एक दिन में दफ्तर आने में लेट हो गया
ये ही कोई घंटा दो घंटा
बॉस उस दिन इत्तेफाक से
टाइम पर आ गए,
जैसे ही में दफ्तर में घुसा
चपरासी मेरी टेबल पर आया
और बॉस का फरमान हमें सुनाया
में गुस्से में था, लेट होना कुछ परेशानी
कि बजहा थी
में मुआमले को भांपते हुए
जोरो से चिल्लाया,
तू पहले पानी क्यूँ नहीं लाया
चल जा पहले पानी पिला,
मेने अपने स्टाइल में बॉस
को सूचित कर दिया
कि अगर उल्टा पुल्टा कुछ कहा
तो समझ लेना, पारा मेरा भी हाई हे
पानी पीकर जैसे ही अपना
तमतमाया हुआ चेहरा लेकर
बॉस के केबिन में पहुंचे,
बॉस मुस्कराया, और बोला
अलोक यार वो जो कल बात हुई थी
वो कम हो गया क्या,
हमने कहा आज हो जायेगा
बॉस बोला यार थोडा जल्दी कर देना,
बैंक में रिपोर्ट सबमिट करनी हे
फिर धीरे से बोला , क्या हो गया आज
कोई प्रोब्लम हे क्या
मेने कहा नही तो,
हम दोनों ही उस बात को
टालने कि फिराक में थे
जिससे दोनों कि इज्जत बनी रहे
बॉस बोला फिर ठीक हे
रिपोर्ट जरा जल्दी बना देना
में ओके बॉस करके चला आया
और मन ही मन मुस्कराया
फिर मुझे बॉस कि समझ पर
यकीन हो आया
कि यार ये बॉस बनने लायक ही हे
तभी ये बॉस हे
Saturday, August 14, 2010
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2 comments:
यकीन हो आया
तभी ये बॉस हे
...बहुत पसन्द आया
bahut khoobsurt
mahnat safal hui
yu hi likhate raho tumhe padhana acha lagata hai.
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