.एक दिन शर्मा जी कही जा रहे थे, दूसरी तरफ से आते हुए उनके एक परिचित मिल गए, उन्होंने स्वभिक्तावश पूछ लिया, शर्मा जी कहाँ जा रहे हो, शर्मा जी थोडा अकड़े, की चलो भाई किसी ने तो पूछा और उस अकड को दर्शाते हुए बोले, क्यूँ तुम्हे नही पता कि मैं कहाँ जा रहा हूँ! ये रास्ता कहा जाता है, बाज़ार को जाता है न, फिर भी बेवकूफों की तरह पूछते हो की कहाँ जा रहे हो! अब परिचित थोडा अचंभित हुआ, ये शर्मा जी को क्या हुआ, मेने तो यूँ ही पूछ लिया और ये पता नही क्यूँ सीधे हो रहे हैं मुझ पर! लगता है की शर्मा जी का किसे से झगडा हुआ है, तभी इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं! उसने फिर हिम्मत बटोरी और बोला, शर्मा जी आप कह तो ठीक रहे हैं, लेकि ये रास्ता बाज़ार में होकर तो बंद नही हो जाता, बाज़ार पार करने के बाद आपके परम मित्र चौबे जी के भी तो मकान पड़ता है न, हो सकता हे आप बही जा रहे हो!अब शर्मा जी बोले तो क्या बोले, लेकिन कहते हैं न की आदत जाती नही, बोले तुम्हे कुछ पता नही, मुझे देखों मैं इंसान की चाल से उसका गंतव्य बता सकता हूँ, और एक तुम हो की कुछ पता ही नही, यूँ ही उलटे-सीधे सवाल करते हो, की अफ़सोस होता है की तुम मेरे मित्र हो! मेरी तरह सोचा करो, और अगर सही नही सोच सकते तो, टोका मत करो! इतना कहकर शर्मा जी आगे बढ़ गए!
लेकिन शर्मा जी ने एक बात मन में सोची, की यार वो कह तो ठीक ही रहा था, की बाज़ार से आगे चौवे जी का माकन है, चलो इसी बहाने उनसे भी मुलाकात करता चलूँगाi सो शर्मा जी ने चौबे जी का दरवाजा खटखटाया, चौबे जी ने शर्मा जी की देखते ही, एक जबरदस्ती की मुस्कराहट अपने चेहरे पर सजाई, और मन ही मन सोच की आज एक चाय का कूणडा हो गया, मरते क्या न करते, अथिति देवो-भवो की तर्ज पर शर्मा जी का बेमन से स्वागत किया! उन्हें बिठाया, फिर हाल- चाल लिए, और बोले क्या लोगे! शर्मा जीने कुछ न लेने का नाटक करते हुए कहा कि यार बस तेरी यद् आ रही थी तो सोचा कि मिलता चलूँ, और बैठते हुए अपने कुर्ते कि जेब में हाथ डालने लगे, चौबे जी ने उत्सुक्ताबश पूछ लिया, शर्मा जी आज क्या निकल रहे हो जेब से, और बस शर्मा जी को तो जैसे उनके मन माफिक सवाल मिल गया, बोले चौबे तू बता क्या हो सकता है मेरी जेब में, चौबे जी बोले यार क्या होगा तेरी जेब में, ५०२ पताका बीडी का बण्डल, और माचिस तो तू रखता ही नही,
अभी मेरे से मांगेगा! शर्मा जी बोले चौबे तू रहेगा बही का बही, थोडा दिमाग लड़ा, चौबे जी बोले रहने दे पंडत (चौबे जी प्यार से शर्मा जी को इसी नाम से बुलाते थे), मुझे पता हे तेरी जेब में इसके अलावा और कुछ हो ही नही सकता! फिर शर्मा जी ने हँसते हुए अपनी जेब से "छिपकली छाप "तम्बाकू कि पुडिया निकली, और बोले चौबे देख तू गलत हे न, ५०२ पताका बीडी नही है न, लेकिन चौबे जी भी कम नही थे, बोले पंडत रहने दे, ज्यादा होशियारी न झाडा कर, अबे पंडत बीडी का बण्डल हो या तम्बाकू कि पुडिया, बात तो एक ही है न, दोनों ही में तम्बाकू होता जो सेहत के लिए हानिकारक होता ! अब शर्मा जी चुप, कोई जवाब हो तो कुछ कहे, फिर बड़ी बेशर्मी से अपनी खींसे निपोर दिए, इतने चाय आ गयी, शर्मा जी ने जल्दी से चाय गुटकी, और पतली गली से निकलते बने! पता नही शर्मा जी को किस बात का मुगालता था, वो अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नही थे, उनका हाल कुछ ऐसा ही था, जैसे कि कुऐं का मेढक, जब भी वो टरर टरर करता तो उसकी आवाज बापिस ही उसके कानो में बहुत जोरो कि गूंजती, और वो यही समझता कि एक वो ही है इस दुनिया में, मजाल है किसी कि कोई उसे चुनौती दे!
गलत फेह्मी का भी कोई इलाज होता है!...
लेकिन शर्मा जी ने एक बात मन में सोची, की यार वो कह तो ठीक ही रहा था, की बाज़ार से आगे चौवे जी का माकन है, चलो इसी बहाने उनसे भी मुलाकात करता चलूँगाi सो शर्मा जी ने चौबे जी का दरवाजा खटखटाया, चौबे जी ने शर्मा जी की देखते ही, एक जबरदस्ती की मुस्कराहट अपने चेहरे पर सजाई, और मन ही मन सोच की आज एक चाय का कूणडा हो गया, मरते क्या न करते, अथिति देवो-भवो की तर्ज पर शर्मा जी का बेमन से स्वागत किया! उन्हें बिठाया, फिर हाल- चाल लिए, और बोले क्या लोगे! शर्मा जीने कुछ न लेने का नाटक करते हुए कहा कि यार बस तेरी यद् आ रही थी तो सोचा कि मिलता चलूँ, और बैठते हुए अपने कुर्ते कि जेब में हाथ डालने लगे, चौबे जी ने उत्सुक्ताबश पूछ लिया, शर्मा जी आज क्या निकल रहे हो जेब से, और बस शर्मा जी को तो जैसे उनके मन माफिक सवाल मिल गया, बोले चौबे तू बता क्या हो सकता है मेरी जेब में, चौबे जी बोले यार क्या होगा तेरी जेब में, ५०२ पताका बीडी का बण्डल, और माचिस तो तू रखता ही नही,
अभी मेरे से मांगेगा! शर्मा जी बोले चौबे तू रहेगा बही का बही, थोडा दिमाग लड़ा, चौबे जी बोले रहने दे पंडत (चौबे जी प्यार से शर्मा जी को इसी नाम से बुलाते थे), मुझे पता हे तेरी जेब में इसके अलावा और कुछ हो ही नही सकता! फिर शर्मा जी ने हँसते हुए अपनी जेब से "छिपकली छाप "तम्बाकू कि पुडिया निकली, और बोले चौबे देख तू गलत हे न, ५०२ पताका बीडी नही है न, लेकिन चौबे जी भी कम नही थे, बोले पंडत रहने दे, ज्यादा होशियारी न झाडा कर, अबे पंडत बीडी का बण्डल हो या तम्बाकू कि पुडिया, बात तो एक ही है न, दोनों ही में तम्बाकू होता जो सेहत के लिए हानिकारक होता ! अब शर्मा जी चुप, कोई जवाब हो तो कुछ कहे, फिर बड़ी बेशर्मी से अपनी खींसे निपोर दिए, इतने चाय आ गयी, शर्मा जी ने जल्दी से चाय गुटकी, और पतली गली से निकलते बने! पता नही शर्मा जी को किस बात का मुगालता था, वो अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नही थे, उनका हाल कुछ ऐसा ही था, जैसे कि कुऐं का मेढक, जब भी वो टरर टरर करता तो उसकी आवाज बापिस ही उसके कानो में बहुत जोरो कि गूंजती, और वो यही समझता कि एक वो ही है इस दुनिया में, मजाल है किसी कि कोई उसे चुनौती दे!
गलत फेह्मी का भी कोई इलाज होता है!...