लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे
ये तो ईंट-गारे से चिना मकां भर हे
ढुंढता हूँ वो रिश्ते जो खो गए हें कही
कुछ इधर तो कुछ दीवारों के उधर हैं
...लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..
घुट घुट के जी रहा हूँ मैं इस कदर
यहाँ तो सांस लेना भी दूभर हे
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे........
बाहर निकलता हूँ तो सुकून पाता हूँ
फिर ढूंढता हूँ मेरा आशियाँ किधर हे
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे........
लोग मकां में रहने के आदि हैं "गौरव"
कहने को घर, तो बस दिखावा भर हें
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे...
ये तो ईंट-गारे से चिना मकां भर हे!
Tuesday, September 7, 2010
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10 comments:
लोग तो केवल पता बताते हैं ..आप मकाँ को घर बनाइये ...सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
बहुत खूब
गज़ब के भाव भरे हैं…………सुन्दर भावाव्यक्ति।
ढुंढता हूँ वो रिश्ते जो खो गए हें कही
कुछ इधर तो कुछ दीवारों के उधर हैं
...लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..
..... sab udhar hi ho gaye hain deewaaron ke , ab ghar kahan hai
घुट घुट के जी रहा हूँ मैं इस कदर
यहाँ तो सांस लेना भी दूभर हे
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..
bahoot gahre bhav hai .....
मन की तड़प साफ़ झलकती है शब्दों में
सच है धार तो एहसासों से बनता है ... प्रेम से बनता है ... पत्थर का धर तो सब बना लेते हैं .... बहुत खूब ...
aap sabhi ke prem ka dil se abhaar, yun hi aate rahiye, hausla afjai karte rahiye
सच कहती रचना बहुत अच्छी लगी.
हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, ... देखिए
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