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Saturday, February 25, 2012

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ,
बाकी के तीन स्तम्भ कौन
ये  जानने कि मैने कभी भी
नही कि झूठी  कोशिश भी
पता है क्यूँ. क्यूंकि जब से
होश संभाला है, इस चौथे खम्बे
के माध्यम से बाकी के तीनो
खम्बो का हाल सच्चा-झूठा
जब जब बयां किया जाता
इस चौथे खम्बे कि लडखडाती
आवाज, मुझे स्तब्ध कर जाती,
और मैं सोचने लगता कि ये
खम्बा भी दीमक लगा हुआ है
बाकी के तीनो खम्बे के तरहा,
लेकिन गिरने का नाम ये नही लेता
जड़े जमाये हुए खड़ा है उस खोखले
दीमक लगे हुए पेड़ कि भांति
जिसका कि कोई  अस्तित्व
नही होता, सिवाए इसके कि
वो एक खोखला पेड़ है.
पता नही कव गिर जाये
या काट दिया  जाये
हमेशा कि तरहा,
फिर बही कहानी
जिसका कोई अंत नही !
लेकिन सुनाई बार बार
जाती है.. !
















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2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

kharee kharee

प्रवीण पाण्डेय said...

यही स्तम्भ बाकियों को भी हल्का करने में लगा है।