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Tuesday, November 2, 2010

उनके घरों में भी उजाला हो.......

चेहरे कि चमक से जिस्म के जख्म छिपा नहीं करते
बनावटी फूलों से इस तरह चमन महका नहीं करते

लाख मुस्करा लो तुम भले ही ज़माने के सामने
दिलों में छिपे दर्द यूँ ही मिटा नही करते

खेलों में भी खेल, खेल गए मेरे ये रहनुमा
यूँ फकत रौशनी से ये अँधेरे मिटा नही करते

बात तो तब है उनके घरों में भी उजाला हो
यूँ अँधेरे में रख तुम्हारे दिल सहमा नही करते

ये कंगूरे देखकर क्यूँ इतराते हो तुम इस कदर
काश उस नीव कि ईंट पर तुम अपनी नजर रखते