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Saturday, December 25, 2010

वर्चुअल मुलाकातें ........


मुझसे नाराज हे जिन्दगी,
हैरान हूँ मैं!
दिन , महीने , साल
यूँ गुजर गए,
पता ही नही चला!
रोज वर्चुअल मुलाकातें
ढेर सारी बातें,
कुछ काम कि, कुछ सिर्फ नाम कि
एक अंडरस्टेंडिंग सी हो गयी
और हम फोर्मल से हो गए
कब आप से,मैं और तुम हो गए
पता ही नही चला!
फिर एक दिन उन्हें एहसास हुआ
कि कुछ ज्यादा हो रहा हे,
वो बिफर गए, अचानक से
हमें आशचर्ये हुआ,
बोले अब बस, ज्यादा नही!
इतना ही ठीक हे,
हमने कहा न हम ज्यादा थे कभी
न कम थे,
बोले चुप रहो, जितना कहा
उतना समझो!
हमने कहा, हमें कुछ पल्ले नही पड़ा
आप कहना क्या कहते हो,
बोले तुम बाल कि खाल बहुत
निकालते हो;
हमने सोचा , यार ये ट्रैक पर
चलती हुई गड्डी, अचानक से
डी-रेल कैसे हो गयी !
हमें पूछा "कोई मिल गया"?
गुस्से से बिफरी वो,
फिर सोचा, यार ये
सुन्दर सपना टूट क्यूँ गया!
फिर हम बस यही गुनगुनाये......!
"हमने तो कोई कमी न कि थी
फिर भी न जाने क्यूँ उनको हमारा साथ, अखरा"

6 comments:

रश्मि प्रभा... said...

"हमने तो कोई कमी न कि थी
फिर भी न जाने क्यूँ उनको हमारा साथ, अखरा"
bahut hi badhiyaa

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अपनी जगह हम सोचते हैं कि हम सही हैं ..पर दूसरा क्या सोचता है पता नहीं ...

मन कि भावनाओं को सटीक शब्द दिए हैं .

उपेन्द्र नाथ said...

सुन्दर सपना टूट क्यूँ गया!
फिर हम बस यही गुनगुनाये......!
"हमने तो कोई कमी न कि थी
फिर भी न जाने क्यूँ उनको हमारा साथ, अखरा"
alok ji bahoot hi gahre jajbat hai......... sunder abhivyakti.

प्रवीण पाण्डेय said...

हमारे बनाये सपनों के महल दूसरों को रास नहीं आ पायें, तो भी चलते रहना होगा।

Creative Manch said...

रचना के माध्यम से भावों की गहराई झलकती है
बहुत सुन्दर पोस्ट है

आभार

संजय भास्‍कर said...

बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ.