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Monday, October 11, 2010

किसी के बाप का, क्या जायेगा.........


फैसला जो आना, आ ही जायेगा
किसी के बाप का, क्या जायेगा

मस्जिद बने या वो मंदिर रहे
क्या तू वहां मत्था टेकने जायेगा

बहुतों को तो पता ही नही कि मसला क्या हे
फिर भी वो इस सैलाव ने बह ही जायेगा

क्या जरुरी हे कि झगडे -फसाद हों
पर तू पहले से ही शोर मचाएगा

क्यूँ खेलते हो तुम नादानों कि जिन्दगी से
बिना इसके क्या तू रह नही पायेगा

खून राम का बहे या रहीम का बहे
बहा खून किसका है, क्या तू बता पायेगा

ये सब फालतू कि बाते जो करते हैं लोग
किसी के घर का चिराग, तो किसी का
चुहला बुझ ही जायेगा

फैसला जो आना, आ ही जायेगा
किसी के बाप का, क्या जायेगा.........

9 comments:

उपेन्द्र नाथ said...

बिल्कुल सही कहा...

संजय भास्‍कर said...

ला-जवाब" जबर्दस्त!!
आपसे बिलकुल सहमत हूँ
शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

shikha varshney said...

To the Point ...Noce one.

प्रवीण पाण्डेय said...

अब तो लोगों को समझना होगा।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सटीक लेखन ..

दिगम्बर नासवा said...

आपका कहना बहुत हद तक ठीक है .... पर क्या सब इस बात से सहमत हैं .... पहल कौन करे ... आक्रांता या बड़ा ....

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

आपसे बिलकुल सहमत हूँ.........

Khare A said...

aap sabhi ka dil se abhaar , bas yun hi pyar dikhate rahiye

Khare A said...

aap sabhi ka dil se abhaar , bas yun hi pyar dikhate rahiye