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Saturday, November 13, 2010

जिन्दगी और मौत का अंतर!.............


जिन्दगी !
एक उलझा हुआ प्रश्न;
मौत!
एक शाश्वत सत्ये!
इंसान !
जिन्दगी से मौत
तक का सफ़र
पूरा करने में लगा रहता हे,
बाबजूद इसके, कि उसको पता हे
मेरा अंत वही हे
फिर भी, जुटा हुआ हे,
बहुत कुछ पाने कि लालसा
समेटने कि चाह!
साम-दाम, दंड-भेद
जानता हे कि गलत हे
फिर भी सही ठहराता हे
अपने आप को धोखा
देते हुए,
आखिर में मौत को
गले लगाता हे!
ये चक्र चलता रहता हे,
कभी न ख़त्म होने वाला
सिलसिला,
कौन हारा, कौन जीता!
जिन्दगी बेरहम, बेनतीजा!
जन्म जन्मान्तर,युग युगांतर,
यही है जिन्दगी और मौत का
अंतर!

11 comments:

रश्मि प्रभा... said...

is rachna me aapki kalam ka gambheer roop mila ........

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत दार्शनिक अंदाज़ में एक सत्य को लिखा है ...

प्रवीण पाण्डेय said...

चिन्तन की गहरी पर्तों में जीवन और मृत्यु एक जैसे प्रतीत होते हैं।

उपेन्द्र नाथ said...

jindagi ki sachchhi haqikat bayan ki hai aap ne.... very good creation

दिगम्बर नासवा said...

दार्शनिक अंदाज़ में इस अंतर को दर्शया है अपने ... बहुत खूब .

ashish said...

वाह आपका ये दार्शनिक अंदाज भाया . उत्कृष्ट अभिव्यक्ति .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

Khare A said...

aap sabhi ka shukriya

sangeeta di abhar meri is rachna ko charcha yogye samjhne ke liye

वीना श्रीवास्तव said...

कौन हारा, कौन जीता!
जिन्दगी बेरहम, बेनतीजा!
जन्म जन्मान्तर,युग युगांतर,
यही है जिन्दगी और मौत का
अंतर!

बहुत अच्छा लिखा है। एक गलती खटक रही है जहां भी आपने 'हे'... लिखा है वहां.. 'है'....होना चाहिए

Khare A said...

shukriya vina ji, aage se dhyan rakhunga

James said...

वाह आपका ये दार्शनिक अंदाज भाया . उत्कृष्ट अभिव्यक्ति .