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Wednesday, March 17, 2010

ये अस्तित्व बिहीन प्यार

ओ सागर की लहरों

खुद पर न इठ्लाओ,

जिसे तुम प्यार समझती हो

वो तो समर्पण है तुम्हारा

अपने प्यार के आगे

खुद के अस्तित्व को ही

भुला बैठी हो तुम,

प्यार तो मैंने भी किया है

पर नहीं खोया अस्तित्व

लेकिन मेरे समर्पण

में कोई कमी नही

में भी अपने प्यार में

विलीन होना चाहती हूँ

लेकिन बचाते हुए खुद को

बरक़रार रखते हुए

खुद की पहचान को



क्या मेरा प्यार,

प्यार नही ?

खुद को मिटा देना ही

प्यार होता है क्या,

अगर ऐसा ही है तो

ये अस्तित्व बिहीन प्यार

मुबारक हो तुम्ही को

और मुझे ये किनारे

जो मेरे अकेलेपन के

संगी हैं, साक्षी हैं

तुम भावनाओ को समझो

ये बाल हमने ऐसी ही सफ़ेद नही किये हैं

ये बाल हमने ऐसी (AC) में बैठ कर सफ़ेद किये हैं

लेकिन तुमने तो अपने बाल धूप मैं सफ़ेद किये हैं

फिर भी मेरा तजुर्बा तुम्हारे तजुर्बे से ज्यादा है

पता है क्यूँ, क्यूँ कि में तुमसे ज्यादा पढ़ा लिखा हूँ (शायद)

तुम्हारा तजुर्बा प्रक्टिकल है

और मेरा ओन द टेबल है

तुम कितना भी घूम-फिर लो,

कितनी भी हकीकत बयां कर दो

लेकिन मेरे पास आते ही, सब कुछ बेकार है,

क्यूंकि तुम बिना कार के, और मेरे पास कार है

वो भी सरकारी, लाल -पीली बत्ती वाली

इसीलिए तो तुम्हरे हर तर्क पर

में तुमसे लाल-पिला होता रहता हूँ

तुम भावनाओ को समझो

में सरकारी अफसर हूँ

मुझे सिर्फ एक ही बात समझ आती है

मेरी नजर तुम्हारी पॉकेट पर जाती है

क्या तुम्हारी समझ में ये बात आती है

अपनी पॉकेट का वजन हलका करो

अर्क-मेडीस के सिधांत को फालो करो

और अपने काम कि नाव को

इस गंदे नाले से बहार ले जाओ

हम भी मौज करे,

तुम दुखी होकर मौज मनाओ

पड़ोसिओं को भी यही रास्ता दिखलाओ

budget 2025...

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rice 2 grains for Rs. 2/

Dal 5 grains for Rs. 5/

milk 1 drop for Rs. 1/

potato 1 piece for rs.30

tomato 1 piece for Rs.50

if u buy Potato +toamto dozen piece



can hv a look of green Pea (matar)



and those buy above all in one take

will be given a chance to smell Desi ghi once....



courtesy

FOOD CORPORATION OF INDIA

तुम्ही बताओ न !

क्या लिखा रहा हूँ मुझे नही पता

शब्द बिखर रहे हैं इधर उधर

बड़ी मुश्किल से आशार बनाता हूँ

फिर उनको सिलसिलेबार सजाता हूँ

फिर कुछ ऊपर कुछ नीचे खिसकाता हूँ

फिर देखता हूँ, की कैसी बन पड़ी है

फिर एक लम्बी सांस लेता हूँ

सोचता हूँ की अब मुकम्मल हुई है

पर ये क्या, ये तो मेरी ग़ज़ल बन पड़ी है

फिर में तेरा अक्स देखता हूँ

कभी में ग़ज़ल को देखता हूँ

फर्क मुझे समझ नही आ रहा

कि कौन सुन्दर है दोनों में

तुम या ये मेरी ग़ज़ल

में असमंजस में हूँ

की तुम से ये ग़ज़ल है

या ये ग़ज़ल तुम ही हो

तुम्ही बताओ न !

सूरत-ए-बेवफाई

हमारी चाहत को इस कद्र बदनाम न करो

दिल कि आवाज है ये, इसे सरे-आम न करो,



करना नही था प्यार, फिर ये दिल क्यूँ लगाया

ठुकराकर हमारी मुहब्बत को, हमें बदनाम न करो,



क्या जरूरी था दोस्ती के लिए, इजहारे मुहबब्त

इस दोस्ती और मुहब्बत को शर्मशार न करो,



काश कि इतना आसान होता इजहारे मुहब्बत

फिर से तुम लैला-मजनू कि कहानी बयां न करो,



दिखा ही चुके हो तुम, अपनी सूरत-ए-बेवफाई

खुदा के वास्ते अब, इजहारे-ए-जुर्म न करो,

Friday, March 5, 2010

मुझे नही पता,......

जैसे ही हमने कुछ लिखने के लिए कलम उठाई

उसकी याद, समय कि चादर से छन छन के आई

में चाहता हूँ कि , उसको नही लिखूंगा अब कभी

में पहले से ही इतना कुछ लिख चूका हूँ उस पर

मगर वो जेहन में इस कद्र बस चुकी है मेरे

कोई बात,उसका ख़याल आये बिना शुरू नही होती

मैं जितना भी उसको भूलना चाहता हूँ

वो पहले से ज्यादा याद आने लगती है

और मेरी कलम को मुह चिढाने लगती है

और कहती है, काश कि मुझको भूलना

इतना आसान होता तुम्हारे लिए

ये मैं भी जानती हूँ, और तुम भी जानते हो

फिर मुझसे मुह क्यूँ मोड़ते हो बार बार

अगर तुम बाकई मुझसे अलग लिखना चाहते हो

तो पहले मुझे अपना लो, अपना बना लो,

लेकिन हकीकत भी यही है,

कि वो मेरी कलम का साथ नही छोडती

अब किसने किसको जकड रखा है

मुझे नही पता,......

में असमंजस में हूँ, कि क्या करू, क्या न करू

मेरा प्यार उससे भी है, और मेरी कलम से भी