http://www.clocklink.com/world_clock.php

Friday, May 27, 2011

फिर क्यूँ न ये जमाना .........




काश कि तू अपनी कविताओं कि तरह होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता,
बात चाँद कि और आसमान कि करते हो
जमीन पर तो तुम कीचड़ मैं फिसलते हो
थोडा ही सही तुझमे, कुछ तो असर उनका होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता,
झूठी वाह-वाही से क्यूँ गद गद होता है प्यारे
मजबूरिओं ने तुझको शमा-ए-महफ़िल बनाया होगा
रुख से तूने अगर नकाब हटाया होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता|



5 comments:

kshama said...

झूठी वाह-वाही से क्यूँ गद गद होता है प्यारे
मजबूरिओं ने तुझको शमा-ए-महफ़िल बनाया होगा
रुख से तूने अगर नकाब हटाया होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता|
Kya baat hai!

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

shikha varshney said...

सही है...

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन, सभी दीवाने हैं।

Vivek Jain said...

बहुत सुंदर कविता,बेहतरीन अभिव्‍यक्ति
आपको बधाई
- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com