मुझे रोटी, कपडा और मकान
मत दो सभी एक साथ
पहले मुझे रोटी तो दो ,
कपडा अगर फटे ना , मकान अगर बीके ना,
तो जिन्दगी कट जाती है ,
मगर रोटी के बिना,
सुबह से शाम नहीं कटती ,
रोटी तो सबसे पहले चाहिए,
जब पेट मैं कुछ होगा,
तब मैं भी दूसरों की तरहा, जिनके पेट भरे हुए हैं ,
कोई अभिलाषा कर पाउँगा ,
और अपने कुछ आधे-अधूरे , टूटे-फूटे,
और धुंधले पड़ चुके ,
सपनो को शायद संजो पाउँगा,
तो मेरी अभिलाषा तो,
दो वक़्त की रोटी पर ठहर रही है,
जिसकी आस मैं आज भी हिन्दुस्तान की ,
35 करोर जन्शंख्या , आज़ादी के 62 साल बाद भी ,
इसी अभिलाषा के साथ जी रही है
धन्येबाद
Wednesday, September 16, 2009
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1 comment:
बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण और प्यारी रचना लिखा है आपने!ahut Barhia...aapka swagat hai...
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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