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Saturday, February 20, 2010

मेरी तो पूरी ग़ज़ल ही तू है

दर्द भी तू है, दवा भी तू है

सुकूं का हर लम्हा भी तू है


तेरे बिन कोरे हैं सारे सफे मेरे

मेरी जिन्दगी का फलसफा भी तू है


है तू ही मकसद मेरी जिन्दगी का

जिस्म में रूह की जगह बस तू है.


तेरे बिन कैसे जिऊं मेरी जान

मेरी जिन्दगी की सदा भी तू है


तू ही हर लफ्ज मेरी कलम का

मेरी तो पूरी ग़ज़ल ही तू है

4 comments:

रश्मि प्रभा... said...

tabhi to ye gazal itni achhi hai.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत एहसासों से सजाई है ये ग़ज़ल...

श्रद्धा जैन said...

तू ही हर लफ्ज मेरी कलम का

मेरी तो पूरी ग़ज़ल ही तू है

bahut khoobsurat ehsaas
sunder abhivaykti

Khare A said...

shukriy aap sabhi ka