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Thursday, June 10, 2010

मुझे याद हैं वो दिन

मुझे याद हैं वो दिन

जब मैं तुमको और तुम

मुझको लिखा करती थी,

हमारा हर गीत, हर ग़ज़ल,

एक दुसरे में ढला करती थी,

हम नदी के वो दो किनारे थे

जिसमे बहता पानी हमारे मिलन का

शाक्क्षी हुआ करता था,

फिर अचानक एक दिन तूफ़ान आया

नदी ने अपना रुख बदल दिया,

तुम मेरा साथ छोड़ कर

किसी दुसरे किनारे से जा मिली,

और फिर से बही गीत-ग़ज़ल

गुनगुनाने लगी

मैं आज भी विराना सा

तुमको दूर से निहारता रहता हूँ,

इसी झूठी उम्मीद में शायद

फिर से ऐसा कोई तूफ़ान आये

एक बार फिर से तुमको

मुझसे मिला जाये,

हम फिर से अपनी मुहब्बत के तराने

एक दुसरे को सुनाये

हम फिर से बही गीत-ग़ज़ल गुनगुनाये

मुझे याद हैं वो दिन

जब मैं तुमको और तुम मुझको लिखा करती थी,