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Wednesday, February 24, 2010

इट्स टाइम फॉर गिव & टेक

वाह क्या बात है, अच्छा है

मन में तो यही रहता है, मगर

इसने कभी मुझे नही दिया, तो मै क्यूँ,

चल यार दे ही देता हूँ, शायद आगे से,

कोई बात नही मै नही दूंगा

तो फर्क क्या रह जायेगा

इसमें और मुझमे,

ले भाई मेने तो दे दिया

अब देखता हूँ तुम क्या करते हो

बैसे एक बात है

इट्स टाइम फॉर गिव & टेक

भलाई का जमाना नही

शराफत भी काम नही आती

सो टिट फॉर टेट

हाँ यार कई बार ऐसा ही

करना पड़ता है

लेकिन ऐसा नही होना चाहिए

फिर भी हो जाता है

यार मै भी तो इंसान ही हूँ

मेरी सोच का दाएरा भी

कई मर्तवा सिकुड़ जाता है

बातें भले ही मै बड़ी बड़ी करूं

लेकिन उससे होता क्या है

मैं भी हुएमन बीन हूँ

यार एक बात है,

खैर छोडो न और क्या कहूँ

Saturday, February 20, 2010

मेरी तो पूरी ग़ज़ल ही तू है

दर्द भी तू है, दवा भी तू है

सुकूं का हर लम्हा भी तू है


तेरे बिन कोरे हैं सारे सफे मेरे

मेरी जिन्दगी का फलसफा भी तू है


है तू ही मकसद मेरी जिन्दगी का

जिस्म में रूह की जगह बस तू है.


तेरे बिन कैसे जिऊं मेरी जान

मेरी जिन्दगी की सदा भी तू है


तू ही हर लफ्ज मेरी कलम का

मेरी तो पूरी ग़ज़ल ही तू है

Thursday, February 18, 2010

टी.र.पी का मामला यहाँ भी है

*Note ye rachna ka uddeshye sirf "Hsaye hai"


जैसे ही हमने अपनी रचना को कम्युनिटी पर पोस्ट किया

तुरंत ही हमने अपने भूले -बिसरे दोस्तों को याद किया

उनको बोलने का मोका दिए बिना ही उनका इंटरव्यू लिया

कहा कि कहाँ रहते हैं आजकल, भूल गए हो क्या

इतना भी क्या बीजी हो गए जो याद ही नही करते

अरे भाई कभी हमारी और भी ध्यान दे लिया कीजिये

हमसे बात न सही , कम से कम हमारी

नयी रचना पर तो अपनी नजरे इनायत कीजिये

अपनी मतलब कि बात कहते ही हम चुप हो गए

फिर उन्हें बोलने का मौका देते हुए हमने कहा

कि अब बोलोगे भी, या यूँ ही चुप रहोगे

हमारे मित्र महोदय बोले, यार तुम बोलने दोगे

तब हम न कुछ बोलेंगे, ठीक है थोडा बीजी हूँ आजकल

फुर्सत मिलते ही , सबसे पहले आपकी रचना पढूंगा

वो बोलते रहे, लेकिन हम बहा से रफूचक्कर हो

किसी और बीजी मित्र को तलाशने लगे

अरे भाई टी.र.पी का मामला यहाँ भी है

Wednesday, February 17, 2010

बता दे हमको भैया

एक तरफ मित्र है, तो एक तरफ है प्यार

दो पाटन के बीच में, मैं खड़ा हुआ लाचार



खड़ा हुआ लाचार , की कित को कदम बढाऊँ

एक और कदम बढाऊँ, तो दूजा दूर है पाऊँ



दूजा दूर है पाऊँ , समस्या बहुत ही गंभीर

खुद को पाए "गौरव" , बड़ा ही धीर - अधीर



कहे "गौरव" भाई , ये है बड़ी बिचित्र समस्या

है गर कोई समाधान , तो बता दे हमको भैया

Thursday, February 11, 2010

कोई तो बजहा हो

तेरी मुस्कराहटे कुछ इस कद्र गम-जदा है
जैसे जिन्दगी जी रही बे-बजहा हो

हाल पूछो तो कहते हैं की सब ठीक है
इस कद्र झूठ बोलने की कुछ तो बजहा हो

बहुत दिन बाद मिले हो सब ठीक तो है
ये हालात बदलने की कुछ तो बजहा हो

नहीं बदला है तो बस इक मेरा वक़्त
कब बदलेगा ये शायद किसीको पता हो

ये जीना भी कोई जीना है गौरव
इस तरहा जीने की कोई तो बजहा हो