नईदिल्ली रेलवे स्टेशन , प्लेटफोर्म नो २
लोकल आने मैं अभी 20-२५ मिनट बाकि,
मुझे को भूख लगी,
मैंने आलू-पूरी वाले से एक पत्ता खरीद लिया,
थोडी दूरी पर कुछ बच्चे, उम्र कोई ७-८-१० साल,
कुछ अधनंगे, कुछ फटेहाल,
टुकुर टुकुर मुझको खाते हुए देखते रहे,
मैंने खाकर जैसे ही पत्ता, कूडेदान मैं फेंका ,
वो सब उसपर टूट पड़े , लड़ने लगे,
जिसके हाथ जो लगा, वो उसको चाटने लगा,
मैंने उनको डांटा , लेकिन वो चाटने मैं मस्त,
फिर भी मैंने उनको रोका, ऐसा मत करो,
कितने दिन से भूखे हो, कोई कुछ नहीं बोला,
तभी पूरी वाला बोला , अरे साहब रहने दीजिये,
ये इनकी रोज़ की आदत है,
मैंने कहा यार, ये छोटे छोटे बच्चे हैं, भूखे हैं,
मुझ से रहा नहीं गया, वो ६-७ थे,
मैंने सभी को एक -एक पत्ता दिलवा दिया,
सभी खुश, उनकी आँखों की चमक देखकर ,
मेरा सीना गर्व से फूल गया,
और मुंझे लगने लगा, की आज मैंने
भूखे हिन्दुस्तान का पेट भर दिया,
मैं इसी से संतुष्ट हो गया,
लोकल आई , मैं उसमे बैठ गया,
लिकं मेरी आँखों के सामने ,
बही भूखे-नंगे बच्चे आ रहे थे बार-बार
और मैं सोच रहा था की ,
कल से मैं आलू-पूरी नहीं खाऊँगा
Wednesday, January 20, 2010
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2 comments:
aisa kyon naheen socha ki kl se jab bhee khaoonga in jaison ko bhee khilaoonga.
thnx for coming to my post,
"merea ye kehne ka tatparye yaha par ye hai , ki log jo lungar sajate hain, wo ek din ke liye hota hai, baki ke din kaun un bhookho ko khilayega..."
hope u understand what i meant to say here
thnx
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