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Tuesday, August 28, 2012

देश का भविष्य!







Blog parivaar
चूहला, कुछ गीली लकड़ियाँ , भीगे हुए उपले,
माँ हाथ में फूंकनी लिए जोरो से खांसते हुए
बेदम होती हुई सी, एक नाकाम कोशिश को
कामयाबी कि और मोड़ती हुई, आग जल उठती है!

ये आग तो जल ...उठी, इसके जलने से पेट कि आग
और जोरो से ...भड़क उठती है एक उम्मीद के साथ,
सवाल मुहं बाये खड़ा है ख़ाली बर्तन चूहले पर चढ़ा है
उधर.. ख़ाली ...पड़े डब्बों में यूँ ही कुछ टटोलती माँ!

इसी निरर्थक प्रयास में, चूहला ..अथक ...कोशिशों के बाद
फिर से बुझ जाता है, ख़ाली बर्तन धीरे से मुस्करा उठता है
देश का ..भविष्य थाली और कटोरी लिए बैठा है इंतजार में
माँ को भविष्य कि चिंता सता रही है, ये उसकी जिम्मेदारी है!

उधर संसद में बहुत ही जिम्मेदार लोग,इस पर बहस कर रहे हैं
गरीबों के लिए बजट में संशोधन कर रहे हैं दो वक़्त का खाना
जरुरी है सभी के लिए, सरकार इसके लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है
बजट राशी पिछले साल से दोगुनी कर दी जाती है, उनका काम पूरा!

क्यूंकि भविष्य कि चिंता तो उस माँ कि जिम्मेदरी है!
(इक ख्याल अपना सा... "आलोक")