http://www.clocklink.com/world_clock.php

Tuesday, August 31, 2010

ये स्टाइल हे काफी पुराना

न गीत हे, न मीत हे

हम अपने मनमीत हैं

प्यार होता हे क्या

ये गजलों से जाना

फिर भी न आया

हमसे बनना दीवाना

जब भी ख्यालों में

डूबे किसी के हम

निकली मन कि बात

बनके एक नज्म

उन्होंने पढ़ा उसको

इक दिन फुर्सत से

और बोले वाह वाह

आप शायर बहुत अच्छे

अब दिल कि बात

उन तक पहुचाएँ कैसे

जुबान से कह नही सकते

लिखते हैं तो शायर कहते

अब तुम ही बताओ

हम आशिक कैसे बनते

रास न आया हमको

दिल का लगाना

पढ़ के मेरी नज्म

वो बोले रहने भी दीजिये

ये स्टाइल हे काफी पुराना

8 comments:

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

बहुत खूब.....ये स्टाइल है काफी पुराना
ब्रह्मांड

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

:):) पर अचूक स्टाईल है ...

संजय भास्‍कर said...

वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

दिगम्बर नासवा said...

पुराना तो है पर कोई नया स्टाइल भी तो नही ... अच्छा लिखा है ...

प्रवीण पाण्डेय said...

स्टाइल तो बिल्कुल नया है।

Khare A said...

thnak you all

Shah Nawaz said...

:-) ...... बेहतरीन!

swaran lata said...

बेहतरीन! बहुत खूब....बेह्तरीन रचना