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Monday, August 23, 2010

ये बंधन तो प्यार का बंधन हे........

१- मेरी दीदी



हाँ अब बो नानी भी बन चुकी हे

लेकिन राखी बांधना नही भूली

राखी पर उनका फोन आ ही जाता हे

क्या प्रोग्राम हे , कब आ रहे हो

या हर बार कि तरह इस बार भी.....

राखी पोस्ट कर दूँ....

शादी के बाद ये बंधन इतना कमजोर

क्यूँ हो जाता हे.....

में दुविधा में सोचता ही रह जाता हूँ...



२. पत्नी



ए जी सुनो .......

मोनू इस बार भी नही आ पायेगा

मुझे ही उसको राखी बांधने जाना होगा

मेने दबी सी आवाज में कहा

दीदी का फोन आया था ....

उसने इग्नोर किया , और बोली..

शाम को ऑफिस से जल्दी आ जाना

मोनू के लिए राखी खरीदनी है

मेरी दुविधा काफी हद्द तक

ख़तम हो चुकी हे....



३..अंतर



भाई (मोनू) कि शादी हो चुकी हे...

इस बार मोनू का फोन आया

दीदी आप इस बार राखी पर मत आना

मैं शिवाली को उसके भाई के यहाँ लेकर जाऊंगा

पत्नी बड़बड़ाती है....

ये आज कल कि लडकिया तो

आते ही संबंधों में दरार डाल देती हैं

और मोनू को भी देखो

कितनी जल्दी उसका गुलाम बन बैठा

मेरी दुविधा का कोई अंत नही.....

10 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सटीक ....रिश्ते और परिस्थितियां सोच पर हावी हो जाती हैं ...

VIJAY KUMAR VERMA said...

bahut hee achchha likha hai aapne.. badhai...vastaw me man ko chhoo gayi aapki rachna

sandhyagupta said...

मानवीय रिश्तों के इस चित्रण के द्वारा आपने हमे भी दुविधा में डाल दिया.सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति.बधाई.

Khare A said...

thnx Sangeeta Di

Khare A said...

shukriya Vijay Verma ji

Khare A said...

Shukriya Sandhya Gupta ji

रंजना said...

बहुत बहुत सटीक और करारी चोट की है आपने इस रचना के माध्यम से...

Khare A said...

shukeiya Ranjna ji

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

प्रिय अलोक जी
नमस्कार !
राखी के धागों का बंधन निश्चित रूप से प्यार का बंधन है ।
मेरी बहन भी नानी - दादी बन चुकी है ,लेकिन हम एक ही शहर में रहते हैं , इसलिए कोई परेशानी नहीं आती । …और मेरी ससुराल भी यहीं है ।
बदलती हुई परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठा कर ही हम इस प्यार के बंधन को निभा सकते हैं ।
अच्छी रचना के लिए बधाई !

शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार

Parul kanani said...

sundar abhivyakti!