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Monday, May 30, 2011

पल पल बदलते ये चेहरे..............


राग द्वेष रंग भेष
पता नही मैं हूँ कौन
मैं हूँ भी कि नही
क्या बाकई
मेरा कोई अस्तित्व है,
मैं भ्रमित हूँ आज भी
जितना कि कल था,
लेकिन दिशा ज्ञान
आज भी बाँट रहा हूँ
और उसी में अपनी
दिशा भी खोज रहा हूँ,
अजीब सी मारममार है
गजब की रेलमपेल है
मैं इसी भीड़ का हिस्सा
होते हुए भी
अपने को अलग दिखाना
चाहता हूँ!
लेकिन क्यूँ , किसलिए
काश की मुझे
ये सब पता होता,
फिर मैं क्यूँ
इस तरह भटकता
फिर क्यूँ मैं अपना
रंग पल पल बदलता!

Friday, May 27, 2011

फिर क्यूँ न ये जमाना .........




काश कि तू अपनी कविताओं कि तरह होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता,
बात चाँद कि और आसमान कि करते हो
जमीन पर तो तुम कीचड़ मैं फिसलते हो
थोडा ही सही तुझमे, कुछ तो असर उनका होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता,
झूठी वाह-वाही से क्यूँ गद गद होता है प्यारे
मजबूरिओं ने तुझको शमा-ए-महफ़िल बनाया होगा
रुख से तूने अगर नकाब हटाया होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता|



Thursday, May 19, 2011

तुझको भुलाया ही कब था ...............



तुझको भुलाया ही कब था जो याद करते
तुझसे ख्यालों में अक्सर हम बात करते,
ये बात और है कि तुझे हमसे क्या हे लेना-देना
मगर हम जब भी बात करते, तेरी ही बात करते,
यूँ और भी हैं इस ज़माने में, चाहने वाले मेरे
मगर तेरी चाहत का जिक्र हम अक्सर ही किया करते,
लोग कहते हैं कि इश्क नही हे आसान ये जान लीजिये
हम तो मुश्किलों में भी इश्क कि ही बात किया करते,
जब दिल लगा ही लिया तो अंजाम कि परवाह क्या करनी
लोग तो यूँ भी हमें, अक्सर ही बदनाम किया करते,
परवाह ज़माने कि करते , तो उन पाक मुहब्बतों का क्या होता
फिर क्यूँ लोग लैला-मजनू और शिरी-फरहाद को याद किया करते!
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Tuesday, May 10, 2011

क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!






**एक बिना छपे राइटर कि व्यथा...
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!

जिसे देखो यहाँ छप रहा हे
जिसे देखो वहां छप रहा हे
एक हम ही हैं जो नही छप रहे !

लेकिन भला हो इस इन्टरनेट का
कि जिसने हमें सेल्फ मोड में
छपने का अधिकार दिया है !
बरना हम बिना छपे ही रह जाते
फिर आप हमें कैसे पढ़/जान पाते!

कई बार सोचता हूँ कि हम साला
एक नीम-हकीम कि तरह ही तो है
कितना भी बढ़िया दवाई दे दो
लेकिन बिना डिग्री सब बेकार हे
क्यूंकि छपने के बाद मिलती है
डिग्री , तब न डॉ बन पाते!

इलाज तो हम भी बहुत करते हैं
कइओं को हम भी ठीक करते हैं
लेकिन फिर भी नीम-हकीम ही कहलाते हैं
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!
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