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Saturday, January 23, 2010

न जी होगा , और न ही कोई बदनाम होगा

जैसे ही उन्होंने हमारे नाम के बाद "जी" लागाया

हमें अपनी उम्मीदों पे पानी फिरता नजर आया,

हमने मन ही मन सोचा , यार ये कहा फंस गए

इससे अच्छा तो वही थे , जहा सब हमें नाम से बुलाते थे

और हम सबके नाम के बाद बड़ी शिद्दत से जी लगाते थे

फिर हमने सोचा , की यार तू यहाँ खामखा आया

जहाँ हमें अपनी बढती उम्र का अंदाजा हो आया

अब मरते क्या न करते, फिर सोचा अब क्या करेंगे

जब तक झेल सकते हो झेलो फिर कही और पनाह लेंगे

जहाँ सिर्फ उनका और हमारा नाम ही नाम होगा

न जी होगा , और न ही कोई बदनाम होगा

6 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इस जी का क्या चक्कर है? पर जी से उम्र का अंदाज़ा बहुत खूब कहा है....:):)

अच्छा हास्य....बधाई

रश्मि प्रभा... said...

are bhai 'ji' se ghabrana kaisa,yah to aadar hai, chhote ke liye bhi...
hahaha

अविज्ञात परमहंस said...

वसिष्टजी,
यह हमारी सांस्कृतिक विरासत है। बचपनमे संघ की शाखाओं मे खेलने के लिये जाता था।धीरे-धीरे कुछ संस्कार होने लगे।
इसका मतलब यह तो नही होता कि मै कोई कट्टरपंथी हूं।
हर इन्सान का इन्सान होना ही एक बडे गौरव की बात है। अगर कोई आपको गौरवजी कह कर पुकारता है, तो समझिये वह आपका गौरव कर रहा है।
आशा है आप मेरे सुझावसे नाराज नही होंगे।
आपका एक नया मित्र- प्रकाशजी

shikha varshney said...

hahahaha...sahi hai..par ji ko umar se kyon jodna...aadar se jodiye.:)

gyaneshwaari singh said...

अच्छा लिखा है गौरव जी
मज़ा आ गया पड़ कर

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।