावन जलाना है तो

गरीब के पेट की भूख का रावन जलाओ,

जो दिन-दूनी रत-चौगनी बढती महगाई

की मर से सुरसा के मुह की तरहा

बढ़ता ही जा रहा है,

क्या इस तरफ किसी तथा-कथित

कलयुगी राम का ध्यान जा रहा है,



जिस तरहा कागज के फूलों से

खुशबू आ नही सकती ,

उसी तरहा रावन को जलाने से

किसी गरीब की भूख नही मिट सकती,



सवाल तो पहले पेट भरने का है

जो आश्वासन की खयाली रोटी से नही,

हकीकत की रोटी से भरेगा,



और जिस दिन ए तथा-कथित कलयुगी राम

गरीबो के इस दिव्स्वापन को साकार कर पाएंगे

उस दिन सच मैं वो रावन को मर पाएंगे.

Saturday, October 3, 2009

कविता मैं तुझको किस रूप मैं लिखूं

कविता मैं तुझको किस रूप मैं लिखूं
जब भी कभी मैं तुझको गंभीरता से लिखता हूँ,
तो तू सागर सी गहरी हो जाती है,
पता नही लोग तुझमे क्या क्या ढूँढ़ते हैं,
क्या तू उन तक पहुच पाती है,
शायद हाँ, शताद ना, मुझको तो नही पता,
कभी तू हस्ये रूप मैं लोगो से मिलती है,
कभी तू एक कड़वी सच्चाइ लिए होती है,
कोई कहता है की तू समाज का दर्पण है,
कोई कहता है की तू कवी की कल्पना है,
तेरे अनेक-एक रूप होने के बाबजूद
तेरा अनेक-एक लोगो से रु-बरु होने के बाबजूद,
क्या तू उन तक apni छाप छोड़ पायी ,
क्या तू इस समाज को रत्ती भर भी बदल पाई,
आखिर तेरे जन्म लेने का मकसद क्या है,
मुझे तो लगता है की तेरा जन्म तो
मात्र मनोरंजन के लिए ही ही होता है,
तभी तो ये समाज सदियों से
आज तक बैसे ही रोता है

Wednesday, September 23, 2009

दूकान

उनकी दूकान मेरी दुकान से पुराणी है,

नामी -गिरामी है,

वो बेभाव की चीज भी

अच्छे खासे भावः पर बेचते हैं ,

हमने अभी अभी, अपना काउंटर खोला है,

कुछ स्टैण्डर्ड, कुछ लोकल डाला है,

फिर भी कहते हैं की मजा नही आयेला है,

हमने कहा की मजा किसी के बाप का नही,

जो फ्री मैं आएगा,

मजा तो उसी मैं है

जो मिल बाँट कर खायेगा.

Friday, September 18, 2009

ओल्ड एज हसीना

ओल्ड एज हसीना

एक दिन अचानक हमारी मुलाकात
ओल्ड एज हसीना से हो गयी,
हमने कहा वाह भाई वाह,
आप तो कमाल लगती हैं,
आपके सामने तो कमसिन हसिनाये
भी पानी भरती हैं ,
आखिर क्या राज है
आपकी इस खूबसूरती का,
उन्होंने मुस्कराकर कहा,
राज की कोई बात नही मेरे भाई,
ए तुम्हारी नजरों का फेर है
बस यूँ समझो की
अंधे के हाथ लगी बटेर है,
वो बातों ही बातों मैं हमें,
भाई और अँधा बना गयी,

अपनी खूबसूरती मैं,

और भी चार चाँद लगा गयी,

Wednesday, September 16, 2009

स्वर्गीय शास्त्री जी से भी महान

न्यूज़ पेपर पढने की बीमारी ,
विरासत मैं मिली है,
खबर ए थी की हमारे,
विदेश व् विदेश राज्ये मंत्री,
शहर के आलिशान पॉँच-सितारा होटल,
मैं ठहरे हुए हैं,
क्यूँकी उनका सरकारी आवास,,
मरम्मत हो रहा है ,
हमारे ए मंत्री, और ए हमारी,
ताथाकतित सरकार, इतनी गरीब है ,
की इनको रहने के लिए, मकान नहीं हैं,
तभी ए मंत्री , 1 लाख से 40 हज़ार रूपये प्रतिदिन
के किराये के कमरे में रहकर,
इस देश का सञ्चालन कर रहे हैं,
अब आप य सोच रहे होंगे की,
इसमें महानता की क्या बात है,
है भइए , जरा ध्यान से सुनिए ,
जब किसी ने इन मंत्रियों से पूछा ,
की इस मंदी के दौर मैं ,
आपका इस मंहगे होटल मैं
रहने का क्या तत्पर्ये है,
जहाँ देश केपी अकाल ग्रस्त
घोषित किया जा चूका हैं
और आप सरकारी पैसा , जी की
असहाए जनता के ऊपर ठोके गए,
टैक्स से जुटाया जाता है,
का दुरूपयोग कर रहे हैं,
तो उन मंत्री जी ने कहा,
ए सुब हम अपने निजी करछे पर कर रहे हैं ,
ए हुई न महानता,
स्वर्गीय शास्त्री जी ने अपने व्यक्तिगत कम के समये
जो भी सरकारी खर्च आता, उसको अपनी तन्खाव से कटवाते ,
और हमारे ए मंत्री अपनी व्यक्तिगत कमाएई से,
सरकारी कम करवाते,
तो हुए न मंत्री जी स्शास्त्री जी से महान,
इसीलिए आज भी मेरा भारत महान.

मेरी अभिलाषा

मुझे रोटी, कपडा और मकान

मत दो सभी एक साथ

पहले मुझे रोटी तो दो ,

कपडा अगर फटे ना , मकान अगर बीके ना,

तो जिन्दगी कट जाती है ,

मगर रोटी के बिना,

सुबह से शाम नहीं कटती ,

रोटी तो सबसे पहले चाहिए,

जब पेट मैं कुछ होगा,

तब मैं भी दूसरों की तरहा, जिनके पेट भरे हुए हैं ,

कोई अभिलाषा कर पाउँगा ,

और अपने कुछ आधे-अधूरे , टूटे-फूटे,

और धुंधले पड़ चुके ,

सपनो को शायद संजो पाउँगा,

तो मेरी अभिलाषा तो,

दो वक़्त की रोटी पर ठहर रही है,

जिसकी आस मैं आज भी हिन्दुस्तान की ,

35 करोर जन्शंख्या , आज़ादी के 62 साल बाद भी ,

इसी अभिलाषा के साथ जी रही है





धन्येबाद

Kya Karu

मेरी जिन्दगी धुआं से हो गयी है,
मुझसे मेरी मंजिल खो गयी है,
ए रास्ता न जाने किधर को जाता है,
या यूँ ही भटकते रहना जिन्दगी का तकाजा है
जिस मोड़ को भी समझा यही मंजिल है मेरी
वहां पहुंचे तो पाया रास्ता और भी लम्बा है,
न जाने ए शाम कब सुहानी होगी,
या यूँ ही बेखयाली में तेरा ख़याल आता है,
सहारे तो हम उसके भी जी लेंगे,
मगर तेरा एहसास कुछ ज्यादा है.

Meri Jidngi

"मेरी जिन्दगी है, या समुंदरी तूफानों से घिरी कोई नाव,
जो डूब भी सकती है, और किनारे भी लग सकती है,
इन हालातों मैं जीना मौत से भी बदतर है,
मेरी सांसे मेरे सीने मैं चुभता हुआ नश्तर हैं,
हम तो जिन्दगी को बस खुअवो मैं ही देखा करते हैं,
इसीलिए हर रोज़ खुदा से मरने की दुआ करते हैं,
लेकिन मौत भी इतनी आसानी से कहाँ मिलती है,
न जाने हमें किस बात की सजा मिलती हैं ,
न जाने हमें किस बात की सजा मिलती है

Thursday, June 25, 2009

Pyar ya Byapar

Pyar hamse kiya kaise yakeen kare,
dil to bahuto ka behlaya hai tumne,
aaj hamare pass ,kal kisiaur ke pass,
Na jane kitno ko hsaya , aur rulaya tumne,
waqt hamse tha manga, magar doosron se milte rahe,
din isi tarha , khamakhyaali main gujarte rahe,
arre hamare na sahi, kisi ek ke to hokar rehte tum,
arre tumne pyar ko kis kadr badnaam kiya hai,
ham toyahi kahenge bas, ki tumne pyar nahi,
byapar kiya hai, haan bas byapar kiya hai"