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Tuesday, September 7, 2010

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे

ये तो ईंट-गारे से चिना मकां भर हे



ढुंढता हूँ वो रिश्ते जो खो गए हें कही

कुछ इधर तो कुछ दीवारों के उधर हैं

...लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..



घुट घुट के जी रहा हूँ मैं इस कदर

यहाँ तो सांस लेना भी दूभर हे

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे........



बाहर निकलता हूँ तो सुकून पाता हूँ

फिर ढूंढता हूँ मेरा आशियाँ किधर हे

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे........



लोग मकां में रहने के आदि हैं "गौरव"

कहने को घर, तो बस दिखावा भर हें

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे...


ये तो ईंट-गारे से चिना मकां भर हे!

10 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

लोग तो केवल पता बताते हैं ..आप मकाँ को घर बनाइये ...सुन्दर अभिव्यक्ति

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब

vandana gupta said...

गज़ब के भाव भरे हैं…………सुन्दर भावाव्यक्ति।

रश्मि प्रभा... said...

ढुंढता हूँ वो रिश्ते जो खो गए हें कही

कुछ इधर तो कुछ दीवारों के उधर हैं

...लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..
..... sab udhar hi ho gaye hain deewaaron ke , ab ghar kahan hai

उपेन्द्र नाथ said...

घुट घुट के जी रहा हूँ मैं इस कदर

यहाँ तो सांस लेना भी दूभर हे

लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..


bahoot gahre bhav hai .....

Anju (Anu) Chaudhary said...

मन की तड़प साफ़ झलकती है शब्दों में

दिगम्बर नासवा said...

सच है धार तो एहसासों से बनता है ... प्रेम से बनता है ... पत्थर का धर तो सब बना लेते हैं .... बहुत खूब ...

Khare A said...

aap sabhi ke prem ka dil se abhaar, yun hi aate rahiye, hausla afjai karte rahiye

अनामिका की सदायें ...... said...

सच कहती रचना बहुत अच्छी लगी.

हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, ... देखिए