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Thursday, September 30, 2010

देश का बंटाधार................


दुनिया थू थू कर रही, मचा रही हे शोर
कलमाड़ी बाबा चुप हैं, मन अंदर से चकोर

मन अन्दर से चकोर, चिल्लाओ जितना प्यारे
सत्तर पुश्ते सुधर गयी, हो गए वारे न्यारे

हो गए वारे न्यारे, ये हे CWG कि माया
इस भ्रम में मत रहो,अकेले मेने ही खाया

अकेले मेने ही खाया, दिया सबका हिस्सा वार
हम सबने मिलकर कर दिया, देश का बंटाधार

देश का बंटाधार, नही था दूजा कोई उपाए
भिराष्टचार कि जद से कोई हे जो बच के दिखाए

हे जो बच के दिखाए , ये परंपरा बहुत पुरानी
कोशिश कि जिसने भी, उसको याद दिला दी नानी

काहे बाबा गौरव, हे ये बीमारी ला-इलाज
हो सके तो कर दो, इन नेताओं को खल्लास!

Monday, September 27, 2010

कलमाड़ी-बाबा.........


जिसे देखो, सब कलमाड़ी बाबा के ऊपर पेले जा रहे हैं! ये कर दिया, वो कर दिया
कोई दुनिया भर के चुटकले छोड़ रहा हे,कोई कहानी कह रहा हे, कोई कलमाड़ी -भ्रष्ट-चलीषा का गुणगान कर रहा हे! अब चुटकलों का क्या कहे, पिछले कई बर्षों से इंडियन चुटकलों के बेताज बादशाह "सरदार जी" का पद खतरे में पड़ गया हे, क्यूंकि जिधर देखो कलमाड़ी-बाबा ही कि चर्चा हे! जिस किसी शख्श के जेहन में जो भी गंदगी भरी हे सब कलमाड़ी -बाबा कि ऊपर ही डाल रहे हैं, गोया कलमाड़ी-बाबा न होकर वो कोई MCD- का कूड़े-दान हो गए!
फिर मेने सोचा यार में इस भेड़-चाल में नही पडूंगा, जिसका कोई नही उसका तो अपुन हे यारों, तो कलमाड़ी बावा आप चिंता न करे, में हूँ न आपकी तरफ, आप अकेला कतई महसूस न कीजिये, बस इत्ती सी इल्तजा हे, कि थोड़ी हे न बस थोड़ी सी नजरे इनायत हम पर भी कर दीजियेगा, उसी से हमारी कई पीड़ियाँ तर जाएगी! और माँ-कसम हम आपकी तारीफ में जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम से भी मजबूत पुल बांध देंगे, जिस पर सिर्फ और सिर्फ आपका भला सोचने वाले ही आ जा सकेंगे, आप चिंता न कीजिये, बैसे आपकी महिमा तो अब अपरम्पार हो चुकी हे, दुनिया भर के महान आंकड़े विशेषगये आपकी कमाई कि रफ़्तार कि तुलना बिल-गेट्स कि रोज-आना कि कमाई से करने लगे हैं, और अनोपचारिक रूप से सभी आंकड़ा ज्ञाता इस बात पर सहमत थे कि आपने बाकई बिल-गेट्स को इस मामले में बहुत पीछे छोड़ दिया हे, जिस रफ़्तार को पाने में बिल-गेट्स ने कई वर्ष लगा दिए, उसे आपने महज कुछ महीनो में ही पा लिया, तो सबसे पहले इस नाचीज़ कि बधाई स्वीकारे! और रही इल्जामो कि बात, तो येकोई नयी बात नही हे, कि किसी नेता पर या अधिकारी पर इल्जाम लगे बिना कम पूरा हो जाये, ये पब्लिक हे बाबा और आप ठहरे बाबा और ऊपर से नेता जी, किसकी मजाल जो आपका बाल भी बांका कर जाये, न तो आज तक किसी बावा का कुछ बिगड़ा न ही किसी नेता का, और आप तो डबल बोनान्जा हो बाबा, तो चिंता नोट, बस नोटों कि ठिकाने लगाने कि चिंता करो, और कुछ इधर भी बाबा, इस बच्चे का भी ख्याल करना, इसकी सात पीड़ियाँ आपको याद रखेंगी बाबा! बोलो श्री श्री कलमाड़ी-बाबा CWG अनंत बार ४२० जी महाराज कि जय!

Saturday, September 25, 2010

मेरा प्रिये नेता.......

भाई से भाई लड़ाते चलो
खून कि नदियाँ बहाते चलो
कोई मरे या कोई जिए यहाँ
राजनीती कि रोटियां पकाते चलो
देश कि हालत पर घडयाली आंसू बहाते चलो!

ना कोई अपना ना कोई पराया
भोली जनता को जो बेवकूफ बनाता
नेता कि तो यही हे परिभाषा
यूँ ही बेबजह मुद्दा उठाते चलो
देश कि लुटिया डुबाते चलो !

ना कोई कर्म हे ना कोई शर्म है
दिखता ऐसे जैसे कोई दबंग हे
देख के रंग इसका जनता दंग हे
गेम जाये गड्ढे में इसको क्या रंज हे
बेशर्मी से यूँ ही मुस्कराते चलो
देश कि नाक कटवाते चलो !

अनाज सड़ता हे, सड़ता रहेगा
मर जाये कोई भूखा इसका क्या हे
भूखी जनता में पर ये न बटेगा
हिसाब तुम कैमरे पर समझाते चलो
कानून कि धज्जियाँ उड़ाते चलो!

भाई से भाई लड़ाते चलो
खून कि नदियाँ बहाते चलो......

Wednesday, September 22, 2010

जी का जंजाल (माया जाल)

आज हमारी श्रीमती जी का पारा सातवे आसमान पर था, बोली बंद करो ये सब कविता/ग़ज़ल लिखना! मेने आश्चर्ये-चकित होकर पूछा अरे ये अचानक आपको क्या हुआ, इस तरह दहाड़ने का मतलब, कुछ तो हमारी इज्जत कहा ख्याल रखो, पडोसी बैसे ही फिराक में रहते हैं, की


यार इन दोनों में कब बजे और हम मजा ले, जो कहना हे धीरे से कहो, क्यूँ खामखा बखेड़ा खड़ा करती हो, हमें इस तरह गिड़गिड़ाता देख  , वो और जोर से चिल्लाई, बोली आज फैसला होकर ही रहेगा, या तो ये कविता रहेगी या में , पता नही आप कविताके बहाने न जाने किस किस से अपना मन बहलाते रहते हो!, न जाने क्या लिखते हो कविता में,मेने कहा प्रिये में तुमको ही तो लिखता हूँ, बात ये है कि तुम गहराई में तो जाती नही हो, ऊपर ही ऊपर तैरती रहती हो, बोली हां आप यही चाहते हैं कि में डूब कर मर जाऊ, ताकि आप फ्री हो जाओ, हे न, बैसे मेने आपकी कई कविताएँ पढ़ी हैं , ये देखो इस गजल में पता नही क्या क्या लिखा हे

"है तू ही मकसद मेरी जिन्दगी का

जिस्म में रूह की जगह बस तू है.



तेरे बिन कैसे जिऊं मेरी जान

मेरी जिन्दगी की सदा भी तू है



तू ही हर लफ्ज मेरी कलम का

मेरी तो मुकम्मल ग़ज़ल तू है "

सच्ची बात तो ये है, हमें कहते हुए शर्म आती हे, की आप इस कविता का २०% भी नही हैं,

आज बता ही दो ये किसके लिए लिखी थी आपने, मेने कहा भाग्येवान तुम्हरे अलावा और किसको लिख सकता हूँ में, तुम ही तो हो, जो हर वक़्त खयालो में रहती हो, और मेरी कविता /ग़ज़ल की तुम आधारशिला हो प्रिये, वो तमतमाई और गुस्से में बोली, रहने दीजिये, आप हमें मत लिखा कीजिये, आप हमें हकीकत में तो प्यार करते नही, खयालो में क्या ढूढते होंगे, किसी और को बनाइएगा, बैसे भी आप अब ४० के होने वाले हैं अगले साल, हमें तो डर ही लगने लगा हे, की कही वो कहावत सच न हो जाये , हमें कहा कहावत कौन सी कहावत!

वो बोली "MAN IS NAUGHTY AT 40" , मैंने कहा हे भगवन तो ये बात हे, तुम कहावत पढ़कर परेशां हो रही हो, ऐसी कोई बात नही हे घबराने की, निश्चिन्त रहो, बोली कैसे निश्चिन्त रहे, आजकल फिसलते देर नही लगती, और जिस तरह आप सुबह शाम नेट पर लगे रहते हैं , हमें चिंता होने लगी हे, हाँ! मैंने कहा अब शक का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नही था, आप यकीं करो या न करो फिलहाल ऐसी कोई सम्भावना नही है, वो बोली नही मानोगे आप, इस मुए नेट में रखा क्या हे, मेने कहा भाग्यवान नेट आज की जरुरत बन चूका हे, बोली अगर ऐसा हे तो में भी नेट पर कम करुँगी, मेरा भी एक ईमेल आई डी बना दीजिये

फिर हम भी अपने दोस्तों से बात क्या करंगे, और आज से चूल्हा चौका आप संभालिये,!

मेने कहा ये बात हुई न, ऐसा करते हैं की एक काम वाली को रख लेते हैं, तो आप किचन से फ्री हो जाएँगी, और घर के काम में भी सहूलियत हो जाएगी, वो जोर का चिल्लाई, कोई काम वाली नही आएगी, पता नही हमें सहूलियत होगी, या आप अपनी सहूलियत ढूढ़ रहे इसमें भी, मेने कहा भाग्येवान तुम्हारी बीमारी का कोई इलाज नही हे, कुछ नही हो सकता

तुम्हारा.. दोस्तों आपके पास हे क्या कोई इलाज, ....

Sunday, September 19, 2010

यहाँ तो भ्राताश्री से भी बड़े बड़े नाम हैं........


आज कुम्भकरण को भी गुस्सा आ गया
वो भी ब्रहम्मा जी से टकरा गया
बोला मुझे सिर्फ ६ महीने कि महुलत
और इनको पूरे ६२ सालों कि सहूलत
बोला भगवन मेने तो बर्षों के कठिन तप से
ये वरदान पाया है
ये कौन लोग हैं भगवन जिन्हें
आपने इतने बर्षों से सुलाया है
ब्रहम्मा जी घबराये,
और बोले वत्स शांत हो जाओ
तुम थोडा सा दिमाग लगाओ
वो त्रेता युग कि माया थी
ये कलयुग कि काया हे
यहाँ मेरा कोई नहीं हे काम
ये तो भोले और विष्णु जी कि हे दूकान
वत्स तुम विष्णुलोक जाओ
अपनी समस्या उनको बताओ
कुम्भकर्ण विष्णुलोक पहुंचा
वहा देखा उसने अजीब लोचा
जैसे ही वो अन्दर घुसने लगा
दरवान ने उसको वही पे रोका
बोला आप किस लोक के वासी हैं
कहा से आये हैं क्या नाम हे
कुम्भकर्ण बोला मैं त्रिलोक विजेता
रावन का छोटा भाई हूँ
संत्री बोला यहाँ लोग कोई न कोई
सिफारिस लेकर ही आते हैं,
बैसे नाम तो ये सुना हुआ हे
बैसे ये नेता जी किस पार्टी से आते हैं
क्या इनको कोई मंत्री पद मिला हुआ हे
कुम्भकर्ण का सर चकराया
उसको जोरो का गुस्सा आया
बोला क्या बकवास करते हो
खामखा हमसे भिड़ते हो
संतरी समझ गया और बोला
किस्से मिलना है, और क्या काम हे
खाली आये हो या पास में कुछ दाम हे
कुम्भकर्ण बोला दाम कैसा दाम
दरवान समझ गया, बोला ठीक हैं जाइये
और ये जो लम्बी लाइन है
इसमें सबसे पीछे लग जाइये
कुम्भकर्ण ने एक निगाह दौड़ाई
उसे तो लाइन बहुत लम्बी नजर आई
बोला यहाँ खड़े खड़े तो
में पागल हो जाऊंगा
उसने दरवान से पूछा
ये जो लाइन में लगे हैं कौन हैं
दरवान बोला श्रीमान ये सब कलयुगी हैं
और इंडिया से आये हैं
कुम्भकर्ण ने देखा कि कुछ लोग
जो सफ़ेद कुरता-पजामा पहने हुए हैं
वो डैरेक्ट ही अन्दर जा रहे हैं
उसने दरवान से पूछा ये कौन लोग हैं
दरवान बोला ये वि वि आई पि हैं
इन्होने प्रभु जी से मिलने का स्पेशल पास है
बनबाया है,
इसीलिए प्रभु जी ने इनको पीछे के
दरवाजे से अन्दर बुलाया है
दरवान बोला ये सब कलयुग कि व्यवस्था है
आप ठहरे त्रेतायुग के प्राणी
आप के लिए तो ये सब झमेला है
कुम्भकर्ण सोचने लगा
यार काफी हद तक तो बात
इस दरवान ने समझा दी
और बिना दाम के प्रभु जी से
मुलाकात होगी नही इससे अच्छा यही है
कि बापिस चला जाये
जो हो रहा हे होने दो
बैसे भी मेरा यहाँ क्या काम है
यहाँ तो भ्राताश्री से भी बड़े बड़े नाम हैं

Friday, September 17, 2010

तू यहाँ खामखा सेंटीमेंटल होता हे


जैसे ही हमने ऑरकुट पर विजिट किया
अपनी स्क्रैप बुक में शानदार स्क्रैप
देखकर , भेजने वाले को दिल से सराहा
और सोचा यार ये कितना प्रेम करता हे हमसे
यूँ लिखने कि आदत के अनुसार सोचा
इसको भी कुछ अच्छा सा लिखा जाये
जो कि इसको हमारा प्रेम दर्शाए
हम सोचते रहे, १,२ दिन,
फिर एक सुन्दर सा शेर उसको
स्क्रैप किया, उसने तुंरत ही
उसका रिप्लाई किया
हमने सोचा यार ये तो दीवाना हे अपना
टाइम ही नही लगाता, हम फिर से रिप्लाई
करने के बारे में सोचने लगे
फिर एक दिन यूँ ही सोचते सोचते
हमारी निगाह ऑरकुट कि
टॉप स्टेटस लाइन पर पड़ी
लिखा था "try the new orkut"
हमसे जैसे ही क्लिक किया
स्क्रीन चेंज हो गया,
नए नए ओप्सन आ गए
फिर हम अपनी स्क्द्रप बुक
में गए, तो देखा जो स्क्रैप हमें
आ रहे थे, वो तो उनकी लिस्ट के
सभी फ्रिएंड्स को जा रहे थे
हमारा सर चकराया,
हमें काफी देर से होश आया
मेने कह यार भेजने वाले को तो
पता ही नही होगा कि हम कौन हे
वो तो सेंड टू आल फ्रेंड करके मौन हे
इधर हम उनके लिए नयी नयी कविता रच रहे हैं
उधर वो एक ही क्लिक में सबको खुश कर रहे हैं
फिर सोचा यार ये तो नेट कि दुनिया हे
जहा सभी कुछ तो वर्चुअल होता हे
तू यहाँ खामखा सेंटीमेंटल होता हे

Tuesday, September 14, 2010

रामआसरे...................


आज मुह लटकाए हुए
चुपचाप बैठा था
मेने पूछा क्या हुआ रामआसरे
कुछ नही बोला
बोला घर जा रहा हूँ
तो मेने कहा, ये तो ख़ुशी कि बात हे
बोला मै नहीं जा रहा,
मालिक भेज रहे हैं
टिकेट भी करबा दिया हे अडवांस में
मेने कहा ये तो और भी ख़ुशी कि बात हे
बरना तो कई बार टिकेट होता ही नही
धक्के खाकर जाना पड़ता हे
बोला वो बात नही,
अभी तो हम आये रहे हैं
पिछले महीने गाँव से
जब भी २० दिनों कि तन-खा
कटवाये रहे, तब माँ बीमार रही
उ कि दवा-दारू में पैसा लगाये रहे
अब फिर से जाना पड़ेगा
फिर १५-२० दिन कि तनखा कटेगी
क्युकी कॉमन वेअल्थ गेम हुई रह न
ऊ कि बजहा से ऑफिस/फैक्ट्री बंद रहेंगे
मालिक कहे रहे, जब ऑफिस बंद तो
तुम सबका छुट्टी,
ऐसे कैसे काम चलेगा,
उसी चिंता में घुले जा रहे हैं'
मैं भी सोच मै पड़ गया
रामआसरे क्या कहना चाह रहा हे
आखिर देश कि इज्जत का सवाल जो हे
हमें इतनी क़ुरबानी तो ही देनी होगी
सिर्फ १५-२० दिन कि ही तो बात हे
देश कि इज्जत बचाना जरुरी हे

Monday, September 13, 2010

चकल्लस....................

आज कल सब कुछ फिक्स हे

बैसे ये फिक्सिंग शब्द क्रिकेट से शुरू हुआ

कॉमनवेअल्थ गेम से होता हुआ

इस साहित्य में भी आ पहुंचा

जहाँ तक प्रोफ़ेसिओनलिस्म कि बात हे

वहा तक तो ठीक हे,

लेकिन जहा सिर्फ लोग शौक पूरा

करते हैं, वह भी इसने पैर पासार लिए हैं

अब आप सोच रहे होंगे कि

ये यानि कि मैं, क्या ऊल-जलूल

बाते लिखता रहता हूँ

लेकिन करे क्या भैये,

रह ही नही पते

जब भी मामला इधर से

उधर होते हुए देखते हैं,

नही कहेंगे तो पेट दर्दियायेगा

और जब पेट में हलचल हो

तो शांत कैसे बैठ सकते हैं

लिखना तो पड़ेगा

तब न जाकर शांति मिलेगी

तो महानुभावों, मेरे कद्रदानो

अब हम सीधी मुद्दे कि बात पर आते हैं

और आपको वाकये से रूबरू करबाते हैं

हुआ यूँ कि एक महोदय

यूँ ही , खामखा नाराज हो गए

हो गए तो हो गए,बिना बात के

कौन पूछता हे, हो जाओ!

किसी ने ध्यान ही नही दिया

अब मिया फंस गए चक्कर में

क्या करे क्या न करे

कोई पूछता ही नही

फिर अपने किसी अजीज से कहा

यार तुम ही कुछ करो

किसी तरह से हमारा नाम उछालो

ऐसा कैसे चलेगा, कुछ करो

अब एक ढूढो हज़ार मिलते हैं

तो जनाब का काम चल गया

कई दिनों से सुप्त पड़ा नाम उछल गया

होने लगे तर्क-वितर्क

और वो मिया, उन्हें यही चाहिए था

दूर से तमाशा देख मुस्कराते रहे

हमें तो इसमें भी फिक्सिंग कि बू आ रही हे

मामला स्कोटलैंड- यार्ड पुलिस को सौंपना पड़ेगा

और फिक्सिंग के सारे आरोपिओं को

जनता के सामने लाना होगा

Tuesday, September 7, 2010

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे

ये तो ईंट-गारे से चिना मकां भर हे



ढुंढता हूँ वो रिश्ते जो खो गए हें कही

कुछ इधर तो कुछ दीवारों के उधर हैं

...लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..



घुट घुट के जी रहा हूँ मैं इस कदर

यहाँ तो सांस लेना भी दूभर हे

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे........



बाहर निकलता हूँ तो सुकून पाता हूँ

फिर ढूंढता हूँ मेरा आशियाँ किधर हे

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे........



लोग मकां में रहने के आदि हैं "गौरव"

कहने को घर, तो बस दिखावा भर हें

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे...


ये तो ईंट-गारे से चिना मकां भर हे!

Saturday, September 4, 2010

दोस्ती कि खातिर.....(HASYE)

हाँ आप भी सोच रहे होंगे ऐसा भी कही होता हे

लेकिन ये सच हे, जो में आपके सामने

रख रहा हूँ!



आखिर हमने भी आशिकी

करने का जिम्मा उठा ही लिया

दोस्त के कहने पर उनसे

टांका भिड़ाने का मन बना ही लिया,

बात उस समय कि हे जब हम जवानी कि

प्री नर्सरी क्लास में थे

दोस्त हमसे इस मामले

में काफी एक्सपेरिएंस हो चूका था

क्यूंकि वो आशिकी में

हमसे ३ महीने सिनिअर था,

हमने दोस्त से पूछा

शुरुआत कैसे करनी है

बोला कुछ नही करना हे

बस जब भी वो दिखे

उसकी तरफ देख जबरदस्ती मुस्कराना हे

धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना हे

हम बोले बस इत्ती सी बात

अगले दिन हम उस रास्ते पर खड़े हो गए

जहा वो टिउसन पढने आती थी

अपनी दोस्त के साथ,

जैसे ही वो हमें आती नजर आयीं

हमने अपनी कमीज कि आस्तीन चढ़ाई ,

जैसे ही वो हमारी आँखों के रेंज में आई

हमें बहुत ही भावुक मुस्कराहट आई

हमें तो इतना पता था कि हँसना हे

अब वो देखे या कोई और ..

उन्होंने तो देखा नही उनकी दोस्त ने

हमें घूर कर देखा, हमने कहा यार

ये तो क्रोस कनेक्सन हो गया

बैठे बिठाये लफड़ा हो गया

हमें मुस्कराते देख उनकी दोस्त

बही पर रुक गयी,

और बोली कोई प्रोब्लम हे क्या

में कहा नही जी,

बोली फिर कोई बीमारी हे

या हँसना तुम्हारी लाचारी हे

हमने हिम्मत बटोरी, और कहा

ऐसी कोई बात नही हे,

हम आपको देख कर नही मुस्कराए थे

तो फिर क्या हमारी सहेली को देखकर

हमें सोचा अब क्या काहे यार

ये कहाँ फंस गए,

दोस्त दूर खड़ा सब देख हंस रहा था

वो सोच रहा था कि मामला पट रहा था

हमने उनकी दोस्त को कहा, गलती हो गयी

अब हम जिन्दगी में कभी भी लड़की को

देखकर नही मुस्करायेंगे,

हमें मुआफी मागता देख वो होले से

मुस्कराई, बोली ठीक हे

आगे से ध्यान रखना

इस तरह खुले-आम आशिकी मत करना

अपनी नही तो हमारी इज्जत का

ख़याल रखना

गर बात करनी ही है तो सड़क पर नही

किसी मंदिर या शिवाले पर मिलना

उनके इतना कहते ही हमारी जान में जान आई

हमने इश्वर को धन्येबाद कर, अपनी आशिकी कि

अगली क्लास उसी के दरबार में लगाई!