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Friday, April 15, 2011

अजीब शै है.........


वो अपनी आँखों पर पर्दा डालकर
उनके पीछे कि हकीकत को
महज एक पर्दा बता रहे हैं!
पता नही वो किस मुगालते मैं
रहकर अपना मन बहला रहे हैं!
वो गाते हैं तो तराना बतलाते हैं
और हम गाएं तो ताना बताते हैं
उनकी हिस्टरी, कुछ मिस्ट्री सी है
बाते यहाँ कि बहां कि, सारे जहाँ कि
वो अक्सर ही किया करते हैं
पर हकीकत में वो जिन्दगी को
ऐवें ही जिया करते हैं
नाम बड़े और दर्शन छोटे
अल्फाज सुन्दर पर भाव हैं खोटे
मैं अक्सर ही सोचता हूँ कि
आज कल के तथा -कथित बाबाओं
कि कहानी भी कुछ ऐसे ही है
जिस स्टेज पर वो प्रवचन करते हैं
उसके पीछे भी एक पर्दा होता हे
लेकिन वो झीना नही होता हे
वही पर्दा हकीकत में पर्दा होता हे
जिसके आगे सत्संग और
पीछे रासरंग होता हे

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

पर्दा अन्दर और बाहर में भेद करने का माध्यम है। जोगी के लिये क्या परदा।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

'जिसके आगे सत्संग और

पीछे रासरंग होता है '

******************

हकीकत बयान करती अच्छी कविता

संजय भास्‍कर said...

हर बार की तरह शानदार प्रस्तुति

Satish Saxena said...

:-)
बहुत खूब, हार्दिक शुभकामनायें आपको !!

Khare A said...

aap sabhi ke sneh ke liye dil se abhaar.

Markand Dave said...

बहुत बढ़िया।

शुक्रिया ।

मार्कण्ड दवे।

जयकृष्ण राय तुषार said...

वो अपनी आँखों पर पर्दा डालकर
उनके पीछे कि हकीकत को
महज एक पर्दा बता रहे हैं!
पता नही वो किस मुगालते मैं
रहकर अपना मन बहला रहे हैं!
वो गाते हैं तो तराना बतलाते हैं
और हम गाएं तो ताना बताते हैं
भाई खरे जी सुंदर कविता और ब्लॉग पर आने के लिए बधाई और शुभकामनाएं |

Khare A said...

shukriya aap sabhi bhadrjano ka