सेटिंग या जुगाड़
ये शब्द जितना छोटा हे
उतन ही प्रभावशाली हे
बिना जुगाड़ के आप सफल हो
बहुत ही कम होता हे,
एक दिन वाइफ ने कहा
आप सेट्टिंग क्यूँ नही करते
हमने गुस्सा दिखाया
वाइफ को धमकाया
ख़बरदार आगे कभी ऐसा कहा
हमसे ये सब नही होता,
बटरिंग बाज़ी,
हम रुखा-सुखा खाई के ही खुश हे
वाइफ गुस्से में बोली,
ठीक हे फिर ऐसी ही काटो जिन्दगी
फिर हमने वाइफ कि बात पर
गंभीर चिंतन किया
और सोचा यार आधी तो
ऐसी ही कट चुकी हे
अब नही कटने देंगे
आप लोग मलाई मारो
और हम रूखे में
नही, अब ऐसा नही होगा
मैं कितने दिन ठूंठ बना रहूँगा
जिसका तना सूखा हुआ हे,
जिस पर न टहनियां हैं
जिस न हरी पत्तियां हैं
न ही परिंदे आकर बैठते हैं
न ही राहगीर के लिए छाँव है
तो अब मेने भी सेट्टिंग शुरू कर दी
अब में भी हरा होने लगा हूँ
परिंदे भी आकर करलव करने लगे हैं
राहगीर भी छाँव पाने लगे हैं
में सोचता हूँ अगर में सेट्टिंग नहीं करता
तो मेरा अस्तित्व ख़त्म हो जाता
भले ही मेने इस अस्तित्व को बचाने में
अपनी आत्मा को बेच डाला हो,
ऐसा नही करता तो में मारा जाता
आज अस्तित्व कि लड़ाई हे
आत्मा या परमात्मा कि नही
जिसको हम रोज़ ही मारते हैं
आज मेरी एक शान हे, भले ही झूठी
मेरा एक स्वाभिमान हे, भले ही झूठा
लेकिन में जिन्दा हूँ, हूँ भी कि नही
मुझे इन पचड़ों में नही पड़ना
जान हे तो जहान हे
भले ही बाकि हिन्दुस्तान
शमशान हे
पता नही में क्या क्या लिख जाता हूँ
क्यूंकि लिखना मेरी मज़बूरी हे
क्यूंकि सेटिंग के बिना जिन्दगी अधूरी हे
अलोक जब भी लिखता हे ...कुछ यूँ ही लिखता हे
Thursday, August 19, 2010
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