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Thursday, July 29, 2010

बहस बराबर छिड़ती हे...........

जैसे ही एक मनचले सिरफिरे ने

शांत सुन्दर कमल से सजे हुए

तालाब में एक भाई-भरकम

पत्थर जोरों से फेंका,

एक जोरदार छपाक कि

आवाज हुई, शांति भंग हुई

कुछ क्षण के लिए,

तालाब बापिस अपनी

धीर -गंभीर मुद्रा में

बापिस आ गया,

लेकिन उस शोर कि

आवाज सुन कुछ विशेष

तथाकथित ख्याति प्राप्त

विशेषग्ये बहा इकठ्ठे हो गए,

बहस जोरो कि छिड़ गयी

कोई पत्थर कितना बजनी था

ये पता लगाने में जुट गया

कोई पत्थर र्गिरने से हुई आवाज

कि फ्रेकुएंसी जानने में लग गया

कोई कितना पानी उछलकर

तालाब से बाहर छिटक गया

इसकी जानकारी जुटाने में लग गया

एक साहब ने तो कमल ही कर दिया

उन्होंने तालाब कि उत्पत्ति पर ही सवाल

खड़े कर दिए, उनके समर्थन में कई और

लोग भी उन्ही कि भाषा में बात करने लगे

बात तालाब से शुरू हुई

और महासागर तक जा पहुची

किसी एक ने उन महासागरों कि

उत्पत्ति और सार्थकता पर गंभीर

प्रश्नचिन्ह लगा दिया, और अपने

अपने दूषित तथ्यों से न जाने

क्या क्या कह दिया, लोगो कि

भावनाओ को आहत कर दिया,

सभी विशेषग्ये आपस में भिड़ गए

और पत्थर फेंकने वाला चुपचाप

तमाशा देखता रहा, मुस्कराता रहा

ये सब देख में सोचने लगा

कि कही भी कुछ फर्क नही हे

चाहे वो पार्लियामेंट हो

या साहित्य का दरबार

बहस बराबर छिड़ती हे

कई बार बहस मुद्दों पर होती हे

कई बार बहस के लिए मुद्दे ढूंढे जाते हैं

लेकिन इस सब से किसको क्या

फ़ायदा होता हे ये कोई नही जनता

शायद उस मनचले-सिरफिरे को

कुछ पता हो..........

Wednesday, July 28, 2010

कल्लू धोबी और सरकार

.......


कई दिनों से कल्लू धोबी

घर नही आया,

हम कारण जानने उसके घर पहुंचे

देखा वो अपने गधे को नेहला रहा था

हमने कहा कल्लू भाई आज कल कोई खास बात

कई दिनों से आये नही कपडे लेने

बोला साहिब अब मेने कपडे धोने

का कम दिया है छोड़ ,

हमने तुरंत कहा तभी

गधे को धो रहे हो

वो गुस्से से तमतमाया

बोला ख़बरदार साहिब

इसको गधा नहीं कहना कभी

इसको हम रोज़ लक्स साबुन से नहलाते हैं

रत-दिन इसको घोडा बनने के गुर सिखाते हैं

देख नही रहे ये सलेटी से सफ़ेद हो गया है

इसके बदलने में ज्यादा वक़्त नही रह गया हे

बस कुछ दिन कि बात और हे

ये आपको पहचान में नही आएगा

क्यूंकि ये गधे से घोडा बन जायेगा

हमने आश्चर्ये से कल्लू धोबी कि

और देखा, फिर मन ही मन सोचा

बैसे ये कल्लू धोबी गलत क्या कर रहा हे

ये भी तो सरकारी नीतिओं पर चल रहा हे

हमारी सरकार भी तो यही कर रही हे

वो भी कॉमन वेल्थ गेम पर

पानी कि तरह पैसा बहा रही हे

कहती हे कि दिल्ली को पेरिस बनाना हे

इस हिन्दुस्तान कि गरीबी को छिपाना हे

यहाँ स्टेडियम पर स्टेडियम बन रहे हैं

उधर पूरे देश में खुले में अनाज सड़ रहे हैं

अगर इसका मामूली सा हिस्सा

इस अनाज को सहेजने में लगाया होता

तो आज न जाने कितने लोगो को

भुकमरी से मरने से बचाया होता

में मन ही मन सोच रहा था

कल्लू धोबी तो अपने गधे पर

अपना ही पैसा बहा रहा हे

लेकिन ये निकम्मी सरकार

आम आदमी के टैक्स का पैसा

खालिस दिल्ली पे लगा रही हे

और आम जनता को गेम के बहाने

उन्ही को चूना लगा रही हे

Tuesday, July 20, 2010

चाय कि चाह ...........................

बहुत दिनों के बाद , एक बहुत ही अच्छी

फ्रिएंड्स रेकुएस्ट हमारे ऑरकुट पर आई

हमने झट-पट उनका प्रोफाइल टटोला

और सोचा एड करो लो मिया,

इस प्रोफाइल हमने कोई नही पाया घोटाला

अभी तक तो हमें ज्यादातर S.t.d call

ही आते थे. बहुत दिनों के बाद लोकल काल आई

हमने तुरंत उनकी फ्रिएंड्स रेकुएस्ट एक्सेप्ट कर

अपनी दोस्ती कि मोहर उनकी दोस्ती पर लगायी

और फटाफट उनको अपनी लिस्ट में एड कर डाला

अब मामला चूँकि लोकल था

हमने तुरंत अपनी दोस्ती को

बिना टाइम गबाये टॉप गेअर में डाला

और मोह्तिर्मा के सामने इक चाय का

ऑफर बाड़ी शिद्दत से रख डाला

अब रोज जब भी मिलते "ऑरकुट पर"

बही रटा रटाया सवाल , चाय कि चाह हे

कब पूरी कर रही हे, वो भी वही रटा रटाया

जवाब देती , हाँ जी आ जाइये जब पीनी हो

सिलसिला यूँ ही चलता रहा,

बिना दूध /चीनी के चाय बनती रही

वो पिलाती रही , और हम पीते रहे

एक दिन वो खीज ही गयी

बोली , जब देखो सभी लोग

चाय कि बात करते हैं, कब पिला रही हे,

हमने तुरंत उनके टेम्पेर को भांपा

और कहा मैडम जी बात वो नही हे

बात ये हे कि , लोग चाय कि चाह नही

उनको तो आपसे मिलने कि चाह हे,

बोली ये तो हमें भी मालूम हे

सोच रही हूँ, कि सभी को

चाय पर इनविटे कर लूँ

एक ही साथ सबकी चाह पूरी कर दूँ

हमें कहा कोई बुराई नही हे इसमें

जब चाय का ऑफर दे तो

साथ में बोल दे कि हमारी अन्नेवेर्सोरी है

इसीलिए चाय पर सभी को बुलाया हे

अब गिफ्ट के लिया मना भी क्या करूं

तो लोग बिना लाये हुए मानेंगे नही

क्यूंकि सभी दोस्त बहुत ही समझदार हे

हमें आप सभी का बड़ी शिद्दत से इंतजार हे

आना भूलियेगा नही,

इसी उम्मीद से, कि आप अब चाय

ठंडी नही होने देंगे,

अपनी दोस्ती कि गर्माहट को

यूँ ही बरक़रार रखेंगे