१- मेरी दीदी
हाँ अब बो नानी भी बन चुकी हे
लेकिन राखी बांधना नही भूली
राखी पर उनका फोन आ ही जाता हे
क्या प्रोग्राम हे , कब आ रहे हो
या हर बार कि तरह इस बार भी.....
राखी पोस्ट कर दूँ....
शादी के बाद ये बंधन इतना कमजोर
क्यूँ हो जाता हे.....
में दुविधा में सोचता ही रह जाता हूँ...
२. पत्नी
ए जी सुनो .......
मोनू इस बार भी नही आ पायेगा
मुझे ही उसको राखी बांधने जाना होगा
मेने दबी सी आवाज में कहा
दीदी का फोन आया था ....
उसने इग्नोर किया , और बोली..
शाम को ऑफिस से जल्दी आ जाना
मोनू के लिए राखी खरीदनी है
मेरी दुविधा काफी हद्द तक
ख़तम हो चुकी हे....
३..अंतर
भाई (मोनू) कि शादी हो चुकी हे...
इस बार मोनू का फोन आया
दीदी आप इस बार राखी पर मत आना
मैं शिवाली को उसके भाई के यहाँ लेकर जाऊंगा
पत्नी बड़बड़ाती है....
ये आज कल कि लडकिया तो
आते ही संबंधों में दरार डाल देती हैं
और मोनू को भी देखो
कितनी जल्दी उसका गुलाम बन बैठा
मेरी दुविधा का कोई अंत नही.....
Monday, August 23, 2010
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10 comments:
बहुत सटीक ....रिश्ते और परिस्थितियां सोच पर हावी हो जाती हैं ...
bahut hee achchha likha hai aapne.. badhai...vastaw me man ko chhoo gayi aapki rachna
मानवीय रिश्तों के इस चित्रण के द्वारा आपने हमे भी दुविधा में डाल दिया.सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति.बधाई.
thnx Sangeeta Di
shukriya Vijay Verma ji
Shukriya Sandhya Gupta ji
बहुत बहुत सटीक और करारी चोट की है आपने इस रचना के माध्यम से...
shukeiya Ranjna ji
प्रिय अलोक जी
नमस्कार !
राखी के धागों का बंधन निश्चित रूप से प्यार का बंधन है ।
मेरी बहन भी नानी - दादी बन चुकी है ,लेकिन हम एक ही शहर में रहते हैं , इसलिए कोई परेशानी नहीं आती । …और मेरी ससुराल भी यहीं है ।
बदलती हुई परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठा कर ही हम इस प्यार के बंधन को निभा सकते हैं ।
अच्छी रचना के लिए बधाई !
शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
sundar abhivyakti!
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