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मैंने पहले भी कहा था जब अन्ना
हजारे और बाबा रामदेव अनशन कर रहे थे भिराश्ताचार के खिलाफ, जैसा कि
एक्सपर्ट लोग कहते हैं कि भिराश्ताचार मिटना या मिटाना नेक्स्ट तो
इम्पोसिबिल टास्क है! शरद यादव जैसे नेता भी पार्लियामेंट में
चिल्ला-चिल्ला कर यही बोलते रहे कि अगर जनलोक पल बिल पास हुआ तो फिर सिस्टम
काम कैसे करेगा, फिर सिर्फ शिकायत ही शिकायत और मुक़दमे दर्ज होंगे! और भी
कई लोग इस बीमारी को एक्सेप्ट करते रहे हैं,करते हैं! कि इसका मिटना
मुश्किल है!
तब मैंने अपनी मंद बुध्ही से यही कहा कि भिराश्ताचार
को कानूनी दर्ज़ा दे दिया जाना चाहिए! हर काम के ओफ्फिसिअल रेट फिक्स्ड
किये जाने चाहिए! बैसे तो रेट अभी भी फिक्स्ड हैं! लेकिन अनोफिसिअल हैं!
तभी लोग शोर मचाते हैं कि भिराश्ताचार हो रहा है! अगर हम ये कानून पारित
कर दे तो काफी हद्द तक या काहे कि पूरी तरह इस समस्या से निजात मिल जाएगी!
और इस तरीके से इकठ्ठा किया गया पैसा कुछ सरकारी खजाने में और बाकि
सम्बंधित विभाग के अधिकारिओं और करमचरिओं में उनकी पोसिशन कि हिसाब से बाँट
दिया जाना चाहिए!
इसी प्रकार जो आये दिन घोटाले होते रहते हैं, उनको
भी इसी फार्मूले से क्रियांबित किया जा सकता है! को घोटाले का एक हिस्सा
सरकारी खजाने में! बाकि सम्बंधित मंत्रालय के मंत्री से लेकर संत्री के
पास!
अब इसका फ़ायदा, सारे काम धड़ल्ले से होंगे, फटाफट होंगे!
कोई काम में देरी नही होगी! जनता खुश, अधिकारी खुश, मंत्री खुश और संत्री
भी खुश! और जो सबसे बड़ा फ़ायदा होगा कि सरकारी खज़ाना जो आये दिन ख़ाली
होता रहता है, कभी नही होगा! क्यूंकि इन सब मामलों से जो रकम जुटेगी उसका
अफिसिअल रिकॉर्ड होगा! फिर सरकार को न तो कोई टैक्स लगाने या बढ़ाने कि
जरुरत होगी, पेट्रोल/एलपीजी /डीजल आदि के रेट बढ़ाने कि भी अब्श्यकता नही
होगी! इन केस कभी जरुरत पड़ भी गयी तो, मिचुअल अंडरस्टेंडिंग से एक बड़ा
घोटाले को अंजाम दो और खजाने कि भरपाई करो! जब सब कुछ ट्रांसपेरेंट हो
जायेगा तो किसी को भी कोई प्रोब्लम नही होगी! न आन्दोलन/ न कोई
पक्ष/बिपक्ष सब राजी तो क्या करेगा काजी! तंग आ चूका हूँ मैं और ये देश!
सालों से सोच रहे हैं कि कैसे निपटेंगे! देखा जहाँ चाह बहां राह!
(...इक ख्याल अपना सा ... "आलोक" )
कल पत्नी जी लगभग चिल्लाते हुए, ए जी सुनो आज तो कम से कम मंडी जाकर
सब्जी ले आओ! पिछले एक हफ्ते से पानी में दाल खा खा कर बोर हो गए हैं! हमने
श! श! श! करते हुए पत्नी से कहा चुप करो भाग्यवान, पडोसी
सुनेंगे तो कहेंगे कि
इनके यहाँ आजकल दाल बहुत बन रही है! बहतु पैसा हे इनके पास, पत्नी जी तुनक कर
बोली बड़े आये अपनी इज्जत बनाने वाले, पिछले एक हफ़त से तो सब्जी मंडी गए नही,
पडोसिओं को सब पता है! आजकल अच्छों अच्छो कि औकात सब्जी मंडी में दिखाई पड़
रही है! हमने कहा ठीक है भाग्यवान ऐसा करते हैं कि आज गुरुवार है पहले साईं मंदिर
जाकर बाबा का आशीर्वाद ले लेते हैं, उसके बाद मंडी में घुसने कि हिम्मत करेंगे! तब तक
रात भी हो जाएगी और तुमको पता ही हे कि देर रात में सब्जी भी सस्ती मिल जाती है!
अपने प्लान के मुताबिक हम सब्जी मंडी पहुंचे!
जैसे ही हमारी नज़र लौकी(घिया) पर पड़ी, वो चिल्लाई; बेशर्म जब भी आता है मुझे ही घूर
घूर कर देखता रहता है, पहले तो लाखाता भी नही था, आजकल हद्द से ज्यादा नजदीकियां
बढ़ाने में लगा हुआ है! रोज मेरे चिकने बदन पर तेरी भेड़िये जैसी निगाहे गडी रहती हैं
हमने एक शरीफ इंसान कि तरह उसके ताने सुने और आगे बढ़ लिए!
जैसे ही हमारी नजर आलू पर पड़ी, वो बड़ी ही धूर्तता से मुस्कराया,
मंडी में जगह जगह ऐसे पड़ा था जैसे कोई मोहल्ले का टटपूंजिया गुंडा
बीच सड़क पर अपनी बाइक लेकर खड़ा हो, और आने जाने वाले उसको
सलाम ठोंकते हुए आगे बढ़ते हैं! आलू के बगल में प्याज छिनाल मन ही मन
मुस्करा रही थी, जैसे कि उसको सारी सच्चाई मालूम हो! अगली दूकान पर
टिंडे बादशाह बड़ी शान से हुक्का गुड़ गुडा रहे थे, और हमें ऐसे नजरअंदाज कर रहे थे
कि जैसे पहचानते ही नही, हमने फिर भी हिम्मत करके उनके हालचाल लेने कि कोशिश
कि! पहले तो उन्होंने हमें इग्नोर किया, फिर धीरे से बोला बाबू जी अगर मेरे हाल-चाल
लेने कि कोशिश करोगे तो आपकी हाल और चाल दोनों बिगड़ जायेंगे, इसलिए अच्छा
हे कि चुपचाप आगे बढ़ लो!
अगली दूकान पर बैगन अपने शरीर पर तेल मालिश कर चिकना और ताज़ा दिखने कि
कोशिश कर रहा था! जैसे ही उसकी नजर हम पर पढ़ी बोला बाबू जी आज तो कई दिन बाद मंडी
में नज़र आये हो! क्या बात है आजकल आपके दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं! हमने उसको चुप रहने का
इशारा किया और हालचाल लिए, कहने लगा कि पहले तो लोगबाग मुझे मज़बूरी में ले लेते थे,
लेकिन आजकल मेने उनको मजबूर कर दिया है!
कुल मिलाकर हर सब्जी हमें चिढ़ा रही थी, या कहे कि हमें हमारी औकात दिखा रही थी!
एक चक्कर मारकर हम फिर से लौकी के पास आकर खड़े हो गए, और इसके पहले कि
वो हमें फिर से ताने मारने शुरू करती, हमने झट से उसे उठाकर अपने थैले में बंद कर लिया!
(..... इक ख़याल अपना सा... आलोक)