शांति का नोबेल पुरूस्कार
वो भाई जी की भूमिका में पूरी दुनिया को पेल रहे हैं
और शांति के सारे नोबेल पुरूस्कार अपनी और ठेल रहे हैं,
एक हम हैं जो बड़े भाई की भूमिका निभा रहे हैं
और आज़ादी के इतने बरस बाद भी छोटे भाई से मार खा रहे हैं,
वो मात्र छ महीने में ही डंडे के बल पर
शांति के अग्रदूत बन कर पुरूस्कार उड़ा ले गए
और हम ६२ बरस से शांति के साथ बैठ
हाथ मलते रह गए,
नोबेल पुरूस्कार विश्व का सबसे प्रतिष्ठित पुरूस्कार माना जाता है
तभी कुछ चुने हुए व्यक्तिओं को उनके अद्भुत कार्यों के लिए
उनको इस पुरूस्कार से नवाजा जाता है
हमें तो लगता है की ओबामा ने पुरूस्कार लेकर
नोबेल कमेटी पर एहसान किया है
तभी तो उन्होंने नोबेल समाहरोह के सभी कर्येक्रमो का
बड़ी शिद्दत से बहिष्कार किया है
अरे नोबेल कमेटी वालों, आपने ओबामा को
नोबेल पुरूस्कार के लिए चुनकर
ओबामा की इज्जत है बढाई
और पूरी दुनिया के सामने
नोबेल पुरूस्कार की इज्जत है घटाई,
अरे पुरूस्कार से सिर्फ इसके लायक
व्यक्तिओं को ही नवाजो
और किसी दवाब में न आकर ये
प्रितिष्ठित पुरूस्कार हर किसी में न बाटों.
Saturday, December 26, 2009
नया साल
२ क्लास में पड़ने वाले मुन्ना ने
अपने बापू से पूछा,
बापू ये नया साल क्या होता है
बापू ने उसको गौर से देखा
फिर बोले , बेटा ये सब
पैसो वाले के लिए होता है
बापू हमरे पास पैसे कब होंगे,
जब तुम पढ़ लिख कर
नौकरी पर जाने लगोगे
फिर तो में खूब पढूंगा बापू
लेकिन एक बात है बापू
माँ कहती है की तेरे बापू
बहुत पड़े लिखे हैं
फिर बापू आप नौकरी
क्यूँ नही करते,
आप तो सब्जी की दूकान लगाते हो
बापू ने मुन्ना को डांट दिया,
और कहा, चुप रह,
बहुत बोलने लगा है...
पढाई पे ध्यान दे
जा जाके तू अभी पढ़,
इधर उधर दिमाग न लगा
शायद तेरी किस्मत
मेरी किस्मत से अच्छी हो
फिर हम भी नया साल मनाएंगे
अपने बापू से पूछा,
बापू ये नया साल क्या होता है
बापू ने उसको गौर से देखा
फिर बोले , बेटा ये सब
पैसो वाले के लिए होता है
बापू हमरे पास पैसे कब होंगे,
जब तुम पढ़ लिख कर
नौकरी पर जाने लगोगे
फिर तो में खूब पढूंगा बापू
लेकिन एक बात है बापू
माँ कहती है की तेरे बापू
बहुत पड़े लिखे हैं
फिर बापू आप नौकरी
क्यूँ नही करते,
आप तो सब्जी की दूकान लगाते हो
बापू ने मुन्ना को डांट दिया,
और कहा, चुप रह,
बहुत बोलने लगा है...
पढाई पे ध्यान दे
जा जाके तू अभी पढ़,
इधर उधर दिमाग न लगा
शायद तेरी किस्मत
मेरी किस्मत से अच्छी हो
फिर हम भी नया साल मनाएंगे
Monday, December 7, 2009
अनजानी राह
जाना बूझकर हम उस रह पर चल पड़े थे
जिस पर कांटे ही कांटे बिखरे पड़े थे,
हमें यकीन था की कभी तो बहार आएगी,
यही सोचकर हम उनके साथ हो लिए थे,
लेकिन यही धोखा था हमारे दिल का
की जिन्हें हम कांटे समझे, वो खंजर निकले,
वो चुभते रहे, जख्म बनते रहे,
हाल ये हुआ कि दर्द जिस्म से नही
दिल से उठा,
यहाँ तक कि आत्मा भी चीत्कार कर उठी
और कहने लगी, किस रह पर ले आया दीवाने
बापिस चल, अभी भी वक़्त हे तेरे पास,
हम पलट चले, ढेर सारे जख्म लिए
लेकिन इस बार दर्द कही से भी नही उठा
क्यूंकि वो पहले इस कद्र उठ चूका था
शायद वो खुद ही ख़त्म हो चूका था
जिस पर कांटे ही कांटे बिखरे पड़े थे,
हमें यकीन था की कभी तो बहार आएगी,
यही सोचकर हम उनके साथ हो लिए थे,
लेकिन यही धोखा था हमारे दिल का
की जिन्हें हम कांटे समझे, वो खंजर निकले,
वो चुभते रहे, जख्म बनते रहे,
हाल ये हुआ कि दर्द जिस्म से नही
दिल से उठा,
यहाँ तक कि आत्मा भी चीत्कार कर उठी
और कहने लगी, किस रह पर ले आया दीवाने
बापिस चल, अभी भी वक़्त हे तेरे पास,
हम पलट चले, ढेर सारे जख्म लिए
लेकिन इस बार दर्द कही से भी नही उठा
क्यूंकि वो पहले इस कद्र उठ चूका था
शायद वो खुद ही ख़त्म हो चूका था
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