इक कदम तुम और इक कदम हम बढ़ाये
आओ अब हम कुछ इस तरह करीब आऐं
न हो फासला अब इक सांस का भी बाकि
मुद्दतों से हमने चाहतों के दीप हैं जलाये
आओ अब हम कुछ इस तरह करीब आऐं
न हो फासला अब इक सांस का भी बाकि
मुद्दतों से हमने चाहतों के दीप हैं जलाये
लिखने का शौक काफी पुराना हे, अपने स्कूलिंग के वक़्त से लिखने का चस्का पड़ गया था, फिर छूट गया, ४ साल पहले ऑरकुट से जुड़ना हुआ, इसके माध्यम से विभिन्न कम्युनिटी से जुड़ना हुआ, फिर से एक बार कीड़ा कुलबुलाया, सो लिखना फिर शुरू कर दिया, वाह-वाही मिलने लगी, तो हौसला बढ़ने लगा, लोगो की देखा देखि, ब्लॉग भी बना लिया, आप लोगो से अपनी सोच बाँट सकूँ, बस इसी उद्देश्य सा यहाँ हूँ , आपका प्यार ही मेरे लेखन की लाइफ लाइन हे. ...शुक्रिया
4 comments:
वाह वाह ..क्या बात है ..
चाहतें बहुत समय बाद ही स्थायीरूप में जल पाती हैं।
वाह अलोक जी, क्या बात है सुंदर सोंच....बहुत ही प्यारी नज़्म .
वाह वाह वाह वाह वाह वाह
..........क्या बात है ..
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